निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का कहना है कि बिहार में नीतीश कुमार के विकास का युग स्वर्णिम युग था। अब नीतीश की राजनीतिक साख खराब हो गई है। वे दावा करते हैं कि बिहार में राजद के कारण ही जद (एकी) का अस्तित्व है। पप्पू कांग्रेस को सलाह देते हैं कि वह बिहार में किसी के नेतृत्व में चुनाव न लड़े। गठबंधन के साथ अपना नेतृत्व रखे। उनका मानना है कि राहुल गांधी वैचारिक रूप से स्पष्ट हैं और कांग्रेस पूरे देश की पार्टी है। राजद की छवि खराब हो चुकी है इसलिए कांग्रेस उसे समस्त यादव वोट का पर्याय नहीं समझे। उनका कहना है कि बिहार चुनाव का मुख्य मुद्दा कमजोर अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी है। नई दिल्ली में पप्पू यादव से कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के मुख्य अंश।

भारतीय राजनीति में निर्दलीय प्रतिनिधियों की अपनी भूमिका है और इस समय आप निर्दलीय प्रतिनिधि के अग्रदूत चेहरा हैं। दलीय, निर्दलीय भूमिकाओं का सफर कैसा रहा?
पप्पू यादव:
आम बच्चों के बारे में कहूं तो उनके लिए अंग्रेजी, गणित और विज्ञान मुश्किल विषयों में होते हैं। राजनीति इन्हीं तीन विषयों का मेल है। राजनीति की डगर कठिन है। सेवा और ईमानदारी जैसी असली राजनीति इस दुनिया में संभव नहीं। इसे हल्के में नहीं ले सकते। खास कर बिहार जैसे राज्य में जहां पेट से निकलते ही राजनीति शुरू कर देते हैं। यहां बेरोजगारी की दर ज्यादा है इसलिए सब बेकार बैठ कर राजनीति करते रहते हैं। आप चाहे भैंस की पीठ पर बैठे हैं फिर भी राजनीति कर रहे हैं। यहां संसदीय जीवन में कुल छह बार (चार बार निर्दलीय) जनता के द्वारा चुनाव जीतना एक बड़ी साधना है। ऐसी जनता के द्वारा समर्थन मिलना किसी के जीवन में सुकून और ऊर्जा देते हैं। यह साधना है। सेवा की साधना में कोई ‘रिटर्न’ नहीं मिलता। निर्दलीय होने का मतलब है सच्चाई के रास्ते पर बार-बार जाना।

यह मजबूरी तो नहीं है? कोई बड़ी पार्टी आपके साथ नहीं आना चाहती है।
पप्पू यादव:
मजबूरी कैसे हो सकती है? मुझे तो मधेपुरा से टिकट मिल ही गया था, क्या मजबूरी थी? बेटे को टिकट मिल जाता सुपौल से।

इतना प्यार है आपको अपने संसदीय क्षेत्र से?
पप्पू यादव:
मैं तो मधेपुरा से भी दो बार सांसद रहा। मैडम (पत्नी) रही हैं दो बार सुपौल से। अपनी विचारधारा पर कायम रहता हूं। जनता को मैं भगवान मानता हूं। जनता के अलावा मेरे लिए कुछ भी नहीं है। जिस पूर्णिया ने जन्म दिया, उसी ने कर्म दिया। वहां यादव, अगड़ा, पिछड़ा है ही नहीं। सबसे ज्यादा ओबीसी हैं। अल्पसंख्यक और दलित समुदाय के लोग मुझसे एकतरफा प्यार करते हैं। किसी भी जाति का गरीब मुझे प्यार करता है। मैंने पहले ही कहा था कि मरना पसंद करूंगा लेकिन पूर्णिया नहीं छोड़ूंगा।

इसका कोई खास कारण?
पप्पू यादव:
भैया यहां का ‘इमोशनल टच’। यहां के लोगों से पारिवारिक रिश्ता, बचपन से ‘हाफ पैंट’ के समय से पूर्णिया ने मेरी परवरिश की है। इसके पीछे और कुछ भी नहीं है इस भावनात्मक रिश्ते के अलावा।

