जी-7 शिखर सम्मेलन के सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिए मंत्र ‘एक धरती, एक स्वास्थ्य’ (One Earth, One Health) को लेकर टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने तंज कसा है। उन्होंने कहा कि अगली बार पीएम कहीं “एक पृथ्वी, एक राष्ट्र” (One Earth, One Nation) का नारा न दे आएं।
NDTV से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार ने यह बात रविवार (13 जून, 2021) को एक फेसबुक पोस्ट के जरिए कहीं। उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री जी एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य की जगह एक धरती, एक देश कैसा रहेगा? तुकबंदी की भी हद होती है।” मीडिया पर सवाल उठाते हुए वह आगे बोले- जी-7 मीट में मोदी जो मंत्र दे आए, उसे अखबारों ने ऐसे छापा…जैसे कोई बड़ा भारी मंत्र दे दिया हो। बीते साल लोकल-लोकल कहने वाले पीएम फिर से ग्लोबल हेल्थ की बात करने लगे हैं। पर सोच कर देखें, इस नारे का कोई तुक बनता है?
बकौल पत्रकार, “लोगों ने इस सतही नारे को सुन कर क्या सोचा होगा कि एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य होता क्या है? हर चीज़ “एक राष्ट्र, एक राशन”, “एक देश चुनाव” नहीं है। जो देश स्वास्थ्य के मामले में सबसे खराब हो, जिसे दुनिया ने देखा कि अस्पताल में बिस्तर से लेकर दवा तक के लिए तरस रहे हों, उस देश की तरफ से पीएम बता रहे हैं कि महामारी से कैसे सबने मिल कर लड़ा? क्या उन देशों को पता नहीं कि भारत में क्या हुआ। कमाल ही है। सबको अपने हाल पर छोड़ कर दुनिया को ज्ञान दे रहे हैं कि भारत में सबने मिल कर लड़ा। यही मॉडल है “वन अर्थ, वन हेल्थ” का। ये है क्या?”
रवीश के मुताबिक, स्कूल की दीवार और ट्रक के पीछे स्लोगन लिखवाने की चाहत से परहेज करना चाहिए। अगर इतना ही हर बात में “एक राष्ट्र, एक राष्ट्र” नज़र आता है तो कहीं अगली बार आइडिया न दे आएं कि “एक पृथ्वी, एक मुल्क” होना चाहिए। कोई एक ही आदमी हो जो पूरी दुनिया भर में झूठ बोलता रहे। आप पहले अपने देश में तो स्वास्थ्य को बेहतर कीजिए, फिर दुनिया को सस्ता स्लोगन बांटते रहिएगा। लेकिन बांटने से पहले एक बार सोच तो लेना चाहिए कि बोल क्या रहे हैं।
दरअसल, पीएम ने शनिवार को डिजिटल तरीके से शनिवार को जी-7 शिखर सम्मेलन के एक सत्र को संबोधित किया। उन्होंने इस दौरान कोरोना वायरस महामारी से प्रभावी तौर पर निपटने के लिए ‘‘एक धरती, एक स्वास्थ्य’’ दृष्टिकोण को अपनाने की अपील की। उन्होंने इसके साथ ही भविष्य की महामारी को रोकने के लिए वैश्विक एकजुटता, नेतृत्व और तालमेल का आह्वान करते हुए चुनौती से निपटने के लिए लोकतांत्रिक और पारदर्शी समाजों की विशेष जिम्मेदारी पर जोर दिया।