प्रधानमंत्री ने पिछले रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मुख्य रूप से कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले और उसके बाद की घटनाओं पर बात की। खबरों के मुताबिक, मोदी ने कहा कि, ‘हर भारतीय के मन में पीड़ित परिवारों के प्रति गहरी संवेदना है। चाहे कोई किसी भी राज्य से हो, चाहे कोई भी भाषा बोलता हो, लेकिन इस हमले में अपने प्रियजनों को खोने वालों का दर्द हर कोई महसूस कर रहा है। मैं महसूस कर सकता हूं कि आतंकवादी हमले की तस्वीरें देखकर हर भारतीय का खून खौल रहा है।’
प्रधानमंत्री ने पूरे देश की भावनाओं को व्यक्त किया। उन्होंने भारत के लोगों की एकता, एकजुटता और संकल्प के बारे में बात की और वादा किया कि एक राष्ट्र के रूप में भारत अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करेगा। मैं उनके दृढ़ शब्दों की सराहना करता हूं।
अतिशयोक्तिपूर्ण दावे
मगर मुझे खेद है कि इस मौके पर प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा, वह सब सच नहीं था। हमले से पहले कश्मीर की स्थिति पर, मोदी ने कहा था कि, ‘कश्मीर में शांति लौट रही है; स्कूलों और कालेजों में रौनक है; निर्माण कार्य ने अभूतपूर्व गति पकड़ी है; लोकतंत्र मजबूत हो रहा है; पर्यटकों की संख्या रेकार्ड दर से बढ़ रही है; लोगों की आय बढ़ रही है, युवाओं के लिए नए अवसर पैदा हो रहे हैं..।’
इन बातों से सभी सहमत नहीं होंगे, और इस गहन चिंतन के क्षणों में मोदी जी भी अपने इन दावों को अतिशयोक्तिपूर्ण मानेंगे :
कश्मीर में शांति एक दूरगामी लक्ष्य है। 24 अप्रैल, 2025 को सर्वदलीय बैठक में गृह मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि जून 2014 से मई 2024 के बीच की अवधि में 1,643 आतंकवादी घटनाएं हुईं, 1,925 घुसपैठ की कोशिशें हुईं, 726 सफल घुसपैठ हुईं और 576 सुरक्षाकर्मी मारे गए।
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- स्कूलों में रौनक नहीं थी : एएसईआर 2024 की रपट से पता चला है कि 2018 के बाद वहां के सरकारी स्कूलों में दाखिले में गिरावट आई है। ऊपर की कक्षाओं में छात्रों की स्थिति और खराब हुई है। वे दूसरी कक्षा की किताबें भी नहीं पढ़ सकते हैं। सबसे विवादास्पद दावा यह था कि लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। जम्मू-कश्मीर का दर्जा घटाकर केंद्र शासित प्रदेश कर दिए जाने के बाद से वहां लोकतंत्र वास्तव में कम हो गया है। जम्मू-कश्मीर एक अर्ध-लोकतंत्र है, जिसमें उपराज्यपाल के पास अपार अधिकार हैं, जो मंत्रिपरिषद और निर्वाचित प्रतिनिधियों को नहीं दिए गए हैं। राज्य का दर्जा छीना जाना (और चुनाव के बाद बहाली का अधूरा वादा) एक निरंतर अपमान है, जो लोगों को परेशान करता है।
2023-24 में जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक बेरोजगारी दर 6.1 फीसद थी। प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से नीचे बनी हुई है। हालांकि, यह सच है कि पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन आतंकवादी हमलों ने इसे बुरी तरह बाधित कर दिया है।
भंग हुई आम सहमति