आपने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया लेकिन वहां से आपको टिकट नहीं मिला। इस बात की तकलीफ हुई?
पप्पू यादव: उन परिस्थितियों को समझने की जरूरत है। मैं प्रियंका गांधी जी और राहुल गांधी जी को बहुत बुद्धिमान समझता हूं।

मेरा अगला सवाल राहुल गांधी को लेकर ही था।
पप्पू यादव:
राहुल गांधी में किसी तरह की बनावट नहीं है। उनमें किसी तरह की दुष्टता, धूर्तता, चालाकी नहीं है। उनके पास बस अपनी नीयत और नीति है, जिस पर वो टिके हुए हैं। कुर्सी के लिए किसी को ठगेंगे नहीं, किसी इंसान के साथ अमानवीय नहीं हो सकते। वे दस थप्पड़ खा लेंगे और जवाब भी नहीं देंगे। मैं यह राहुल जी की बात कर रहा हूं, प्रियंका जी की नहीं। प्रियंका जी को कोई मारने की हिम्मत भी नहीं करेगा। राहुल गांधी तो थप्पड़ पर भी कहेंगे-‘डोंट माइंड’…। अंतिम व्यक्ति की पीड़ा उनमें है। इस सोशल मीडिया के युग में दस हजार किलोमीटर की यात्रा की। इस यात्रा यानी हांडी के एक चावल से पता चलता है कि भात पक गया। वो भारत के संविधान और लोकतंत्र के लिए अड़े हुए हैं। मैं अभी कांग्रेस में नहीं हूं। कांग्रेस ने मुझे स्वीकार नहीं किया है अभी। लेकिन जो सच्चाई है वो है।

राहुल जी के बारे में ये सारी बातें देश में आम लोगों को क्यों नहीं समझ में आ रही हैं? ये वोट में क्यों नहीं बदल रहीं?
पप्पू यादव: चुनाव प्रक्रिया में कई तरह के घालमेल हैं। ईडी है, सीबीआइ है, चुनाव आयोग है, पैसा है…। वोट में बदले तभी तो भाजपा चार सौ कहती ढाई सौ पर सिमटी।

इस चुनाव प्रक्रिया में ईवीएम भी है?
पप्पू यादव:
ईवीएम भी है, झूठ भी है। बहुत सारी चीजें हैं। कांग्रेस को कांग्रेस ही हराती है। इस जन्म में कांग्रेस को भाजपा नहीं हरा सकती। कांग्रेस का गठबंधन ही उसका सम्मान नहीं करता है।

शायद इसलिए कि अभी कांग्रेस कमजोर है?
पप्पू यादव: कमजोर नहीं, संस्कार है। पैर छूने के संस्कार को कमजोरी समझना गलत है। जो पार्टी किसी पार्टी को कमजोर समझती है मैं समझता हूं उससे ज्यादा कमजोर इस दुनिया में कोई नहीं है। दूसरे के अधिकार, विचार, संस्कृति को आप सम्मान नहीं देते हैं। समझते हैं कि टिटहरी (एक पक्षी) की तरह आकाश हम ही रोक लेंगे तो क्या कहा जाए? छोटे दलों के नेताओं का अहंकार प्रचंड पर है। कांग्रेस में बड़े बदलाव का संकेत है। मेरे कारण गठबंधन तोड़ तो नहीं लेते? लालू यादव को पप्पू यादव पसंद नहीं है।

आपके साथ जनता है फिर क्यों पसंद नहीं आप?
पप्पू यादव:
मैं अपने मुंह मियां मिट्ठू नहीं बनूंगा। स्वयंभू भगवान तो नहीं बन जाऊंगा। मैं आज भी कह रहा हूं कि निजी कार्यकर्ता पप्पू यादव के पास जितना है इस देश में किसी के पास नहीं है। आरएसएस के पास भी नहीं है। बिना पार्टी के अभी दो बार बिहार बंद किए। न झंडा था न कुछ था लेकिन सारा शहर बंद हो गया बीपीएससी के मुद्दे पर।

