Early Monsoon Effect: मानसून के जल्द आए मेघदूतों ने इस बार राहत की खबर दी है। भारतीय मौसम विभाग ने एलान किया कि मानसून 24 मई को पहुंच गया है। पिछली बार ऐसा 2009 में हुआ था, जब मानसून इतनी जल्दी, 23 मई को आया था। इसके पीछे कई वजहें हैं। इस साल बड़े पैमाने पर वायुमंडलीय-महासागरीय परिस्थितियों ने इसे समय से बहुत पहले पहुंचाया। मानसून केरल में अपनी सामान्य तिथि एक जून से आठ दिन पहले आ गया है। इस आगमन का महत्त्व सिर्फ यह नहीं है कि मानसून जल्दी आया है, बल्कि मौसम विभाग का कहना है कि इस बार चार महीने जून से सितंबर तक यह जमकर बरसेगा। जून में ही सामान्य से ज्यादा बारिश होगी। दक्षिण-पश्चिम मानसून देश की जीवनरेखा है, क्योंकि यह वार्षिक वर्षा में 70 फीसद से अधिक योगदान देता है। इस बार इसका समय से आगमन फसलों के लिए खूब फायदेमंद हो सकता है।
Pre-Monsoon Cause: सामान्य तौर पर दक्षिण पश्चिमी मानसून एक जून को केरल तट को पार करता है, लेकिन इस बार 24 मई को ही यहां मानसून की बारिश शुरू हो गई। पिछले साल 30 मई और 2023 में आठ जून को मानसून केरल पहुंचा था। साल 2009 के बाद पहली बार मानसून इतनी जल्दी केरल पहुंचा है। 1975 से अब तक के आंकड़ों के मुताबिक 1990 में मानसून सबसे जल्दी 19 मई को केरल पहुंचा था और इस बार 24 मई को पहुंचा है। सिर्फ केरल ही नहीं, बल्कि दक्षिण प्रायद्वीप के तमिलनाडु, लक्षद्वीप और कर्नाटक के बड़े इलाके को यह भिगो चुका है।
यह लगातार दूसरा साल है जब केरल और पूर्वोत्तर में मानसून लगभग साथ-साथ पहुंचा है।दो ही दिन में बंगाल की खाड़ी से मानसून की धारा पूर्वोत्तर के लगभग सभी राज्यों में पहुंच चुकी है। उधर दक्षिण-पश्चिम मानसून तेजी से बढ़ रहा है। इसकी रफ्तार का अंदाजा इसी से लगता है कि यह केरल पहुंचने के अगले ही दिन महाराष्ट्र पहुंच गया था और मुंबई में भी जमकर बरसा। साल 1971 में मानसून एक साथ कर्नाटक और महाराष्ट्र पहुंच गया था।
मानसून देश के लिए बेहद अहम है। जून से सितंबर तक तक देश की कुल बारिश में मानसून 70% योगदान देता है। यानी देश की पानी की जरूरत लगभग यही पूरी करता है। भारत में खेती की 60 फीसद जमीन पानी के लिए मानसून के ही भरोसे है। धान, मक्का, बाजरा, रागी जैसी खरीफ की फसलें दक्षिण पश्चिम मानसून से ही लहलहाती हैं।
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भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान 15 फीसद है। देश की 42 फीसद आबादी खेती पर निर्भर है। मानसून अच्छा होगा तो अनाज भरपूर होगा और महंगाई भी कम रहेगी। मानसून के दिनों में अच्छी बारिश हो तो तमाम जलाशय भी पानी से लबालब हो जाते हैं। इससे पीने के पानी की उपलब्धता सर्दी के महीनों में बनी रहती है और साथ ही रबी की फसलों की सिंचाई के लिए पानी भी उपलब्ध रहता है।
कैसे तय होता है मानसून आगमन का एलान?
