मार्च, 2009 में मुंबई एटीएस ने हेरोइन तस्करी के आरोप में एनसीबी के तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक व 1995 बैच के आइपीएस साजी मोहन को गिरफ्तार किया था। एनसीबी ने अपने मालखाने के दस्तावेज जांचे तो पता चला कि साजी मोहन ने जम्मू-कश्मीर से जब्त हेरोइन का लगभग आधा हिस्सा अन्य आरोपियों के साथ बेच दिया था। साजी मोहन हेरोइन की जगह पर पाउडर रख देते थे ताकि किसी को शक न हो। साजी मोहन को अदालत ने 37 किलो हेरोइन रखने के जुर्म में 15 साल की सजा सुनाई थी। आज समीर वानखेड़े पर लगे आरोपों के बाद दिखता है कि नशेबंदी से जुड़ी सरकारी एजंसियां खुद भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकी हैं। इनका मकसद आरोपियों से वसूली करना हो जाता है। पहले जिन संस्थाओं पर माफिया को संरक्षण देने का आरोप लगता था अब वे खुद माफिया की तरह व्यवहार कर रही हैं। सरकारी एजंसियों के भ्रष्टाचार पर बेबाक बोल

ऐ शैख आदमी के भी दर्जे हैं मुख्तलिफ
इंसान हैं जरूर मगर वाजिबी से आप
-बेखुद देहलवी

कथित छह ग्राम मादक पदार्थ पर कानूनी संग्राम के बाद फिल्म अभिनेता शाहरूख खान वकीलों की फौज के साथ अपनी फोटो सोशल मीडिया पर डालते हैं। शाहरूख खान की यह तस्वीर निजी तौर पर उनके लिए पीड़ामुक्ति का अहसास हो सकती है। दूसरी तरफ, यह तस्वीर इस देश के हर उस ऐसे मजलूम और गरीब अभियुक्त का मजाक उड़ा रही है जो महज छह ग्राम चरस रखने के आरोप में दो से चार साल जेल में गुजार चुका है। बहुत से लोगों का परिवार इसलिए दागी बना दिया गया है कि उसके घर का कोई सदस्य जेल की सजा काट चुका है। क्योंकि इन आम लोगों के पास वकीलों की फौज नहीं थी।

आम लोगों के पास मुकुल रोहतगी जैसे आला वकील नहीं थे जिनकी दलीलों के बाद तकदीर का पाला बदल जाता है। जो दलील एक आम आदमी के मामले में खारिज होती है, वही आर्यन खान के मामले में वाजिब होती है। आम आदमी के पास तो इस तरह की फंतासी का भी सुख नहीं है कि यह सब तो मेरे बच्चे के करियर को चार चांद लगा देगा। अब वह जेल से खलनायक नहीं, नायक बन कर निकलेगा।

चंद दिनों में आर्यन खान का मामला मीडिया में वैसे ही भुला दिया जाएगा जैसा रिया चक्रवर्ती के चरित्र हनन के बाद भुला दिया गया था। लेकिन, इस बार पूरे एनडीपीएस एक्ट (राष्ट्रीय स्वापक औषधि एवं मनप्रभावी पदार्थ नीति) के ढांचे पर जो सवाल उठा है उसका मुकम्मल जवाब न मांगा जाए तो पूरे कानूनी तंत्र की ऊर्जा ऐसे ही बर्बाद होती रहेगी और, हमारे ढांचे का कोई पीड़ित फिर से मुजरिम के रूप में पेश कर दिया जाएगा। कई जटिलताओं के कारण इस कानून का पूरा ढांचा ही भ्रष्टाचार का कारण बन गया है।

पश्चिमी और यूरोपीय देशों के समाज और कानून से हमने सिर्फ यह नकल कर लिया कि हमें मादक पदार्थों के सेवन को बहुत गंभीरता से लेना है। युवा वर्ग को गलत राह पर जाने से रोकने के लिए इस पर लगाम जरूरी है। लेकिन हम तो मूल से भी ज्यादा मौलिक हो गए। मेक्सिको, इटली, फ्रांस जैसे देश मादक पदार्थों के कारोबार को लेकर शून्य सहनशीलता बरतते हैं।

