ट्रेनों या बसों के जरिए घर भेजने की व्यवस्था करने के केंद्र सरकार के ऐलान के बावजूद दिल्ली से कई प्रवासी मजूदर अब भी पैदल ही अपने गांव या गृहनगर की ओर रवाना हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश जा रहे ऐसे ही कुछ मजदूरों ने बताया कि उनके पास पैसे नहीं हैं। भुवनेश कुमार (27) गुरुवार सुबह पत्नी बिनीता देवी, पांच साल के बेटे और 2 साल की बेटी के साथ नजफगढ़ से उत्तर प्रदेश के गजरौला के लिए पैदल ही रवाना हुए। दोपहर तक वे दिल्ली सचिवालय के पास स्थित आईटीओ पुल पर पहुंचे थे।

भुवनेश ने कहा कि दैनिक मजदूर के रूप में वे महीने में लगभग 9,000 रुपए कमाते हैं। जब 24 मार्च को लॉकडाउन लागू हुआ था तब उनके पास 12 हजार रुपए थे। उन्होंने बताया, ‘सारा पैसा खत्म हो गया है। मेरे बेटे के पैर में चोट लग गई है, उसके घाव से खून बह रहा है। हम उसके घाव पर केवल एक कपड़ा लपेटे हैं, क्योंकि हमारे पास उसके इलाजे की व्यवस्था नहीं है।’

उन्होंने कहा, ‘हम इसलिए दिल्ली छोड़कर जा रहे हैं, क्योंकि कोई पैसा नहीं है। खाना भी नहीं है। जो भी होगा…।’ भुवनेश को उम्मीद थे कि लॉकडाउन खत्म हो जाएगा और वे फिर से काम शुरू कर पाएंगे। उन्हें आनंद विहार बस टर्मिनल पर परिवार को रोक दिया गया था। पुलिस ने उन्हें गाजियाबाद से जाने की मंजूरी नहीं दी।

भुवनेश की तरह हरियाणा के पंचकुला में एक जींस फैक्ट्री में काम करने वाले राम खिलाड़ी शर्मा (30) की भी स्थिति है। वे अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ यूपी के बदायूं जा रहे हैं। वे हर महीने 9,000 रुपए कमाते थे। लॉकडाउन शुरू होने पर उनके पास 5,000 रुपए बचे थे। अब उनके पास सिर्फ 20 रुपए बचे हैं। राम खिलाड़ी ने पत्नी, 6 साल की बेटी और 2 साल के बेटे के साथ पैदल ही गांव जाने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, ‘हम बस चलते रहेंगे, केवल भगवान अब हमारी मदद करेंगे।’

दिल्ली के मायापुरी में रहने वाले करन कुमार (24) और साक्षी (20) गुरुवार को मेरठ के लिए रवाना हुए। उनके 6 और 8 साल के दो बच्चे हैं। वे दोनों साक्षी की बड़ी बहन के घर पर हैं। साक्षी ने कहा, ‘हम जो कुछ कर रहे हैं उसके बारे में क्या कह सकती हूं? हम हार गए हैं और दुखी हैं। हम बिना भोजन या पानी के चल रहे हैं। हम सिर्फ अपने बच्चों को देखना चाहते हैं।’

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