मौसम विभाग 10 मई के बाद किसी भी समय दक्षिण-पश्चिम मानसून की तारीख घोषित करता है। ऐसा करने के लिए, वह कुछ आवश्यक मानदंडों पर विचार करता है।
ये हैं:
- वर्षा: यदि दक्षिण के 14 मौसम केंद्रों – मिनिकाय, अमिनी, तिरुवनंतपुरम, पुनालुर, कोल्लम, अल्लापुझा, कोट्टायम, कोच्चि, त्रिशूर, कोझीकोड, थालास्सेरी, कन्नूर, कुडुलु और मैंगलोर में से 60% में लगातार दो दिन तक 2.5 मिमी या उससे अधिक वर्षा दर्ज की जाती है तो मानसून आगमन घोषित कर दिया जाता है।
- वायु क्षेत्र : पश्चिमी हवाएं उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध दोनों में 30 से 60 डिग्री अक्षांशों पर पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं। मानसून की शुरुआत के लिए, पश्चिमी हवाओं की गहराई 600 हेक्टोपास्कल या एचपीए होनी चाहिए (जो वायुमंडलीय दबाव को मापने की इकाई है) और हवा की गति 925 एचपीए पर 15-20 नाट्स (27-37 किमी/घंटा) के बीच होनी चाहिए।
आउटगोइंग लांगवेव रेडिएशन (ओएलआर) पृथ्वी सूर्य से ऊर्जा को अवशोषित और परावर्तित करती है और इन प्रक्रियाओं के बीच का अंतर पृथ्वी के तापमान और वायुमंडल को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, वायुमंडल में बड़े एरोसोल कण विकिरण के साथ संपर्क करते हैं और कुछ विकिरण को अवशोषित करते हैं, जिससे वायुमंडल गर्म हो जाता है।
नासा के अनुसार, परिणामी गर्मी लांगवेव इंफ्रारेड विकिरण के रूप में उत्सर्जित होती है। ओएलआर में गर्म ऊपरी वायुमंडल से विकिरण के साथ पृथ्वी की सतह से थोड़ी मात्रा शामिल होती है। ओएलआर का अधिकांश भाग निचले वायुमंडल को गर्म करता है, जिससे सतह गर्म होती है। भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून के लिए, उपग्रह-व्युत्पन्न ओएलआर मान 200 वाट प्रति वर्ग मीटर से कम होना चाहिए।
यदि ये सभी मानदंड पूरे होते हैं, तो आइएमडी प्रेक्षण के दूसरे दिन केरल में मानसून के आगमन की घोषणा करता है। इस वर्ष, पूरे लक्षद्वीप, माहे (पुदुचेरी), अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के कई हिस्सों में एक साथ मानसून पहुंचा है। साथ ही मानसूनी हवाएं दक्षिणी कर्नाटक और पूर्वोत्तर भारत के मिजोरम के कुछ हिस्सों तक पहुंच रही हैं।

क्या हैं कारण?
इस साल बड़े पैमाने पर वायुमंडलीय-महासागरीय और स्थानीय कारण रहे और मानसून के समय से पहले आने में भूमिका निभाई। मानसून 13 मई को दक्षिणी अंडमान सागर और आसपास के इलाकों में पहुंचा, जबकि सामान्य तौर पर यह 21 मई को आता है। आइएमडी ने कहा कि इसकी शुरुआत बहुत अनुकूल परिस्थितियों में हुई, जिनमें शामिल हैं:
मैडेन-जूलियन आसिलेशन (MJO) : यह भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण और जटिल महासागर-वायुमंडलीय घटनाओं में से एक है। इसकी उत्पत्ति हिंद महासागर में होती है। इसकी एक प्रमुख विशेषता यह है कि मेघ विक्षोभ, हवा और दबाव 4-8 मीटर प्रति सेकंड की गति से पूर्व की ओर बढ़ते हैं। 30 से 60 दिनों के भीतर एमजेओ दुनिया भर में यात्रा कर सकता है और अपने बढ़ाव के दौरान महत्त्वपूर्ण मौसम परिवर्तन कर सकता है। अनुकूल चरण में, यह मानसून के मौसम के दौरान भारत में वर्षा को बढ़ा सकता है।
