आज के जमाने में रोजगार के बिना रोटी का जुगाड़ संभव नहीं है। खेती घाटे का सौदा साबित हो रही…
आज जहां टीवी धारावाहिक ‘डर सबको लगता है’ के नारे के साथ भूत-प्रेत, नाग-नागिन के साथ दर्शकों को मनोरंजन की…
बिजली के बल्ब का इस्तेमाल सारी दुनिया में होता है, लेकिन कोई भी कंपनी इनके फ्यूज होने की गारंटी नहीं…
बहुत समय पहले की बात है। एक गांव में एक बूढ़ी औरत मारिया अपने दस वर्ष के पोते जॉर्ज के…
एक दूजे के लिए समर्पण, अंतर्मन आनंदित करता। त्याग और अपनेपन से ही, उल्लासों का झरना झरता।
मैं ठंड पी गया और सोचने लगा कि साहित्यिक गोष्ठी में क्योंकर आया? आलोचक को देखा तो उनका व्याख्यान जारी…
साहब, कहीं चलना है क्या?’ कहते हुए सुखवीर ने अपने रिक्शे को इंजीनियर राजीव सक्सेना के आगे खड़ा कर दिया।…
लेखक, कलाकार, बुद्धिजीवी आदि थोड़ा महीन कातते हैं और उसी के लिए बदनामी भी झेलते हैं: उन पर हमारे तेज…
घुरहू के घर, चना-चबेना छप्पन भोग प्रधान के। झुलसे हुए करील दूर से भीट ताकते पान के। कर्जे में है…
क्या वास्तव में आज व्यक्ति अपनी सेहत को लेकर इतना लापरवाह हो गया है? क्या सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाएं इतनी लचर…
समाज सामुदायिक भावनाओं की वह इकाई है, जिसके व्यापकता ग्रहण करने पर राष्ट्रीय स्वरूप सामने आता है। सामाजिक संदर्भों में…
शाम गहरी होती जा रही थी। त्रिवेंद्रम एक्सप्रेस अभी उज्जैन प्लेटफार्म पर आकर रुकी थी। वह अलसुबह कोटा से रवाना…