दिल्ली में जब-तब गैंगवार होते रहते हैं। आपसी दुश्मनी के कारण अपराधी गिरोह एक-दूसरे के खून के प्यासे बने रहते हैं। संपत्ति विवाद, जबरन वसूली, उगाही, रंगदारी आदि के चलते इनमें आपस में खींचतान चलती रहती है। ऐसे मामले भी देखने को मिलते हैं कि कभी जेल के अंदर, तो कभी जेल से लाते या ले जाते वक्त और यहां तक कि अब तो अदालत के अंदर ही गोलियों की आवाज सुनाई देने लगी है। पुलिस इस पर काबू पाने का भरसक प्रयास करती है, मगर अपराधी फिर नए ढंग से नई घटना को अंजाम दे देते हैं। सवाल है कि आखिरकार इस प्रकार हो रही गैंगवार से दिल्ली कब पूरी तरह मुक्त हो पाएगी। आखिर कब इस प्रकार के मामलों पर विराम लगेगा
’विजय कुमार धानिया, नई दिल्ली

पाकिस्तान की रट

एक बार फिर पाकिस्तान अपनी बयानबाजी के चलते अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेनकाब हुआ है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान ने फिर कश्मीर मुद्दे को हवा दी, जबकि पूरा विश्व जानता है कि कश्मीर का मामला भारत का आंतरिक मामला है। इसमें अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता ही नहीं है। इसके बावजूद पाकिस्तान बेवजह बार-बार यह हरकत करता है। भारत ने भी पाकिस्तान के इस बयान का बहुत ठोस और बेहतर तरीके से जवाब दिया और कहा कि आज कश्मीर में जो हालत हैं, उसके लिए कोई और नहीं, बल्कि पाकिस्तान जिम्मेदार है।

आज पूरा विश्व जानता है कि पाकिस्तान ही आग लगाता है और फिर उसे बाद में बुझाने का ढोंग करता है, क्योंकि जिस तरीके से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तालिबान की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे, इस बात से हम अंदाजा लगा सकते हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद को लेकर कितना उदार रवैया रखता है। छिपी बात नहीं है कि किस तरीके से तालिबानियों ने अफगानिस्तान में मानवता को ताक पर रखा हुआ है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि बीते कुछ दिनों में अफगानिस्तान में जो कुछ भी घटा उसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पाकिस्तान ने किसी न किसी प्रकार से तालिबान को सहयोग किया है। इसके अलावा पाकिस्तान आतंकियों की शरण और जन्म स्थली दोनों है। यह भी जाहिर है कि पाकिस्तान में कैसे अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जाता है। इसलिए भारत पर कोई आरोप लगाने से पहले पाकिस्तान अपने गिरेबान में झांके।
’सौरव बुंदेला, भोपाल

बेसहारा पशु

जिस तरह बढ़ती जनसंख्या देश के लिए एक गंभीर विषय है, ठीक उसी प्रकार सड़कों, चौराहों और गलियों में घूमते छुट्टा पशुओं की बढ़ती संख्या भी है। स्वार्थी लोग, जब तक इनसे लाभ मिलता है तब तक तो इनको पालते हैं। फिर जब यही पशु बूढ़े हो जाते हैं, दूध नहीं देते तो इनके मालिक सड़क पर दर-दर की ठोकरें खाने को छोड़ देते हैं। सड़क पर ठेला लगाने वालों, दुकानदारों, राहगीरों और अन्य लोगों द्वारा इनके ऊपर घातक प्रहार भी किए जाते हैं। इस तरह इन पशुओं को शारीरिक पीड़ा भी सहनी पड़ती है। लगातार सड़कों पर इनकी बढ़ती संख्या के कारण आए दिन सड़क दुर्घटनाएं भी देखने को मिल रही हैं। ऐसे में इन छुट्टे पशुओं को लेकर सरकार कोई उचित कदम उठाए। इन्हें बेसहारा छोड़ने वाले इनके मालिकों को भी ऐसा करने पर उचित दंड का प्रावधान करे, ताकि ये संकीर्ण मानसिकता वाले लोग पशुओं को बेसहारा छोड़ने से पहले एक बार विचार अवश्य करें।
’श्याम मिश्रा, दिल्ली विश्वविद्यालय