प्रेम एक शब्द से अधिक भाव है। इसकी भाषा को हर कोई जानता है, भले ही भाषा कोई हो।
जिंदगी एक पहाड़ है। इसके एक-एक पड़ाव एक-एक चोटी हैं। जैसे-जैसे ऊपर चढ़ते जाएंगे, थकान बढ़ती जाती है।
भूखा आदमी परेशान है। एक छोटा-सा परिवार भी है उसका। कितनी भयानक सर्दी है। पेट में अन्न का दाना नहीं।
किसी पत्र-पत्रिका में मेरी कोई रचना छपती और वह मेजर साहब की नजर से गुजरती है, तो उनका फोन आता…
साहित्य में मूल्यवान वही माना गया जो मानवीय मूल्यों के साथ चले। लेकिन बीसवीं सदी के अंत में सोवियत रूस…
नब्बे साल की बुजुर्ग महिला ने कहा- ‘मैं अगला जन्म लूंगी तो ये मोटी-मोटी बड़ी किताबें पढूंगी।’ उनके मन की…
बेरोजगारी का आलम और ऊपर से कोरोनाकाल। इसमें भी सोशल मीडिया की सक्रियता। बेदिल को एक ऐसी बानगी देखने को…
मनुष्य हर समय कुछ न कुछ सीखता और सिखाता रहता है। दुनिया में सब तरह के लोग होते हैं।
सुबह की प्रकाश किरणें जब खिलती हैं, तो वातावरण प्रफुल्लित हो उठता है। पशु-पक्षियों की आवाजें हमारे कानों में गूंज…
साहित्य और चेतना को मुक्त होने की वकालत करती निराला की ये पंक्तियां शब्दों की दुनिया के कारीगरों से बहुत…
निराला ने कविता के साथ गद्य लेखन भी खूब किया है। उन्होंने गद्य को ‘जीवन संग्राम की भाषा’ कहा है।
मौजूदा दौर को जिन हर्र्फोंं, तर्कों और हवालों में हम सबसे ज्यादा महसूस कर सकते हैं, वे हैं- आंदोलन की…