इस ‘रामपाल कांड’ ने देश और उसके विचारवान लोगों के सामने कुछ सवाल खड़े कर दिए हैं। पहला सवाल राष्ट्र…
पिछले दिनों तथाकथित संत रामपाल के आश्रम में जो कुछ हुआ वह बहुत शर्मनाक है, इससे पहले आसाराम बापू और…
प्रफुल्ल कोलख्यान सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ समय पहले अपनी एक टिप्पणी में न्यायिक अति-सक्रियता से बचते हुए और कार्यपालिका की…
सदफ़ नाज़ प्यारी रेहाना जब्बारी! तुम्हारी मां ‘शोलेह’ के नाम तुम्हारा खत पढ़ा। तुम्हारी फांसी और उसके बाद इस खत…
उमाशंकर सिंह का ‘ध्यान भटकाने का मंत्र’ (4 अक्तूबर) और ब्रजेश कानूनगो का ‘सुनो कहानी’ (4 नवंबर), ये दोनों लेख…
बीरेंद्र सिंह रावत की टिप्पणी ‘आस्था की मुसीबत’ (समांतर, 7 नवंबर) पढ़ा। दिल्ली महानगर में लगता है कि आस्था जी…
विकेश कुमार बडोला कई बार ऐसा लगता है कि देश का सामूहिक जीवन बहुत अधिक कुंठाओं का शिकार है। इसके…
निवेदिता पच्चीस साल पहले भागलपुर जख्मों से भर गया था। एक बार फिर उसके जख्म हरे हो गए। स्मृति भी…
जब भी सरकारें बदलती हैं तब नई सरकारें यह दिखाने की कोशिश करती हैं कि वे जो करेंगी वह एकदम…
हिंदी प्रचार-प्रसार संबंधी कई राष्ट्रीय संगोष्ठियों में मुझे शामिल होने का सुअवसर मिला है। इन संगोष्ठियों में अक्सर यह सवाल…
प्रशांत कुमार किसी जमाने में कहा जाता था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। शहरों से नहीं, गांवों…