
‘धारा को किताबों से कितना प्यार है? शायद थोड़ा ज्यादा ही’। यह पंक्ति टीवी पर दिखाए जाने वाले फेसबुक के…
यह कोई बताने वाली बात तो नहीं, लेकिन पिछले कुछ समय के दौरान एक बदलाव यह आया है कि आजकल…
आदिकाल से ही हमारा समाज जाति और वर्गों में बंटा हुआ है। उच्च कही जाने वाली जातियां और ऊंचे वर्गों…
आम के बगीचे में गुलेल से आम तोड़ना, गुल्ली-डंडा खेलते-खेलते गांव के बाहर तक चले जाना, नहर को तैर कर…
पराई पीड़ा का अहसास संवेदनशीलता की चादर में लिपट कर साहित्यकार के सिर पर एक बोझ की तरह इकट्ठा होता…
मेरे घर के अहाते के सामने एक सरकारी नल लगा हुआ है। मैं अक्सर देखती हूं कि एक दूध बेचने…
इंद्रधनुषी रंगों से भरे पल हमारी जिंदगी की खूबसूरती बढ़ाने के साथ-साथ हममें नई ऊर्जा भरते हैं। हर रंग हमसे…
अब विश्राम का नाम ही श्रम हो गया है। इसी विश्राम के साथ तरक्कियां मिल जाती हैं। उपलब्धियों के चांद-सितारे…
एक प्रसंग के मुताबिक एक बार रामकृष्ण परमहंस ने युवा नरेन यानी विवेकानंद से कहा- ‘नरेन जरा पास के पुकुर…
जीवन के सुख-दुख में हमारे हर भाव के साथ प्रकृति खड़ी रहती है। जब भीषण गर्मी से मैदानी इलाकों में…
कोई भी दिन अपने साथ कई रंगों को समेटे होता है। पिछले महीने कुछ ऐसी ही अनुभूति लिए इस साल…
कक्षा की पिछली बेंच पर बैठे किसी आइंस्टीन की तलाश के लिए पारखी की नजरों की आवश्यकता होती है।