- मास्कारेन हाई : आइएमडी मास्कारेन हाई को मानसून अवधि के दौरान मास्कारेन द्वीप (दक्षिण हिंद महासागर में) के आसपास पाए जाने वाले उच्च दबाव वाले क्षेत्र के रूप में वर्णित करता है। उच्च दबाव की तीव्रता में बदलाव भारत के पश्चिमी तट पर भारी बारिश कराता है।
- संवहन : संवहन गतिविधि में वृद्धि। इसमें गर्म और नम हवा ऊपर उठती है और ठंडी होती है जिससे बादल बनते हैं। यह मानसून लाने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, हरियाणा के ऊपर एक संवहन प्रणाली पिछले सप्ताह दक्षिण-पूर्व की ओर बढ़ी और इससे दिल्ली क्षेत्र में बारिश हुई।
- सोमाली जेट : यह मारीशस और उत्तरी मेडागास्कर के पास से निकलने वाली एक निम्न-स्तरीय, अंतर-गोलार्धीय भूमध्य रेखा को पार करने वाली पवन पट्टी है। मई के दौरान, अफ्रीका के पूर्वी तट को पार करने के बाद, यह अरब सागर और भारत के पश्चिमी तट तक पहुंचती है। एक मजबूत सोमाली जेट मानसूनी हवाओं के मजबूत होने से जुड़ा है।
- कम गर्मी : सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में जाने के बाद अरब सागर में एक कम दबाव का क्षेत्र विकसित होता है। पाकिस्तान और आस-पास के क्षेत्रों में गर्मी-कम दबाव वाले क्षेत्र का विकास मानसून गर्त के साथ नम हवा के लिए एक सक्शन डिवाइस के रूप में कार्य करता है और इसकी मजबूत उपस्थिति अच्छी वर्षा को प्रभावित करती है।
मानसून गर्त: यह एक लंबा निम्न दबाव वाला क्षेत्र है जो निम्न ताप से लेकर बंगाल की खाड़ी के उत्तरी भाग तक फैला हुआ है। इस गर्त के उत्तर-दक्षिण दिशा में घूमने से जून-सितंबर की अवधि में मुख्य मानसून क्षेत्र में वर्षा होती है।
आगमन के साथ कहां-कहां पहुंचा?
दक्षिण-पश्चिम मानसून ने भारत में जोरदार दस्तक दी है तथा दक्षिण-पश्चिम और पूर्व-मध्य बंगाल की खाड़ी, मालदीव और कोमोरिन क्षेत्र, दक्षिण और मध्य अरब सागर, केरल, लक्षद्वीप और माहे तक पहुंच गया है। इसने पूर्वोत्तर भारत (मिजोरम), दक्षिणी और तटीय कर्नाटक और तमिलनाडु (इसके उत्तरी क्षेत्रों को छोड़कर) पर एक साथ और शीघ्र ही दस्तक दे दी है।
सामान्य परिस्थितियों में, मानसून मध्य केरल को पार करके पांच जून के आसपास कर्नाटक पहुंचता है। लेकिन इस साल इन क्षेत्रों में हाल के वर्षों में सबसे पहले मानसून का आगमन हुआ है। कर्नाटक में, इस साल मानसून का आगमन 10 दिन पहले हो गया है। अपने आगमन के दूसरे दिन, दक्षिण-पश्चिम मानसून पश्चिम-मध्य और पूर्व-मध्य अरब सागर के कुछ भागों, कर्नाटक के कुछ भागों, संपूर्ण गोवा, महाराष्ट्र के कुछ भागों, पश्चिम-मध्य और उत्तर बंगाल की खाड़ी के कुछ भागों तथा मिजोरम, मणिपुर और नगालैंड की ओर आगे बढ़ा।
भारत की ओर क्यों बढ़ता है?