बीपीएससी के मुद्दे पर प्रशांत किशोर ने पहले नेतृत्व लिया। इसका सारा श्रेय प्रशांत किशोर लेते देखे गए।
पप्पू यादव:
प्रशांत किशोर ने नेतृत्व लिया? बीस दिनों के बाद प्रशांत किशोर का कोई मतलब ही नहीं था। सदन में इस मामले को मैंने उठाया। हैशटैग नीट लेकर आया मैं। राहुल गांधी नीट के मुद्दे को लेकर आए। एक दिन चर्चा हुई। बीपीएससी, एसएससी की लड़ाई लड़ी मैंने। प्रशांत किशोर जैसे लोगों को बिहार में कोई नहीं पूछता है।

दावा रहता है कि प्रशांत किशोर ने बड़े-बड़े लोगों को बड़े-बड़े चुनावों में जीत दिला दी।
पप्पू यादव:
किसे जिताए भाई? जो मोदी जी चार बार मुख्यमंत्री थे उन्हें? उसके बाद ये उनके नौकर बन कर गए थे। पहला नौकर राहुल गांधी जी का बन कर गए थे। पैसा लिए थे अमेठी में क्या हुआ? क्यों भाग गए? फिर मोदी के यहां से क्यों भाग गए? नीतीश के पास जाकर कुर्ता-पाजामा पहन लिए और इन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिल गया। फिर रेड्डी के पास भागे। फिर चले गए ममता दीदी के यहां। ममता दीदी के यहां कोई नहीं पूछा तो फिर वहां से भाग गए जेड प्लस लेकर। ममता दीदी का पैसा लेकर गोवा चले गए और वहां तीन फीसद वोट भी नहीं लाए। फिर चले गए कैप्टन अमरिंदर सिंह के यहां। अमरिंदर सिंह को भाजपा में छोड़ कर वहां से गायब हो गए। अरविंद केजरीवाल के बारे में पहले बोले कि वे कभी चुनाव नहीं जीतेंगे फिर अरविंद केजरीवाल के पास ही चले गए। ये किसके हुए? ये बहुरूपिया हैं। इन्हें बिहार के बारे में कुछ पता नहीं है। एक राजनीतिक व्यक्ति का नाम बताइए जो इनके साथ खड़ा है। जिसे कांग्रेस, राजद, जद (एकी) या अन्य दलों में जगह नहीं मिलती वही इनके पास आता है। बीपीएससी में भी अगड़ा-पिछड़ा करवा दिया। इनको कोई नहीं बुला रहा अब। लाठी चलवा कर भाग गए। ये कार्यकर्ता पैदा ही नहीं करना चाहते, ये ‘पेड वर्कर’ चाहते हैं। आत्ममुग्ध हैं। जब चिराग जी और प्रशांत जी एक साथ होकर चुनाव लड़ेंगे तो समझ लीजिएगा भाजपा की सहमति है।

इस साल बिहार में विधानसभा चुनाव हैं। कहां देखते हैं आप भाजपा, जद (एकी), कांग्रेस, राजद, प्रशांत किशोर और खुद को?
पप्पू यादव:
एक बात समझ लीजिए। बिहार में कांग्रेस के पास बहुत बड़ी संभावना है। लोग लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों से ऊब चुके हैं। नीतीश कुमार का जो विकास में काम रहा वो सराहनीय है। उनका समय स्वर्णिम समय था। लेकिन अब व्यक्ति के रूप में नीतीश कुमार की राजनीतिक साख खराब हो गई है। लोगों के बीच एक बार छवि खराब हो जाती है तो दिक्कत होती है। वर्तमान में नीतीश कुमार को पदाधिकारी निर्देशित करते हैं। उनकी पार्टी में अंदरूनी विवाद भी बहुत है।

