हर रोज हंगामा है। संसद से लेकर बिहार विधान सभा के भीतर-बाहर हंगामा है। संसद हर रोज शुरू होती है। लोकसभा शुरू होती है। राज्यसभा शुरू होती है, लेकिन शुरू होते ही हंगामा शुरू हो जाता है। विपक्ष के सांसद खड़े हो जाते हैं। नारे लगने लगते हैं। ‘वेल’ या आसंदी में आने लगते हैं। अध्यक्ष चर्चा शुरू करने के लिए कहते रहते हैं, लेकिन शोर होता रहता है। कुछ देर विपक्षी सांसदों की ‘समझौवल बुझौवल’ के बाद अध्यक्ष आखिर कार्यवाही को दोपहर दो बजे तक स्थगित कर देते हैं। तब सारे विपक्षी सांसद बाहर गेट पर या गांधी जी की प्रतिमा के पास आ जाते हैं। उनके हाथों में पोस्टर और बैनर होते हैं, जहां मांगें लिखी होती हैं, नए-नए नारे लिखे होते हैं।

जैसा दिल्ली में होता है वैसा ही बिहार विधानसभा में होता दिखता है

जैसा दिल्ली में होता है वैसा ही बिहार विधानसभा में होता दिखता है। वहां भी विपक्ष विरोध प्रदर्शन करता रहता है। विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री समझाते रहते हैं कि विधानसभा चलने दीजिए।

आखिर अध्यक्ष विधानसभा की कार्यवाही दोपहर दो बजे तक स्थगित कर देते हैं। तब विपक्षी विधायक बाहर आकर नारे लगाने लगते हैं। हाथों में पोस्टर लिए रहते हैं। वे हर रोज ‘काले कपड़े’ पहनकर आते हैं और हाथों में हरे रंग के पोस्टर लेकर आते हैं। रंग-संयोजन भी गजब है। वे अपनी मांगों को लेकर नारे लगाते रहते हैं। उनकी मांग है कि ‘एसआइआर’ यानी मतदाता सूची पुनरीक्षण पर रोक लगाई जाए।

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सत्ता दल के एक नेता एक चैनल पर कहते दिखते हैं… ये राष्ट्रीय जंगल दल है… ये हंगामा करते हैं..! सदन में मुख्यमंत्री कहते दिखते हैं कि सारा विपक्ष एक ही तरह का कपड़ा पहनकर आते हैं। सत्तापक्ष कहता है कि कार्यवाही चलने दीजिए, तो जवाब में विपक्ष कहता है कि सदन की कार्यवाही चलाना सत्तापक्ष की जिम्मेदारी है। विरोध करते-करते बिहार के एक विपक्षी नेता कह उठते हैं कि जरूरत हुई तो हम चुनाव का ‘बहिष्कार’ करेंगे! प्रतिक्रिया में सत्ता के एक सहयोगी नेता कह देते हैं कि हिम्मत हो तो ‘बहिष्कार’ करके देखें!

दिल्ली से पटना तक ऐसे ही दृश्य छाए रहते हैं। फिर एक दिन विपक्ष के सांसद संसद के गेट पर एक बड़ा काला बैनर लिए नारे लगाते दिखते हैं। बैनर पर ‘लोकतंत्र’ के हिज्जे में एक अक्षर की छपाई देख एक सत्ता प्रवक्ता ने कटाक्ष किया कि वे सही हिंदी तक नहीं लिखना जानते। फिर एक दिन विपक्षी सांसद काले कपड़े पहने संसद के गेट पर ‘एसआइआर’ यानी ‘मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण कार्य’ रोकने के लिए नारे लगाते दिखते हैं।
चुनाव आयोग ‘निशाना’ बना हुआ है। बिहार के चुनाव से पहले किए जाते इस ‘पुनरीक्षण कार्य’ की हर दिन आलोचना होती है, तब भी काम चलता रहता है।

हर दिन एक नया बवाल, कहीं टीका तो कहीं वक्फ, धर्मनिरपेक्षता से लेकर कथा तक, राजनीति ने सबमें घुसपैठ की है

विपक्ष कहता है यह बिहार के गरीबों, अल्पसंख्यकों को वोट देने से वंचित करने की साजिश है। एक विपक्षी नेता कहते आए हैं कि आयोग सत्ता के लिए काम करता है। फिर वही कहे कि महाराष्ट्र का चुनाव चोरी किया गया, बिहार का भी किया जाने वाला है। जब सत्ता प्रवक्ता जवाब देते हैं, तो उनको भी सुनना पड़ता है कि चुनाव आयोग का जवाब ये क्यों देते हैं… क्या ये मिले हुए हैं!

इस तरह विपक्ष कठघरे में खड़ा करता रहता है, चुनाव आयोग घिरा हुआ दिखता है। बहुत हुआ तो अपने काम से जुड़े तथ्य आगे रख देता है, लेकिन वह दलों की तरह ‘प्रति अभियान’ नहीं चला सकता। कोई एंकर आयोग का पक्ष लेता है. तो वह भी घेरे में लिया जाने लगता है। चुनाव आयोग लाख सफाई दे, तो भी कहा जाता रहता है कि आयोग सत्ता के लिए काम करता है… चुनाव चुराता है… हमारे पास पक्के प्रमाण हैं।

जब से उपराष्ट्रपति ने अपने पद से एक दिन अचानक इस्तीफा दिया है, तब से सारे ‘कांड’ पर ‘जितने मुंह उतनी बातें’ हैं कि इतिहास में उपराष्ट्रपति पद से यह पहला इस्तीफा है… कि उपराष्ट्रपति तो इन्हीं के बंदे थे, तब ऐसा क्या हुआ कि इस्तीफा देना पड़ा। चर्चा में यह बात जरूर आती रही कि एक बड़े न्यायाधीश के घर से जलते नोटों की बरामदगी को लेकर अब तक हुई जांच और उसमें आए आरोपों को लेकर उनके खिलाफ ‘महाभियोग’ चलाने को लेकर विपक्ष के नोटिस की सूचना सत्ता को न बताने की बात ने सत्ता के साथ उनके संबंधों में दरार डाल दी और इस्तीफा हुआ। इस घटना ने विपक्ष की ‘मनचाही’ सी कर दी। सत्ता में ‘सब कुछ ठीकठाक है’ का ‘मिथ’ अचानक भंग होता दिखा!