बीते सप्ताह चैनलों पर योगी ही योगी..। कई दिन तक संभल भी खबरों में रहा। छियालीस साल पहले के दंगों की बंद फाइल खुली! पक्षधर खुश होते दिखे। फिर आया ‘भागवत उवाच’ कि भारत की सच्ची स्वतंत्रता है राम मंदिर का निर्माण। जवाब में विपक्ष के एक नेता का आक्षेप आया कि किसी और देश में ऐसा बोलते तो देशद्रोह का मुकदमा चलता। इसके आगे यह भी कह दिया गया कि हम… ‘इंडियन स्टेट’ से लड़ रहे हैं।’ तुरंत प्रत्यारोप आया कि ऐसा कहने वाले पर देशद्रोह का मुकदमा होना चाहिए… वे नक्सलों की भाषा बोल रहे हैं। इसी शाम खबर आई कि कुछ पहले हमारे बाजार को गिराने का षड्यंत्र करने वाली ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ बंद हुई। कई चर्चकों ने चुटकी ली कि ‘हिंडनबर्ग’ के हिमायतियों को क्या हुआ कि कंपनी की इस ‘मौत’ पर भी इस कदर खामोश हैं।
फिर भी इन दिनों की सबसे रचनात्मक खबर महाकुंभ की रही, जिसमें अब तक सात करोड़ स्नान कर चुके। तरह-तरह के बाबाओं के रूप, विभिन्न ‘अखाड़ों’ के बाबाओं और अनुयायियों के अनुशासित ‘जन स्नान’ की सीधा प्रसारण वाली खबरें और ऊंचाई के कोण से दिखाते कैमरों में भीड़ ही भीड़… तमाम इंतजामों के बारे में बताते मंत्रमुग्ध से संवाददाता। तो भी निंदा-तत्त्व महान कि एक कहिन कि उतने लोग नहीं नजर आ रहे, जितने कि दावे किए जा रहे थे। इस बीच प्रधानमंत्री ने साढ़े छह किलोमीटर लंबी ‘सोनमर्ग सुरंग’ का उद्घाटन किया। उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री की कुछ तारीफ कर दी तो अधिकांश चैनलों में ‘इंडिया गठबंधन’ हिलता दिखा।
इसके बाद की सबसे बड़ी खबर बालीवुड के मुंबई से आई, जहां रहने वाले एक अभिनेता सैफ अली खान के घर पर रात को हुए जानलेवा हमले की घटना हुई। खबर थी ही इतनी सनसनीखेज कि आते ही चैनलों में छा गई। अधिकांश चैनल दो दिन तक बार-बार एक ही कोण से सीसीटीवी के फुटेज दिखाते रहे कि किस तरह काली शर्ट पहने, चेहरे पर अंगोछे का डाठा बांधे, पिट्ठू बैग पीठ पर लादे एक युवक सीढ़ियां चढ़ रहा है… उतर रहा है..!
तीसरे दिन खबर आती है कि एक ‘संदिग्ध’ को पकड़ा गया है, जिससे पूछताछ की जा रही है… पच्चीस पुलिस टीमें जांच में लगी हैं… हमलावर पहले बांद्रा, फिर दादर फिर वरसोवा के सीसीटीवी में दिखा। फिर वह तिपहिया चालक केंद्र में आया, जिसने लहूलुहान हीरो को उसके बेटे तैमूर के साथ देर रात अस्पताल पहुंचाया। ऐसी बाइटों के साथ अस्पताल के उस डाक्टर का वह बयान कई चैनलों में बार-बार दिखता रहा कि वे अस्पताल में एक हीरो की तरह आए। डाक्टर बताते रहे कि रीढ़ की हड्डी के पास घुसे चाकू की ढाई इंच लंबी फाल को आपरेशन करके निकाला गया है। अगर कुछ सेंटीमीटर इधर-उधर लगता तो पता नहीं क्या होता। इसे लेकर कई चैनल हीरो के परिवार के सदस्यों को दिखाते रहे। उधर कुछ नेता भी इस घटना को लेकर राजनीतिक कुश्ती लड़ते दिखे। एक कहिन कि जब इस शहर में जानी-मानी हस्तियां सुरक्षित नहीं तो कोई सुरक्षित नहीं। कई ने इसके लिए राज्य सरकार को तो कोसा ही, साथ में केंद्र सरकार को भी कोस दिया और यह भूल गए कि कानून व्यवस्था राज्य का मसला है!
असल खबर दिल्ली में रेवड़ियों की ‘डेली बरसात’ की रही। एक दल दिल्ली की महिलाओं को इक्कीस सौ रुपए महीने देने की बात कह रहा है तो दूसरा पच्चीस सौ रुपए महीने की और तीसरा भी पच्चीस सौ दे रहा है। एक कह रहा है कि हमने मुफ्त बिजली, पानी, बस यात्रा, तीर्थयात्रा, शिक्षा, इलाज दिया है और अगर हम आए तो आटो वालों को इतने का बीमा, आरडब्लूए की ‘सिक्युरिटी’ के लिए इतना देंगे। इसके बरक्स दूसरा दावेदार कह रहा है कि ‘जहां झुग्गी वहां मकान’, बिजली, पानी, यात्रा, तीर्थ, शिक्षा, इलाज बीमा सब फिर पेंशन बढ़ाएंगे। दिल्ली के लिए डबल इंजन की सरकार जरूरी।
यह है ‘मुफ्त’ की ‘रेवड़ी संस्कृति’! आम लोगों का ही पैसा और लोगों पर ही अहसान। गजब की सौदेबाजी कि प्यारी पब्लिक… तू कुछ न कर… बस हमें वोट दे… बदले में ये ले, वो ले। यानी मुफ्त का ‘समाजवादी स्वर्ग ले’… बस वोट दे… हमें कुर्सी दे..! गजब का खेल कि पब्लिक का पैसा और उसी पर अहसान करते-करते तीन-तीन दानी पहलवान कि तू ये ले, वो ले… मान हमारा अहसान, दे हमें वोट। दूसरे को दिया तो वह मारेगा चोट..!
फिर हर चैनल पर सभी दानियों की अपनी-अपनी जनता, अपने-अपने कार्यकर्ता, अपने अपने मतदाता… हर ‘सीधे प्रसारण’ में चैनलों का ‘संतुलन’ और वैसी ‘सामग्री’। क्या पता कौन दिल्ली का मालिक हो। खबरों में कभी-कभी तो यहीं पता नहीं लगता कि हम खबर देख रहे हैं कि विज्ञापन! रेवड़ियां दे-देकर अरसे से एक लालची और भ्रष्ट बनाई जाती जनता और इसके लिए भी जनता पर अहसान करते नेता कि हमीं हैं तुम्हारे तारणहार! चलते चलते: दिल्ली की चुनावी बहसों की लपेट में आया ‘शीशमहल’ किसी का ‘टीसमहल’ बनता दिखा!