पर जीत जाते हैं हर बार नीतीश कुमार।
पप्पू यादव:
जब तक राजद रहेगा नीतीश कुमार जीतते रहेंगे। राजद के ‘युवराज’ ने कहा कि यादव लोग सामंती मत बनिए। मैं कहता हूं कि यादव लोग कभी सामंती होते ही नहीं हैं। यादव का मतलब था सभी जाति और विपक्ष को लेकर चलना। कमजोर तबके के साथ जुल्म होता था तो यादव लाठी और ताकत के साथ खड़े हो जाते थे। पंद्रह-सोलह फीसद हैं अकेले जाति में। यादव से बड़ी अकेली जाति पूरी जाति व्यवस्था में नहीं है। चौदह या सोलह के बीच में यादव हैं आज की तारीख में इस देश में। देश में हमारी पहचान नहीं है क्योंकि हमने सम्मान खोया है। जितने राजद में यादव हैं, राजद में जो लठैत हैं, बालू माफिया हैं आप पहले उनसे तो बचिए। सभी दलों में एक ही तरह की परंपरा है। चाहे कोई अपराधी हो, माफिया हो, दादा हो अगर वो चुनाव जीतने वाला हो तो उसी पर बाजी लगाओ। जैसे चुनाव जीतने के लिए भाजपा पूरे देश में कोई भी नफरत व पाप कर सकती है। वह चौबीस गुणे सात चुनाव प्रक्रिया में रहती है। श्मशान, कब्रिस्तान, जिन्ना करो, चाहे जो करो पर करते रहो।

और महाकुंभ…।
पप्पू यादव:
देखिए कुंभ के नाम पर कितना झूठ बोले। बोल दिए कि 144 वर्ष बाद हो रहा है। लोगों को लगा कि 144 वर्ष के बाद मौका मिला है, फिर नहीं मिलेगा। अब ऐेसे झूठ बोलने वालों पर मुकदमा चलना चाहिए या नहीं? जब कुंभ के समय में आजम खान मंत्री थे तो एक भी ‘कैजुअल्टी’ की याद है आपको?

जवाबी आरोप लग रहे कि नेहरू जी के समय में कुंभ में इतने लोग मरे?
पप्पू यादव:
अभी वीआइपी संस्कृति वाले बाबा लोगों का अहंकार इतना क्यों बढ़ा हुआ है? नेहरू जी के समय पैसे वालों का अहंकार इतना नहीं बढ़ा हुआ था। इतना बाजार और प्रबंधन नहीं था। टीवी, सोशल मीडिया पर दिखने के लिए ऐसे स्नान कीजिए तो पुण्य मिलेगा, ऐसे कीजिए तो महापुण्य मिलेगा का जाप चल रहा। टीवी चैनलों ने महाकुंभ को दिन भर दिखा-दिखा कर देश की जनता को तबाह कर दिया। सुबह ‘छह बज कर बत्तीस मिनट’ पर जो डुबकी लगाएगा वह दुनिया का महापुण्य कमा लेगा। पता चला कि उस कथित समय में नहाने के लिए भगदड़ मच गई। प्रशासन वीआइपी की देखभाल में जुटा रहा। आप इन वीआइपी का घाट अलग क्यों नहीं बना देते जहां ये पुण्य कमाएं। सरस्वती और लक्ष्मी दोनों दो किनारे हैं नदी के। देवी लक्ष्मी जहां वास करेंगी वहां देवी सरस्वती वास नहीं करेंगी। भाजपा में देवी लक्ष्मी ही वास करेंगी, वहां देवी सरस्वती के वास करने की कोई गुंजाइश ही नहीं है। आप सरस्वती को कहां खोज रहे हैं? कहीं गंगा में डुबकी लगा लेंगे उसमें क्या दिक्कत है? इन्होंने कुंभ को राजनीति का बाजार बना दिया। कुंभ का अर्थ मानव जीवन से है।

