रिजवान अंसारी

एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती धारावी में कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अब तक कई लोगों की मृत्यु हो चुकी है। करीब 240 हेक्टेयर में फैली यहां की झुग्गियों में लगभग साढ़े आठ लाख लोग रहते हैं और जनघनत्व छियासठ हजार प्रति वर्ग किलोमीटर है। लिहाजा, ऐसे समय में जब देश भर में तालाबंदी और सामाजिक दूरी की हिदायत दी जा रही है, तब मुंबई की इस मलिन बस्ती में यह सब मुमकिन नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह है यहां जगह और आधारभूत सुविधाओं की भारी कमी। आबादी की यह सघनता और समस्या सिर्फ इसी बस्ती की नहीं, बल्कि देश की अमूमन हर झुग्गी बस्ती की है। दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में भी यही दिक्कतें पेश आ रहीं हैं। यही कारण है कि भारत की झुग्गी-झोपड़ियों की समस्या एक बार फिर से बहस के केंद्र में है।

दरअसल, भारत की मलिन बस्तियों में स्थितियां विकट हैं। भारत की 17.4 फीसद शहरी आबादी झुग्गी-झोपड़ी में निवास करती है। 2012 में नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के एक सर्वे में पता चला कि भारत के शहरों में कुल तैंतीस हजार पांच सौ दस झुग्गियां हैं। इनमें से लगभग इकतालीस फीसद अधिसूचित थीं और उनसठ फीसद गैर-अधिसूचित। सर्वे के मुताबिक अट्ठासी लाख परिवार इन शहरी मलिन बस्तियों में गुजर-बसर करता है। अखिल भारतीय स्तर पर एक मलिन बस्ती में औसतन 263 घरों के होने की बात कही गई है। संयुक्त राष्ट्र की एक नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वक्त में दुनिया की आधी आबादी शहरों में रहने लगी है और वर्ष 2050 तक भारत की आधी आबादी महानगरों और शहरों में रहने लगेगी। जाहिर है, यह स्थिति और विकराल होने वाली है, लेकिन इन सबके बावजूद ऐसी बस्तियां लगातार बस रहीं हैं। दरअसल, सस्ते और पर्याप्त आवास का विकल्प न होना मलिन बस्तियों की बसावट का बड़ा कारण है। बड़े शहरों में कमजोर तबके के लोग सस्ते आवास की तलाश में रहते हैं। पर ऐसे आवासों की अपर्याप्तता के कारण वे ऐसी मलिन बस्तियों में रहने को मजबूर होते हैं और यहीं से शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों को प्रोत्साहन मिलता है। ये वे लोग हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब होती है। अमूमन ये मजदूर वर्ग के लोग हैं, जिनके पास रोजगार का कोई ठोस विकल्प नहीं होता। लिहाजा, रोजगार सुनिश्चित न होने से इनके पास आर्थिक तंगी होती है, फिर यहीं से इनकी समस्याएं शुरू होती हैं। शहरों की मलिन बस्तियों में झुग्गी पुनर्विकास योजना लागू की जाती है, लेकिन यह सफल नहीं हो पाती। इसकी वजह है कि पुनर्वासित लोग अपने आवंटित आवास को बेच या किराए पर लगा कर फिर से झुग्गियों में आवास की तलाश करते हैं, ताकि वे कुछ पैसे कमा सकें।

मलिन बस्तियां ग्रामीण गरीबों को शहरी जीवन की ओर आकर्षित करती हैं। यही आकर्षण बढ़ते प्रवासन का एक महत्त्वपूर्ण कारक भी है। यह आकर्षण शहरी जीवन में आने वाली कठिनाइयों से आंशिक रूप से लोगों को अंधा कर देता है। झुग्गी क्षेत्रों में रहने वाले लोग अमूमन टाइफाइड, हैजा, कैंसर और एड्स जैसे रोगों से पीड़ित होते हैं। यहां भीख और बाल तस्करी जैसी सामाजिक बुराइयों का शिकार होने का खतरा हमेशा बना रहता है।

