वो पिकनिक मनाने नहीं गए थे। अपनी चितांओं के बावजूद मैंने अपने पति को जाने दिया दिया क्योंकि वो महंत कल्पवृक्ष गिरि को अपने गुरु के अंतिम संस्कार में शामिल होने में मदद कर अच्छा काम कर रहे थे। इसके लिए उनके पास प्रशासनिक अनुमति नहीं थी मगर उनकी सुरक्षा करना पुलिस का कर्तव्य था। जब पुलिस ही लोगों के बीच असहाय तमाशबीन बने रहे तो इंसाफ के लिए इंसान कहां जाए? ये शब्द हैं निलेश तेलगडे की पत्नी पूजा के।

बीते गुरुवार की रात साधु मुंबई से गुजरात के सूरत अंतिम संस्कार में शामिल होने जा रहे थे। दादरा और नगर हवेली पुलिस ने उन्हें रोका और वापस महाराष्ट्र भेज दिया। इसके बाद उन्होंने गढ़चिंदहली गांव से गुजरने वाले अंदरुनी रास्ते को चुना जो पालघर जिले से 110 किलोमीटर दूर है, यहां स्थानीय लोगों ने उन्हें बच्चा चुराने वाले गिरोह का सदस्य समझकर रोक लिया। उस वक्त गाड़ी में उनके साथ महंत कल्पवृक्ष गिरि और सुशीलगिरि महाराज भी मौजदू थे। यहां भीड़ ने उन्हें गाड़ी से बाहर निकाल और पीट-पीटकर हत्या कर दी।

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उन्मादी भीड़ की हिंसा का शिकार हुए निलेश तेलगडे के परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटियां भी हैं। हालांकि दोनों बेटियों सनिका (7) और शालिनि (5) को उनकी पिता की दर्दनाक मौत के बारे में नहीं मालूम है। येलगडे कांदिवली ईस्ट के हनुमान नगर इलाके में पिंपलेश्वर महादेव मंदिर के करीब रहते थे। इसी मंदिर में महंत कल्पवृक्ष गिरि (70) अपने धार्मिक कार्यों का निर्वहन करते थे। महंत मंदिर के पीछे बने एक छोटे से कमरे में रहा करते थे। वहीं सुशीलगिरी महाराज (35) जोगेश्वरी के एक मंदिर में पुजारी थे।

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मंदिर की देखभाल करने वाले महंत की मदद करने वाले एक युवा ने दिवाकर गुप्ता ने याद करते हुए बताया, ‘महंत कल्पवृक्ष गिरि अपने गुरु रामगिरी महाराज के अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहते थे। पुलिस ने अनुमति देने से इनकार कर दिया, लेकिन वह अड़े रहे। उन्होंने कहा कि वो कोई रास्त खोज लेंगे।’ गुप्ता के मुताबिक वह नौ वर्षों से उनके साथ रह रहे थे और महंत को अपने मित्र से भी बढ़कर मानते थे। गुप्ता कहते हैं, ‘उन्होंने खुद की गैरमौजूदगी में मंदिर की देखभाल करने के लिए कहा।’ उल्लेखनीय है कि सोमवार को मुख्य सड़क पर स्थित मंदिर बंद रहा और स्थानीय निवासियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।