पहलगाम हमले के तुरंत बाद सभी वर्गों के लोगों ने सरकार का समर्थन किया। कांग्रेस और अन्य दलों ने सरकार द्वारा उठाए जाने वाले किसी भी कदम का बिना शर्त समर्थन करने के बयान दिए। अब अगर ऐसा लगता है कि आम सहमति भंग हो गई है, तो इसके लिए सरकार को खुद को दोषी मानना चाहिए। इसके कई कारण हैं : सरकार ने आश्चर्य व्यक्त किया, लेकिन पश्चाताप नहीं किया; किसी भी अधिकारी ने सुरक्षा में गंभीर चूक को स्वीकार नहीं किया; प्रधानमंत्री सऊदी अरब की अपनी यात्रा बीच में छोड़ कर दिल्ली लौट आए, लेकिन पहलगाम या श्रीनगर नहीं गए; एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गई, मगर मोदी जी ने उसमें भाग नहीं लिया और उसके बजाय पटना की एक रैली में जाना जरूरी समझा।
उसके बाद से राजनीतिक दलों और व्यक्तियों ने अलग-अलग रुख अपना लिया है। कांग्रेस कार्यसमिति के प्रस्ताव में कहा गया है कि ‘भाजपा आधिकारिक और छद्म सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से इस गंभीर त्रासदी का फायदा उठाकर ऐसे समय में, जब एकता और एकजुटता की सबसे अधिक आवश्यकता है, और अधिक कलह, अविश्वास, ध्रुवीकरण और विभाजन को बढ़ावा दे रही है।’
प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि पहलगाम में तीन-स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की जाए और ‘खुफिया विफलताओं और सुरक्षा खामियों, जिसके कारण ऐसा हमला संभव हुआ, का व्यापक विश्लेषण किया जाए।’ बदले की कार्रवाई के लिए राष्ट्रवादी आह्वानों के बीच, रा के पूर्व प्रमुख और कश्मीर के जाने-माने विशेषज्ञ एएस दुलत ने स्पष्ट कहा कि ‘युद्ध कोई विकल्प नहीं है… यह न केवल अंतिम विकल्प है, बल्कि अंतिम बुरा विकल्प है।’ सिंधु जल संधि के निलंबन पर, पाकिस्तान में पूर्व उच्चायुक्त शरत सभरवाल ने करण थापर से कहा कि उन्हें नहीं लगता कि ऐसा कदम उठाया जाना चाहिए, लेकिन वे सरकार का साथ देने को तैयार हैं।
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने हमले के लिए टीआरएफ या लश्कर को दोषी नहीं ठहराया या गैर-मुसलिमों को बेशर्मी से निशाना बनाने का आरोप नहीं लगाया; फिर भी सरकार ने प्रस्ताव को एक मनमाफिक मोड़ देने की कोशिश की। चीन ने इस मामले में कोई धूर्तता नहीं दिखाई: उसके विदेश मंत्री वांग यी ने आतंकवाद पर पाकिस्तान की दृढ़ कार्रवाई की प्रशंसा की, पाकिस्तान की वैध सुरक्षा चिंताओं को समझने की बात कही और अपने सुरक्षा हितों की रक्षा करने में पाकिस्तान का समर्थन किया।
निर्णायक कार्रवाई की जरूरत
पहलगाम हमले को दस दिन बीत चुके हैं। सैन्य विशेषज्ञों ने बताया है कि ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कोई हैरान करने वाली कार्रवाई नहीं हो सकती और बमवर्षक विमानों को पहले से टोह लगा कर रोका जा सकता है। इसके अलावा, जैसा कि अजय साहनी ने बताया है (‘द रोड फ्राम पहलगाम’, इंडियन एक्सप्रेस, 24 अप्रैल, 2025), ऐसी कार्रवाइयों पर सवाल उठ सकते हैं या इनके रणनीतिक परिणाम संदिग्ध हो सकते हैं।
भारत की सैन्य श्रेष्ठता को देखते हुए, मुझे यकीन है कि अन्य विकल्प भी हैं। एक समाचार में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने रक्षा बलों को ‘खुली छूट’ दे दी है। लोकतंत्र में निर्णय प्रधानमंत्री के ही होते हैं, सेना निर्णयों को क्रियान्वित करती है। कश्मीर में उत्पात मचाने वाले देश और उसके आतंकवादियों के खिलाफ भारत की निर्णायक और निवारक कार्रवाई होनी चाहिए। भारत इंतजार कर रहा है।