पिछले सप्ताह दिल्ली आई मैं। कई दिनों बाद देखा कि मेरे घर के सामने कचरे का ढेर बना हुआ है। दिल्ली के एक गांव में है मेरा घर और सामने सड़क के पार, एक तालाब है जिसके किनारे ये कूड़े का ढेर अचानक नजर आया। थोड़ी पूछताछ करने के बाद मालूम पड़ा कि शिकायतें औरों ने भी की थीं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होने वाली है, जब तक चुनाव समाप्त नहीं होता है। घर से थोड़ी दूर गई तो देखा कि सड़ते कचरे के ढेर जगह-जगह बन गए हैं। फिर एक टीवी चैनल पर एक कार्यक्रम देखा, जिसमें एक बहादुर पत्रकार उन लोगों की बस्तियों में घूमते दिखा जो कचरे की उन पहाड़ियों के साये में रहते हैं, जिनको अरविंद केजरीवाल ने पूरी तरह हटाने के वादे कई बार किए हैं पिछले दशक में।
पत्रकार को बहादुर कह रही हूं मैं, क्योंकि जिन बस्तियों में वह घूम रहा था हाथ में माइक लिए, वे इतनी गंदी थीं कि उनका हाल देख कर ऐसा लगा जैसे उनमें सालों से किसी ने सफाई न की हो। एक नाले के आसपास हैं तुगलकाबाद की ये बस्तियां और बस्ती वालों का कहना है कि किसी ने पिछले डेढ़ साल में सफाई नहीं की है। उसके गंदे पानी में कचरा इतना फेंका गया है कि नाला ही कचरे का विशाल कूड़ादान बन गया है।
अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिल्लीवालों की कई शिकायतें हैं। निजी तौर पर मेरी सबसे बड़ी शिकायत यही है कि देश की राजधानी को उन्होंने इतना गंदा होने दिया है कि यहां जीना मुश्किल हो गया है। गंदगी के कारण न सिर्फ बीमारियां फैलती हैं इस शहर में, बल्कि वायु प्रदूषण का एक अहम कारण भी बन गए हैं सड़ते कूड़े के ढेर।
इस बार अगर केजरीवाल को वोट नहीं दूंगी, तो इसलिए कि उनके कार्यकाल में दिल्ली का हाल बद से बदतर हो गया है। यमुना के प्रदूषित पानी और बेहाल बस्तियों का सारा दोष नहीं लग सकता केजरीवाल पर, लेकिन एक अलग किस्म के राजनेता होने के नाते जब उन्होंने वादा किया था यमुना को साफ करने और कचरे के ऊंचे पहाड़ों को हटाने का, तो ऐसे कई लोग थे, जिनको विश्वास था कि वह कुछ करके दिखाएंगे। खोखले निकले केजरीवाल के वादे। साबित हो गया है कि वे अलग किस्म के राजनेता कभी थे ही नहीं।
इस सत्य को हजम कर ही रही थी कि केजरीवाल ने खुल कर हरियाणा सरकार पर आरोप लगाया यमुना में जहर डालने का। सच पूछिए तो उनकी इस बात को सुन कर मैं कुछ देर के लिए दंग रह गई थी, इसलिए कि इतना बड़ा आरोप लगाना बिना किसी सबूत के किसी भी बड़े राजनेता की छवि को नुकसान पहुंचाता है। ऊपर से आम लोगों में इस तरह की अफवाह फैलाने का काम जब कोई पूर्व मुख्यमंत्री करता है, तो आम जनता में आतंक फैलाने का काम होता है। जब चुनाव आयुक्त ने केजरीवाल से इस गैर-जिम्मेदारना बयान का सबूत मांगा, तो आम आदमी पार्टी के ये आला नेता इतना भड़क गए कि चुनाव आयुक्त पर राजनीति करने का आरोप लगाया।
जैसे-जैसे दिल्ली में मतदान का दिन पास आ रहा है, वैसे-वैसे केजरीवाल घबराए और परेशान से लगने लग गए हैं। क्या वे जानते हैं कि इस बार दिल्ली का चुनाव तब्दील होकर उनके निजी नेतृत्व पर एक रायशुमारी बन गया है? बहुत उत्साह और उम्मीद थी पिछले दिल्ली के चुनाव में केजरीवाल को लेकर और यही कारण था कि आम आदमी पार्टी को मतदाताओं ने दिल्ली की तकरीबन सारी सीटें दिलवाई थीं। इतनी बड़े बहुमत के बावजूद अगर केजरीवाल दिल्ली के लोगों को दिए गए वादे पूरे नहीं कर सके हैं, तो दोष उन्हीं पर लगेगा। माना कि कुछ हद तक मोदी सरकार ने केजरीवाल का काम करना कठिन कर दिया था, लेकिन अंत में उनके नेतृत्व का सवाल है।
इस बार प्रधानमंत्री दिल्ली में दिल लगा कर प्रचार कर रहे हैं भारतीय जनता पार्टी के लिए और सीधा आरोप लगा रहे हैं केजरीवाल पर, लेकिन अभी तक तय नहीं है कि आम आदमी पार्टी वास्तव में हारने वाली है। माना कि शिकायतें बहुत हैं आम आदमी पार्टी के खिलाफ और गुस्सा भी बहुत है दिल्ली के लोगों में, लेकिन इसके बावजूद आम आदमी पार्टी को तीसरी बार जिता सकते हैं केजरीवाल, इसलिए कि कुछ क्षेत्रों में उनका काम बहुत अच्छा रहा है। सरकारी स्कूलों में सुधार बहुत हुआ है, कुछ मोहल्ला क्लिनिक मैंने अपनी आंखों से देखे हैं और कहना जरूरी मानती हूं कि ये सुविधा मध्य वर्ग के लोगों के लिए बहुत ही कमाल की है। लेकिन इन दोनों चीजों के अलावा एक भी और कामयाबी केजरीवाल सरकार की गिनवाना मुश्किल है। ऊपर से उनके तथाकथित ‘शीशमहल’ ने उनकी आम आदमी वाली छवि को काफी चोट पहुंचाई है।
केजरीवाल अगर तीसरी बार बनते हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री, तो दोष भारतीय जनता पार्टी का होगा। उनकी तरफ से कोई खास नई चीज पेश नहीं हुई है और न कोई नया सपना दिखाया है दिल्ली के मतदाताओं को। डबल-इंजन सरकार का नारा कुछ थका-थका से लगने लगा है और योगी आदित्यनाथ का वे ‘कटेंगे तो बंटेंगे’ वाला भी कुछ पुराना हो गया है। रही कांग्रेस की बात, तो ऐसा लगता है जैसे उन्होंने इस बार बहुत बड़ी गलती की है केजरीवाल को ठुकरा कर अकेले चुनाव लड़ने की। इकट्ठा लड़ते तो केजरीवाल की जीत तकरीबन तय थी। इंडिया गठबंधन के बाकी राजनेता भी ऐसा सोच रहे होंगे इसलिए अखिलेश यादव आए केजरीवाल के साथ प्रचार करने और ममता बनर्जी ने शत्रुघ्न सिन्हा को अपनी तरफ से प्रचार करने भेजा। अगला मुख्यमंत्री दिल्ली का जो भी बन जाता है, उससे उम्मीद यही है कि दिल्ली में प्रदूषण और गंदगी को कम करके दिखाएं।