सत्तापक्ष और विपक्ष के सभी नेतागण शोकमग्न दिखे! सभी के चेहरे गंभीर और दुखमय दिखे। मन में भले और कुछ चलता हो, लेकिन चेहरों पर दिखा एक प्रकार का ‘शोकानुशासन’ जैसा! कुछ पहले के तने हुए चेहरे, जरा नरम दिखे! गुरुवार की रात दस बजे के आसपास पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन की खबर जैसे ही आई, वैसे ही हर चैनल पर चलते ‘राजनीतिक युद्ध’ अचानक ‘शांत’ होते दिखे! चैनलों का अपना मिजाज भी कुछ बदलता-सा दिखा। धीरे-धीरे चैनल मनमोहनमय होते दिखे। एंकर और विशेषज्ञ मनमोहन सिंह के जीवनवृत्त और देश को योगदान की चर्चा करने लगे।

प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, गृहमंत्री, रक्षामंत्री समेत अधिकांश केंद्रीय मत्रियों और कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं के शोक संदेश चैनलों में उल्लिखित होते रहे। सभी चैनलों पर बहुत से नेताओं और राजनीतिक विशेषज्ञों द्वारा रेखांकित की जाती उनके व्यक्तित्व की सज्जनता, सरलता, उनकी स्थितप्रज्ञता, उनके शांत स्वभाव की ताकत, तर्क और तथ्यपूर्ण सटीक बयानों और चुनिंदा शेरों के जरिए दिए जाते जवाबों के टुकड़े दिखाए जाते रहे, जिनमें मनमोहन जी का ही बोला उद्धरण रहा कि : ‘हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी! न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली!’

सबसे भावुक संदेश राहुल गांधी का दिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने अपना गुरु और मागदर्शक खो दिया। सबका मानना रहा कि किसी ने उन पर भले ही कितनी भी कड़वी टिप्पणी की हो, लेकिन उन्होंने जवाब में किसी को भी कभी कड़वा नहीं बोला।

उनके अंतिम दर्शन करने और अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष नड्डा, गृहमंत्री और अन्य मंत्री पहुंचे। गांधी परिवार भी उनके दर्शन करने और श्रद्धंजलि अर्पित करने पहुंचा। एक विशेष प्रसारण में एक चैनल पर प्रधानमंत्री मोदी ने मनमाहेन सिंह को एक नेक इंसान बताया। उन्होंने उनकी विनम्रता, सौम्यता और बौद्धिकता को भावुक होकर याद किया और बताया कि किस तरह वे कई बार वीलचेयर पर संसद में वोट डालने आए। हालांकि वे जानते थे कि सत्ता पक्ष के पास बहुमत है। वे अपने कर्तव्यों के प्रति हमेशा निष्ठावान रहे। कठिन वक्त में उन्होंने देश को आर्थिक संकट से उबारा। चैनल बार-बार बताते रहे कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव के मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री रहते हुए उन्होंने संकट में फंसी अर्थव्यवस्था को किस तरह ‘उदारीकरण’ के रास्ते पर लाकर आगे बढ़ाया।

चैनल यह भी बताते रहे कि किस तरह उन्होंने लाइसेंस परमिट राज खत्म किया, सूचना का अधिकार कानून, आधार कार्ड, मनरेगा लाए, ‘परमाणु समझौता’ लेकर आए। उस वक्त उसके लिए उन्होंने अपनी सरकार तक को दांव तक पर लगा दिया, लेकिन ‘समझौता’ करके रहे। सभी मानते रहे कि देश की जो स्थिति आज है, उसमें उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है! यह भी खबर आई कि उनके निधन पर सात दिन का राष्ट्रीय शोक रहेगा और पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

बहरहाल, कुछ देर के लिए ही सही, मनमोहन सिंह के निधन ने सभी नेताओं को थोड़ा-थोड़ा ‘निर्मल’ कर दिया! कबीर की तरह मनमोहन जी ने भी ‘ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया’! लेकिन दुख का यह आकस्मिक वातावरण भी कुछ राजनीतिबाज तत्त्वों को रास न आया। इस वातावरण में भी उन्होंने अपनी ‘राजनीति का तड़का’ लगा दिया और कह दिया कि उनको ‘भारत रत्न’ मिलना चाहिए। फिर एक नेता ने भी कह दिया कि वे इस मांग का समर्थन करते हैं। इस बीच यह खबर बार-बार लिखी आती रही कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल बैठक जारी है। निधन की खबर आने से पहले कई चैनलों की बहसों के दृश्य एकदम ‘कपड़ा-फाड़’ छाप थे और अब वे ही मनमोहन जी के शोक में कुछ गंभीर से होते दिख रहे थे।

इससे पहले कई चैनलों की बहसों में कांग्रेस के कई नेताओं का केजरीवाल पर ‘एंटीनेशनल, फ्राड, चीट’ के आरोप रहे, जिस पर बहसों में ‘घमासान’ भी होता दिखता रहा और इस कारण कई एंकर ‘इंडिया’ गठबंधन को भी ‘टूटता-फूटता’ देखने लगे। ऐसी एक बहस में कांग्रेस के नेता संदीप दीक्षित भी अपने पूरे फार्म में नजर आए और उस चैनल पर नजर आए, जिस पर कांग्रेस के नेता तो क्या, ‘आधिकारिक प्रवक्ता’ तक नहीं जाते दिखे। साथ ही वे एंकर के और जनता के कई सवालों के जवाब बिना किसी उत्तेजना के देते रहे, लेकिन केजरीवाल पर नरम होते नहीं दिखे!

सप्ताह की दूसरी बड़ी ‘रस्साकशी’ मोहन भागवत के बयान और उनके विरोध में कुछ बाबाओं के बयानों को लेकर और अंत में संघ के पत्र में प्रकाशित इस आशय के विचार कि धर्म स्थलों की पहचान करना… ‘सिविलाइजेशनल जस्टिस’ के लिए जरूरी… ने संघ और भाजपा के कई प्रवक्ताओं/ विश्लेषकों को देर तक रक्षात्मक बनाए रखा। एक चैनल पर एक बाबा ने तो ‘सनातन बोर्ड’ बनाने की मांग करते हुए यहां तक कह दिया कि सनातन बोर्ड होगा तो उसका कानून ही चलेगा, अदालत का नहीं चलेगा। पता नहीं, ऐसे बाबा का ऐसा बयान चैनलों की पकड़ में क्यों नहीं आया?