Aadhaar seeding with voter ID: क्या आप भी अपने वोटर आईडी कार्ड को आधार से लिंक नहीं करना चाहते हैं। क्या यह करना जरूरी है। कई लोगों के मन में यह सवाल है कि अगर उन्होंने वोटर आईडी का आधार से लिंक नहीं किया तो वे वोट नहीं डाल पाएंगे। चुनाव आयोग ने आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड को स्वेच्छा से लिंक कराने की बात कही है। अगर आपका वोटर आईडी आधार से लिंक नहीं है तो आपका नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा। वोटर आईडी को आधार से लिंक करने की अंतिम तारिख 31 मार्च2024 है।

इसी बीच इलेक्शन कमीशन ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता नामांकन फॉर्म में संशोधन का प्रस्ताव करते हुए उस प्रावधान को हटाने के लिए केंद्र सरकार से संपर्क किया जो मतदाता को अपने आधार नंबर को वोटर आईडी के साथ न जोड़ने के फैसले के कारण को बताने के लिए मजबूर करता है। हालांकि इस प्रस्ताव को कानून मंत्रालय ने इस आधार पर खारिज कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरपी अधिनियम, 1950 में संशोधन करने के लिए कोई विशेष निर्देश नहीं दिया है।

आधार कार्ड को वोटर आईडी से जोड़ना लोगों के ऊपर है निर्भर

इसके बदले कानून मंत्रालय ने सुझाव दिया कि पोल पैनल स्पष्टीकरण दिशानिर्देश जारी करे। जिससे लोगों का पता चल सके कि आधारकार्ड को वोटर आई से जोड़ना पूरी तरह से उनके ऊपर है। यह उनकी मर्जी है कि वे आधार और वोटर आई को लिंक कराना चाहते हैं या नहीं। यह लोगों का अपना फैसला होगा कि उन्हें अपने आधार को वोटर आईडी से जोड़ना है कि नहीं। लोगों को यह साफ करना होगा कि अगर वे अपने आधार को वोटर आईडी से नहीं जोड़ते हैं तो मतदाता सूची से उनका नाम नहीं हटेगा और वे वोट दे पाएंगे।

दरअसल, इलेक्शन कमीशन के आदेश पर पूरे देश में वोटर आईडी को आधार कार्ड से जोड़ने का अभियान चल रहा है। चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय के बीच यह आदान-प्रदान हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका के बीच हुआ। जहां याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि फॉर्म 6 (नए मतदाता नामांकन के लिए), फॉर्म 6 बी (नामांकित मतदाताओं की आधार संख्या एकत्र करने के लिए) और अन्य संबंधित प्रपत्रों में मतदाताओं के लिए सिर्फ दो विकल्प दिए गए थे। पहला विकल्प है था कि आधार नंबर प्रदान करें और दूसरा मैं अपना आधार प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हूं, क्योंकि मेरे पास आधार नहीं है।”

फॉर्म में मौजूद केवल दो विकल्पों को लेकर विवाद

यानी दूसरा ऑप्शन चुनने का यह मतलब हुआ कि आप अपने आधार कार्ड का नंबर नहीं देना चाहते, इसलिए आपको झूठ बोलना होगा कि आपके पास आधार कार्ड नहीं है। जो आरपी अधिनियम, 1950 के तहत दंडनीय अपराध है। हालांकि चुनाव आयोग ने सुप्रीम को बताया था पिछले साल कोर्ट ने कहा था कि मतदाता सूची से जोड़ने के लिए आधार नंबर देना अनिवार्य नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से इस फॉर्म में बदलाव करने की बात कही थी।

आरपी अधिनियम 1950 और मतदाता नामांकन फॉर्म में चुनाव आयोग द्वारा मांगे गए संशोधन उसी का परिणाम हैं। पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस दावे केतहत वह इस मुद्दे को संबोधित कर रहा है, नामांकन फॉर्म नहीं बदलने के लिए एक अवमानना ​​​​याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

दो महीने पहले चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को लिखा था पत्र

दरअसल, दो महीने पहले चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर आरपी अधिनियम 1950 की धारा 23(6) और धारा 28(2)(एचएचबी) में बदलाव का प्रस्ताव दिया था। इन धाराओं में कहा गया है कि किसी भी मतदाता को रजिस्ट्रेशन से वंचित नहीं किया जा सकता है या नामावली से हटाया नहीं जा सकता है। जो शख्स आधार नंबर नहीं देता है उसके पास “पर्याप्त कारण” होना चाहिए। चुनाव आयोग ने इसी “पर्याप्त कारण” की आवश्यकता को हटाने की मांग की है।

इसलिए नए मतदाताओं के नामांकन के लिए बने फॉर्म 6 में चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय से आधार विवरण से संबंधित विकल्प में संशोधन करने के लिए कहा है ताकि मतदाताओं को अपना आधार नंबर देने के लिए मजबूर न होना पड़े।