हमने शून्य सहनशीलता का रुख गलत दिशा में मोड़ दिया। वहां के समाज और कानून से ज्यादा वहां की फिल्मों और वेब सीरिज से प्रेरणा लेकर इसे पूरा नाटकीय बना डाला है। पश्चिमी देशों के कानूनों में मादक पदार्थ लेनेवाले नहीं बल्कि उसका कारोबार करने वालों पर कानूनी शिकंजा कसा जाता है। वहां हमला उपभोक्ता पर नहीं आपूर्तिकर्ता पर होता है।

इस मामले में आम तौर पर उपभोक्ता खुद ही पीड़ित होता है। वहां इस तरह के गैरजरूरी छापे नहीं पड़ते और न ही एक पीड़ित को पूरे देश और समाज का खलनायक बना कर पेश कर दिया जाता है। आर्यन खान वाले मामले के बाद भारत में भी बात उठी है कि मादक पदार्थों का सेवन करने वालों को जेल नहीं बल्कि पुनर्वास केंद्र भेजा जाना चाहिए।

कई ऐसे देश हैं जहां पर अफीम जैसे कुछ मादक पदार्थों का इस्तेमाल कानूनी है, जिसकी बिक्री वैध खिड़की से होती है। भारत के भी मामलों को देखें तो उपभोक्ता को मादक पदार्थ मिलने का स्रोत खुद एनसीबी है।

एक तो हमने मादक पदार्थों को लेकर खराब कानून बनाया। दूसरा, यह कि उसे लागू और भी खराब तरीके से कर रहे हैं। सरकारी तंत्र ही आरोपी की परेड शुरू करा कर उसकी निजता का हनन कर देता है। मादक पदार्थों के आपूर्तिकर्ता के बजाए उपभोक्ता को पकड़ कर नजीर और नायक बनाए जाने लगते हैं कि फलां अधिकारी ने इसे-इसे पकड़ा। यह सिर्फ रिया चक्रवर्ती और आर्यन खान की बात नहीं है। हमारी एजंसियों का मकसद इन्हें पकड़ना नहीं बल्कि इनका शोषण करना हो गया है।

आज के समय में सबसे खराब पक्ष यह है कि पूरी कवायद को राष्ट्रीय, पाकिस्तान भेजो और अधिकारी के मुसलिम पिता तथा निकाह में बदल दिया गया। अपने काम को लेकर सवालों के घेरे में आए अधिकारी के लिए टीवी कार्यक्रम ‘बिग बास’ के प्रतिभागी की तरह जनता से वोट और समर्थन जुटाया जाने लगता है तो उसकी बीवी को अलग से प्रेस कांफ्रेंस कर अपने पति को सही मानने की गुहार लगानी पड़ती है।

आर्यन खान के मामले से यह भी सामने आया कि मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) किस तरह भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। इस मामले से ही शुरू कर नजीर बननी चाहिए कि आर्यन खान के साथ तो इंसाफ हो ही, लेकिन उसे पकड़ने वाले समीर वानखेड़े पर जो इल्जाम लगे हैं उसकी सच्चाई की भी जांच हो। अगर वे किसी भी तरह की गड़बड़ी के दोषी साबित होते हैं तो सजा भुगतें। समीर वानखेड़े पर भ्रष्टाचार का इल्जाम लगाने वाले कोई आम आदमी नहीं महाराष्ट्र सरकार के मंत्री हैं और विभाग से ही जुड़ा व्यक्ति गवाह बन चुका है।

आर्यन खान मामले के बाद जिस तरह पूरी व्यवस्था पर सवाल उठे हैं उसे किसी तार्किक अंत पर ले जाना होगा। ऐसा आगे भी न होता रहे कि जिसके ऊपर भ्रष्टाचारियों का हाथ है वो सब कुछ करके साफ निकल जाए। जिसकी कोई पहुंच न हो वो जेल में अपना भविष्य बर्बाद करे।