भारत की तरफ मानसून बढ़ने का सबसे बड़ा कारण यह है कि गर्मी के दिनों में भारतीय उपमहाद्वीप ज्यादा गर्म होता है। गर्म हवाएं ऊपर की ओर उठती हैं। तापमान के इस अंतर से जमीन के ऊपर निम्न दबाव का क्षेत्र बन जाता है। यह निम्न दबाव हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नम हवाओं को खींचता है। इस तरह यह मानसूनी हवाएं दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर चलती हैं और बरसती हैं।
मानसून की जब भी बात होती है तो अल नीनो की भी बात होती है। अल नीनो के तहत प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के गर्म होने से दक्षिण पश्चिम मानसून कमजोर पड़ता है, लेकिन इस बार अल नीनो तटस्थ है, जो चार महीनों में अच्छी बारिश का संकेत है।
मानसून के जल्दी आने की एक और वजह बताई जा रही है सोमाली जेट। यह निचले स्तर की हवा है जो मारीशस और मेडागास्कर से चलती है। यह सोमाली मई 2025 में काफी तेज हुई। इससे नमी भरी हवाएं अरब सागर से होते हुए केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र तक यानी भारत के पश्चिमी तट तक पहुंचीं। माना जा रहा है कि सोमाली जेट के तेज होने के पीछे भी वैश्विक ताप है। एक और वजह है मैडन जूलियन ओसिलेशन फेज और यह भी मानसून के लिहाज से अनुकूल है। यह एक तरह का वैश्विक मौसम विक्षोभ है। यह पूरी दुनिया के मौसम को प्रभावित करता है। इसके दो चरण होते हैं। एक में हवाएं नीचे से ऊपर की ओर जाती हैं।
बारिश के लिए नमी का ऊपर जाना जरूरी होता है। जब नमी ऊपर जाती है तो बादल बनते हैं। इससे बारिश होती है। वहीं दूसरे चरण में हवाएं ऊपर से नीचे आती हैं और इसके कारण बिल्कुल भी पानी नहीं बरसता है। कई जानकारों का कहना है कि कुछ वजह ऐसी भी हैं जो जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हैं। जैसे ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है। इससे वातावरण में नमी भी बढ़ती है। एक डिग्री तापमान बढ़ने से वातावरण में नमी छह से आठ फीसद बढ़ जाती है। 2025 में अब तक वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक औसत से 1.2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा है। इससे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से ज्यादा नमी वातावरण में पहुंची। इससे मानसून तेजी से बढ़ा।
विशेषज्ञों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस बार यूरेशिया और हिमालय में बर्फ कम पड़ी और जल्दी पिघल गई। इसी साल जनवरी से मार्च के बीच बर्फ का विस्तार 1990 से 2020 के औसत से 15% कम रहा। हिमालय पर जमी बर्फ धूप को परावर्तित करती है। अगर बर्फ कम होगी तो परावर्तन भी कम होगा और धूप से सतह का तापमान बढ़ेगा। यह बढ़ी हुई गर्मी भी मानसून के जल्दी आने की वजह बताई जा रही है।
कैसी है नई प्रणाली
भारत सरकार ने पिछले दिनों एडवांस भारत फोरकास्ट सिस्टम (बीएफएस) जारी किया। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डा जितेंद्र सिंह ने इसे देश को सौंपा। यह सिस्टम आपदा प्रबंधन, खेती, जल प्रबंधन और सार्वजनिक सुरक्षा में पंचायत स्तर तक मदद करेगा। बीएफएस प्रणाली मौसम के बारे में पहले से कहीं ज्यादा सटीक और छोटी से छोटी जानकारी देगी। पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट और ट्रापिकल मेट्रोलाजिकल (आइआइटीएम) ने इसे तैयार किया है।
बीएफएस छह किलोमीटर के रेजोल्यूशन पर मौसम का अनुमान लगाएगा, जो दुनिया में सबसे बेहतर है। इससे छोटी से छोटी मौसम संबंधी घटनाओं जैसे बारिश, तूफान का पहले से ज्यादा सटीक पता लगाया जा सकेगा। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रविचंद्रन के मुताबिकअब मौसम का पूवार्नुमान पहले से ज्यादा स्थानीय और सटीक होगा। उनके अनुसार पहले सुपरकंप्यूटर प्रत्यूष का उपयोग किया जा रहा था, लेकिन अब नए सुपरकंप्यूटर अर्का का उपयोग किया जाएगा। प्रत्यूष को मौसम माडल चलाने में 10 घंटे लगते थे, वहीं अर्का सिर्फ चार घंटे में काम पूरा कर देता है। यह प्रणाली 40 डाप्लर रडार से डेटा लेता है और भविष्य में 100 रडार के साथ और बेहतर होगा। इससे दो घंटे के स्थानीय पूवार्नुमान संभव होंगे।