उत्तर प्रदेश में बेहतर कानून व्यवस्था के दावों की कलई उस समय फिर खुली, जब बलरामपुर जिले में एक मूक-बधिर महिला से सामूहिक बलात्कार किया गया और उसे बेहोशी की हालत में पुलिस चौकी से कुछ दूर छोड़ दिया गया। सवाल है कि राज्य में अपराधियों का दुस्साहस इस हद तक क्यों बढ़ रहा है कि उनके भीतर किसी का खौफ नहीं दिख रहा। महिलाओं के खिलाफ जिस तरह अपराध बढ़े हैं, उससे पुलिस की कथित सख्ती और न्यूनतम अपराध के सरकारी दावों की स्याह तस्वीर सामने आई है।
सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘एंटी रोमियो दस्ते’ का गठन किया था। मगर जमीन पर हकीकत क्या रही, यह जगजाहिर है। स्कूल जातीं और घर लौटतीं छात्राओं से छेड़खानी की वारदात बढ़ती ही चली गईं। कुछ मामलों में तो बेखौफ अपराधियों ने लड़कियों को सरेआम अगवा किया। बलरामपुर में भाई के घर से लौटती मूक-बधिर महिला को भी बीच रास्ते से उठाया गया। इससे पहले पीड़िता आरोपियों से बचने के लिए बदहवास भागती रही, लेकिन उसकी मदद करने वाला वहां कोई नहीं था।
घटना के दो दिन बाद बेशक आरोपियों को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया हो, लेकिन यह घटना बताती है कि राज्य में महिलाएं किस कदर असुरक्षित हैं।
इसे बर्बरता की पराकाष्ठा ही कहेंगे कि आरोपियों ने एक ऐसी महिला को निशाना बनाया जो शोर मचा कर अपना बचाव तक नहीं कर सकती थी, किसी को अपनी पीड़ा नहीं बता सकती थी। इस घटना ने एकबारगी दिल्ली में निर्भया से हुई बर्बरता की इंतिहा की याद दिला दी। यह समझना मुश्किल है कि उस घटना के बाद देश भर में लोगों के बीच महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर उभरे आक्रोश का हासिल क्या रहा।
राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो के 2022 के आंकड़े ही उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराध की सच्चाई बताते हैं। आज यहां महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं, तो इसकी एक वजह सड़कों पर पुलिस की गश्त का कम होना है। कुछ घटनाओं के आरोपियों को पकड़ा जाता है, आरोपपत्र भी दाखिल होते दिख रहे हैं, लेकिन सच यह है कि तमाम सरकारी दावों के बावजूद महिलाओं के खिलाफ होने वाले जघन्य अपराधों की तस्वीर बेहद चिंताजनक है।