
सुबह की प्रकाश किरणें जब खिलती हैं, तो वातावरण प्रफुल्लित हो उठता है। पशु-पक्षियों की आवाजें हमारे कानों में गूंज…
मोर-मोरनी का सोसाइटी के परिसर तक आ जाना बच्चों को भी प्रफुल्लित करता रहा। चारों ओर सब कुछ बंद होने…
बीती आधी सदी में धरती पर आबादी दोगुनी हो चुकी है, लेकिन इसी अवधि इंसानों ने अपने विकास और स्वार्थ…
अब सवाल यह है कि हम प्रकृति को किस रूप में देख रहे हैं और उससे क्या हासिल करना चाहते…
रास्तों के दोनो ओर काफी झाडियां थीं जिनमें रह रहकर कोई पक्षी या जानवर दिखाई दे जाता। एक विचित्र प्रजाति…
गांवों से कुटीर उद्योग खत्म हो गए हैं। पेड़ लगातार काटे जा रहे हैं। कुएं सूख गए हैं और जो…
पश्चिमी आधुनिकता के अंधानुकरण के साथ पिछले एक-डेढ़ दशक से हमारे देश में विकास का यह सपना देखा जा रहा…
जब सत्ता के तार पूंजी से जुड़ जाते हैं और संयोग से इसे धार्मिकता की भी आड़ मिल जाती है,…
पिछले दिनों दिल्ली में नृत्य समारोह के आयोजन में प्रसार भारती अभिलेखागार की ओर से डीवीडी ‘पंडित बिरजू महाराज का…
साल 2015 जाते-जाते हमें बहुत कुछ सीख दे गया। खासकर पर्यावरण के प्रति क्या जिम्मेवारी होनी चाहिए इसके प्रति हमें…
आज जरूरत है कि हम अपनी संवेदना को बचाए रखें। अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त न हो जाएं कि हमारे…