इसके पहले मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक बरामद होने का मामला आया था और पूरे खुफिया से लेकर पुलिस तंत्र का भ्रष्टाचार बेनकाब हो गया। पुलिस ही फिरौती में मशगूल मिली। बड़ी मछली, छोटी मछली से पैसे बना रही थी। अगर हमारी खुफिया एजंसियों पर पैसे की वसूली के लिए इस तरह किसी को जाल में फंसाने के इल्जाम लगेंगे तो फिर आम लोगों के बीच व्यवस्था की क्या साख रह जाएगी।

ऐसे माहौल में भाजपा सांसद संजय पाटिल की आवाज गूंजती है, ‘ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) मेरे पीछे नहीं पड़ेगी क्योंकि मैं भाजपा का सांसद हूं। हमें दिखावे के लिए चालीस लाख रुपए की महंगी कार लेने के वास्ते कर्ज लेना पड़ता है। हमने कितना कर्ज ले रखा है, यह देख कर ईडी को हैरानी होगी’।
सत्ता दल में होते हुए चैन की नींद सोने की बात सिर्फ भाजपा के संदर्भ में नहीं है। यह सच हर उस दल का है जो सत्ता में होता है। पंजाब में अकाली दल से जुड़े लोगों पर मादक पदार्थों के कारोबार के आरोप लगे थे।

हरियाणा की सरकारों से जुड़े लोगों पर नशेबंदी के दौरान शराब के अवैध कारोबार करने के आरोप लगे थे। बिहार में दारूबंदी के बाद बड़े पैमाने पर दलित और अन्य कमजोर तबका जेलों के अंदर बंद है। कोई एक बोतल इधर से उधर करने में पकड़ा गया तो कोई खुशी या गम में पीने के कारण। इन आरोपियों का आयाम इतना बड़ा है कि उनकी सुनवाई का नंबर आने तक वे लंबा समय जेल में काट चुके होते हैं। इनके पास इतना संसाधन नहीं होता कि वे आर्यन खान की तरह जल्दी न्याय ले सकें।

जब राज्य नशेबंदी जैसा खास तरह का कानून बनाता है तो उसका मकसद जनता की भलाई होना चाहिए। ऐसे कानूनों में जनता का एक बड़ा तबका शामिल होता है और जरा सी चूक उसे मुलजिम बना देती है। जनता की मुक्ति के लिए बनाया ढांचा कैसे उलटा पड़ जाता है एनडीपीएस एक्ट इसका नमूना है।

अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक से लेकर आर्यन खान वाले मामले को देखें तो सरकारी महकमों को लेकर एक बड़ी चिंता सामने खड़ी होती है। अब इन संस्थानों की भूमिका ही बदल गई है। पहले इन पर आरोप लगता था कि ये माफिया को संरक्षण देते हैं, उनके साथ इनकी मिलीभगत होती है। अब ये महकमे ही माफिया की भूमिका में आ गए हैं। सरकारी संस्थानों का इस तरह का अपराधीकरण हमारी पूरी व्यवस्था को खोखला कर रहा है। किसी भी राष्ट्र को इस तरह की अराजक स्थिति से बचना होगा। हम इस मामले में करो या मरो वाली स्थिति में पहुंचे हुए से दिख रहे हैं तो अब ठोस करना ही होगा।

जम्मू-कश्मीर के कई जिलों में एसपी के रूप में तैनात रहे साजी मोहन का तबादला 2007 में चंडीगढ़ के मादक पदार्थ नियंत्रण विभाग में हुआ। उन्होंने ड्रग्स के कई सनसनीखेज कारोबार का भंडाफोड़ किया था। वे जो मादक पदार्थ जब्त करते थे, उसे सरकारी आंकड़ों में कम दिखाते थे। हरियाणा पुलिस के एक कांस्टेबल की हेरोइन के साथ गिरफ्तारी और उसकी निशानदेही के बाद एटीएस ने मुंबई में मादक पदार्थ बेचने के लिए साजी मोहन को गिरफ्तार किया था।