राजनीति और चुनाव में टीवी मीडिया की क्या भूमिका देखते हैं?
पप्पू यादव:
टीवी मीडिया मतलब जिसकी लाठी उसकी भैंस। टीवी पहले ही सब कुछ तय कर देता है। टीवी मीडिया के युग के साथ सोशल मीडिया भी आ गया है। विज्ञापन सबसे ज्यादा प्रभावित करता ही है। आम लोगों के आयकर का पैसा सबसे ज्यादा भाजपा और आम आदमी पार्टी ने विज्ञापन पर खर्च किया। यह झूठ को सच बनाने की प्रक्रिया है। बिना डाक्टर, दवाई, जांच मशीनों के मोहल्ला क्लीनिक का बाजार बना लिया।

जेपी के संदर्भ में बिहार को राजनीतिक क्रांति की भूमि माना जाता है। यहां से बदलाव दिखते हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव के बाद कांग्रेस के बदलाव की यात्रा थम सी गई है। बिहार में हालात में बदलाव की उम्मीद?
पप्पू यादव:
बिहार में जो ‘शिखंडी’ और छुटभैये जैसे लोग हैं उनकी सफाई करने की जरूरत है। पुराने लोगों के मार्गदर्शन की जरूरत है। नई पीढ़ी में आम लोगों से जुड़े लोगों को लाने की जरूरत है। पार्टी जब प्रशांत किशोर जैसे लोगों से दिशा निर्देशित होने लगे तो समझिए स्थिति ठीक नहीं है। मैं समझता हूं ऐसे लोगों से बचना चाहिए। अटल जी के समय कौन सी आइआइटी के लोग थे? इंदिरा गांधी, मनमोहन सिंह अपने काम से जाने गए। कांग्रेस के पास राजनीतिक कार्यकर्ता सबसे ज्यादा थे। लेकिन जब आप निर्णय लेने में देर करेंगे तो पिछड़ेंगे। अच्छी या खराब जैसी हो चुनाव जीतना तो कोई भाजपा से सीखे। यह बड़ा सच है। जो जीता वही सिकंदर। हम केवल नक्सलवाद की बात करने नहीं आए हैं। जेपी से बिहार नहीं जाना जाता है। जेपी एक ‘मूवमेंट’ है। यहां सब कुछ है। गांधी भी थे। बिहार का इतिहास वैशाली, विक्रमशिला, नालंदा से है। क्रांति जानी जाएगी पंजाब से।

बिहार में कांग्रेस की क्या रणनीति होनी चाहिए?
पप्पू यादव:
कांग्रेस को बिहार में किसी के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। कांग्रेस गठबंधन में चुनाव लड़े, नेतृत्व उसका हो और बाद में जिसे मुख्यमंत्री बनाना हो बना दे। कांग्रेस को राजद से यादवों का वोट नहीं मिलने वाला है। राजद का नाम सुनते ही छोटी-छोटी जातियां खिन्न हो जाती हैं। अब वे लालू यादव के नाम पर एकतरफा वोट नहीं देती हैं। कांग्रेस पूरे देश की उत्तर से पश्चिम की पार्टी है। हिंदी पट्टी के कारण भाजपा जीतती है। कांग्रेस के पास जो संविधान व लोकतंत्र की सोच है वह भाजपा के पास नहीं है। कांग्रेस को शून्य तापमान में बर्फ जैसी स्थिति में फैसले लेने होंगे। जैसे झारखंड में सोरेन चट्टान की तरह खड़े रहे। उसे नए नेतृत्व को जगह देनी होगी। जो कांग्रेस के साथ कभी नहीं टूटा उस कार्यकर्ता को प्राथमिकता देनी होगी। कार्यकर्ता से लेकर नेतृत्व तक ईबीसी और ओबीसी को जगह देनी होगी। राहुल गांधी विचारधारा को लेकर एकदम स्पष्ट हैं। कांग्रेस सत्तर सीटों पर लड़े तो भाजपा शून्य पर पहुंच जाएगी। यह सब मेरी व्यक्तिगत सोच है। भाजपा के पास हिंदी पट्टी में बस फूट डालो और राज करो की रणनीति है।

बिहार के चुनाव में आप खुद को कहां देखते हैं?
पप्पू यादव:
जहां कांग्रेस मुझे खड़ा कर देगी वहीं देखता हूं।