
हिंसा और आक्रामकता को मौन स्वीकृति मिलने से संस्थागत ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा है।
हालांकि हर व्यक्ति दूसरे से भिन्न होता है, लेकिन अलग-अलग रंग-रूप, कद-काठी, आचार-विचार, खानपान, रहन-सहन के बावजूद कुछ आपसी समानताओं…
नस्लवाद और उपनिवेशवाद भले ही कुछ खास कालखंड तक सीमित रहता हो, लेकिन उसका दंश समाज को लंबे समय तक…
हमारी सामूहिक चेतना के अंग बन चुके कई वाक्यों में से एक यह है कि साहित्य समाज का दर्पण होता…
बीज पर चींटियों, अंकुरों पर पक्षियों और पौधों पर पशुओं की नजर रहती है।
कई महीनों बाद दो-तीन बच्चे सोसाइटी में साइकिल चलाते दिखे।
अब शोध का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति के बजाय केवल डिग्री हासिल करना भर रह गया है।
किसी के अवचेतन में चुपके से दाखिल होकर कैसे कोई विचार रोपा जा सकता है! इसके बाद फिर वह व्यक्ति…
यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि इस दौर में अधिकांश लोग नैतिकता पर बात करना नहीं चाहते हैं।
मनुष्य हमेशा से एक बड़े समूह की इकाई है, जिसके बिना उसकी सामाजिक पहचान नहीं है।