लगातार पार्टी में बगावत से जूझ रही कांग्रेस के लिए एक और बुरी खबर अमेठी से है। अब यहां के कांग्रेसी भी बगावती तेवर दिखाने लगे हैं। प्रदेश के राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव में इसकी एक बानगी दिखी। राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र की तिलोई विधानसभा सीट से पार्टी विधायक मो. मुस्लिम ने राज्यसभा चुनाव में अपनी प्रथम वरीयता का वोट बसपा को दिया। अमेठी में राहुल गांधी के नजदीकी दीपक सिंह को पार्टी के पर्याप्त वोट होने के बावजूद दूसरी वरीयता की गिनती में विधान परिषद चुनाव में जीत मिली। कांग्रेस के नाराज विधायक की वही शिकायत है, जो देश के अन्य हिस्सों के कांग्रेसी कर रहे हैं। कार्यकर्ता खुद को उपेक्षित मान रहे हैं। उनका आरोप है कि हाई कमान सुनता नहीं।
विधायक मो. मुस्लिम को ज़्यादा ही तकलीफ है, क्योंकि रायबरेली-अमेठी का कांग्रेसी होने के बावजूद उनकी सुनवाई नहीं हो रही। मुस्लिम ने दूसरी वरीयता का वोट पार्टी प्रत्याशी कपिल सिब्बल को दिया था। उनका कहना है कि इसका मतलब यह नहीं है कि वह पार्टी छोड़ रहे हैं। हालांकि पार्टी उनका इरादा समझ चुकी है। पार्टी ने विधान मंडल दल के सचेतक पद से उनकी छुट्टी कर दी है। उनके अपने क्षेत्र के विरोधी कांग्रेसियों ने बैठक करके उनके पार्टी से निष्कासन की मांग शुरू कर दी है।
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही पाला बदलने की तैयारी में लगे विधायक मुस्लिम के रुख पर लोगों को ताज्जुब नहीं है। लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार का साथ देने वाले अमेठी और रायबरेली के लोग विधानसभा चुनाव में अलग राह पकड़ लेते हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को रायबरेली की पांचों सीटों पर शिकस्त मिली थी। अमेठी की पांच में सिर्फ दो सीटों पर कांग्रेस जीती थी। पार्टी की यह दुर्गति राहुल-प्रियंका के सघन प्रचार अभियान के बावजूद हुई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को स्मृति ईरानी से मिली तगड़ी चुनौती ने कांग्रेसी खेमे की चिंताएं और बढ़ा रखी हैं।
उधर हार के बाद भी स्मृति अमेठी में डटी हैं। दूसरी ओर हर जगह से पराजय की ख़बरों ने कांग्रेसियों का मनोबल कमजोर किया है। पिछले दो साल में राहुल के अमेठी दौरे रस्मी तौर पर निपट रहे हैं। सत्ता से बेदखली के बाद अब क्षेत्र को देने के लिए उनके पास सिर्फ सांसद निधि है। वह तीसरी बार अमेठी से सांसद हैं, लेकिन स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं से उनका सीधा संवाद नाम मात्र का है। तिलोई के विधायक मो. मुस्लिम की बगावत की वजहों में राहुल गांधी से संवादहीनता भी शामिल है।
अमेठी के काग्रेसियों में बढ़ती बेचैनी की एक वजह और भी है। लोकसभा चुनाव में सपा गांधी परिवार के मुकाबले उम्मीदवार नहीं उतारती। विधानसभा चुनाव में यह दोस्ती नहीं रहती। फिलहाल अमेठी के पांच में से तीन विधायक सपा के हैं। बसपा पूरी तैयारी में है। लोकसभा चुनाव में तीन लाख से ज्यादा वोट पाने के चलते भाजपा के भी हौसले बुलंद हैं। उधर अमेठी में कांग्रेस हमेशा की तरह गांधी परिवार द्वारा नियुक्त प्रतिनिधियों के हवाले है।
पिछले विधानसभा चुनाव में प्रियंका के करिश्मे की रायबरेली और अमेठी गवाह है। कभी बाकी प्रदेश में सफाये के बीच कांग्रेसियों को अमेठी, रायबरेली के गढ़ सुरक्षित लगते थे। अब यह मिथ टूट चुका है। इस बार संकट ज्यादा गहरा नज़र आ रहा है। जीत की उम्मीद दिलाते ठिकानों की तलाश में विधायक मो. मुस्लिम बागी हो गए। चुनाव नजदीक आने तक अमेठी में यह फेहरिस्त लंबी हो सकती है।