
क्या जरूरत है आंदोलनजीवी जैसे आरोप लगा कर आंदोलनों को बदनाम करने की? आंदोलन जिस देश में होते हैं सरकार…
भारत में बीसवी सदी के पहले पांच दशकों में कम से कम तीन 1920, 1930 और 1942 ऐतिहासिक घटनाओं के…
सरकार अपने ही ‘बैरीकेड’ में फंसी दिखती है : बैरीकेड लगाती है, तो कहा जाता है कि अपने ही लोगों…
सरकारी कमजोरी की वजह से निजी क्षेत्र शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, रेल में लगातार अपने पैर पसार रहा है। अच्छा हो,…
रिहाना पर इतनी चर्चाएं और इतनी आलोचनाएं सुनने को मिलीं कि जिन भारतीयों ने इस गायिका का नाम तक नहीं…
बजट ने देश के सशस्त्र बलों को निराश किया है। वित्तमंत्री ने अपने एक घंटे पैंतालीस मिनट के भाषण में…
अखबार की सुर्खियां ठंडी आह की मोहताज होती जा रही हैं। कोई कुछ कह रहा है तो कोई कुछ और।…
टिकैत के आंसुओं ने पांसा पलट दिया। आंसुओं ने टिकैत के प्रति हमदर्दी पैदा कर दी। वे सत्ता के ‘विक्टिम’…
गणतंत्र दिवस पर जो हुआ उससे साबित हो गया है कि अब कृषि कानूनों से बहुत बड़ी हो गई है…
बिना महामारी के भी अर्थव्यवस्था लगातार नीचे जा रही थी, जिसमें गिरावट का दौर 2018-19 की पहली तिमाही में शुरू…
हिंदी में संज्ञा पदों के नाम-निर्धारण की पद्धति का अगर विश्लेषण किया जाए, तो एक बात बहुत स्पष्ट है। अगर…
सत्ता का असमंजस साफ झलकता है। भाजपा के कुछ परिचित प्रवक्ता बहसों में कभी किसानों की चापलूसी करते नजर आते…