30 से ज्यादा प्रवासी श्रमिकों के एक समूह ने दिल्ली से बिहार के पूर्णिया जिले स्थित पैतृक गांव के लिए पैदल ही शुरू कर दी है, क्योंकि वे स्पेशल ट्रेन के बारे में अनजान हैं। उनको पता ही नहीं है कि ये स्पेशल ट्रेनें उन्हीं जैसे प्रवासियों को उनके घर भेजने के लिए चलाई जा रही हैं। बिहार के इन प्रवासी मजदूरों के पास पैसे नहीं बचे हैं। उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई से अपनी दुखभरी कहानी बयां कीं। बता दें कि सरकार ने विभिन्न राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाईं हैं।

प्रवासी मजदूरों में से एक संजीत कुमार ने बताया, ‘मैं और अन्य जो लोग मेरे साथ यहां हैं, हम यहां कंस्ट्रक्शन काम से जुड़े थे। लॉकडाउन के कारण, हमारे पास काम नहीं बचा। हम यहां समस्याओं का सामना कर रहे हैं। अब हमारे पास पैसे नहीं बचे हैं। हमारे पास खाना भी नहीं है। इसी कारण हम पैदल गांव जा रहे हैं। हमें सरकार द्वारा चलाई जाने वाली ट्रेनों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।’ बता दें कि इससे पहले शुक्रवार को 1,200 प्रवासी मजदूरों को श्रमिक स्पेशल ट्रेन के जरिए दिल्ली से बिहार रवाना किया गया था।

एक अन्य प्रवासी मजदूर संतोष कुमार ने बताया, ‘मैंने अपने सारा पैसा घर भेज दिया है। मेरे पास अब पैसे नहीं हैं। हम दो दिन से भूखे हैं। यहां कोई रोजगार नहीं है, हम पैदल घर जा रहे हैं। अगर यहीं भूख और प्यास से मरना है तो इससे अच्छा है कि घर जाते हुए भूख और प्यास से मरें। इसलिए हमने पैदल ही जाने का फैसला किया है। हमारे पास न तो मोबाइल है और न ही पैसा। हमें किसी ट्रेन के बारे में कोई जानकारी नहीं है।’

बता दें कि दिल्ली से बिहार के पूर्णिया की दूरी करीब 1400 किलोमीटर है। COVID-19 महामारी के कारण देश में लॉकडाउन तीसरी बार बढ़ाया गया है। दूसरे लॉकडाउन की अवधि 3 मई खत्म होने वाली थी, लेकिन इसे 17 मई तक बढ़ा दी गई है।

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