मलिन बस्तियों को आमतौर पर ऐसी जगह के तौर पर देखा जाता है, जहां अपराध की दर ज्यादा होती है और यह सब झुग्गी क्षेत्रों में शिक्षा, कानून-व्यवस्था तथा सरकारी सेवाओं की उपेक्षा के कारण होता है। फिर, अधिकांश झुग्गी-झोपड़ी वाले लोग अनौपचारिक क्षेत्र से अपना जीवनयापन करते हैं। ऐसे में उन्हें न तो वित्तीय सुरक्षा मिलती है और न ही सभ्य जीवनयापन के लिए पर्याप्त कमाई। लिहाजा, गरीबी के दुष्चक्र में फंस जाने के कारण वे भूख, कुपोषण, उच्च शिशु मृत्यु दर, बाल विवाह, बाल श्रम जैसी सामाजिक समस्याओं से हमेशा दो-चार होते रहते हैं।

मलिन बस्तियों के विकास और वहां रहने वालों को आवास मुहैया कराने के लिए सरकार हमेशा प्रयासरत रही है, लेकिन गांवों से शहरों की तरफ पलायन में वृद्धि के कारण मलिन बस्तियों का पूर्ण उन्मूलन नहीं हो सका है। मलिन बस्तियों के पूर्ण उन्मूलन के उद्देश्य से स्लम क्षेत्र (पुनर्वास) कानून-1956 बना था। 1996 में राष्ट्रीय मलिन बस्ती विकास कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस योजना के अंतर्गत राज्यों को ऋण और सब्सिडी मुहैया कराई जाती है। 2022 तक लाभार्थियों को आवास मुहैया कराने के मकसद से 2015 में प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना शुरू हुई। इसके लिए अधिकृत एजेंसियों के जरिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को केंद्रीय सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। लेकिन, विडंबना है कि इन तमाम कवायदों के बावजूद शहरों से मलिन बस्तियों का उन्मूलन अब तक संभव नहीं हो सका है।

मलिन बस्तियां बसने के पीछे गरीबी सबसे बड़ा कारक है। इसलिए सबसे पहले इस समस्या पर ध्यान केंद्रित कर नीति बनाने की जरूरत है। शहरी गरीबी दूर करने के लिए बेरोजगारी की समस्या पर सरकार को संजीदगी से प्रयास करना होगा। मौजूदा वक्त में रोजगार की दयनीय स्थिति से इनका संकट और भी विकराल होता जाएगा। शहरी गरीबों की आजीविका का समर्थन कर शहरी अनौपचारिक क्षेत्रों की गतिविधियों को विकसित करने के लिए भविष्य की नीतियों की आवश्यकता है। स्लम नीतियों को व्यापक और शहरी गरीबी को कम करने जैसी नीतियों के भीतर एकीकृत किया जाना चाहिए, ताकि गरीबी के विभिन्न आयामों की पहचान हो सके। दरअसल, सरकार का लक्ष्य केवल झुग्गी वासियों के लिए घर बनाना न हो, बल्कि लोगों के लिए आजीविका विकल्प और सामाजिक-आर्थिक बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना होना चाहिए। ऐसी भौगोलिक पहुंच बनाने की जरूरत है कि एक गरीब व्यक्ति आसानी से नौकरी तलाश सके।

हालांकि, झुग्गी की समस्या के त्वरित समाधान के तौर पर किराए पर आवास के विकल्प पर सोचा जाना चाहिए। इस समय इस समस्या के समाधान के लिए किराए पर आवास की व्यवस्था एक बेहतर और पूरक समाधान साबित हो सकता है। किराए के मकान का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि यह अस्थायी प्रवासन की समस्या को अधिक गंभीर नहीं होने देता। खासकर ऐसे लोगों के लिए यह बेहद कारगर है, जो न स्थायी संपत्ति में निवेश करना चाहते हैं और न अचल संपत्ति का निर्माण।
किराए के मकान का एक पक्ष यह भी है यह आवासों के निर्माण के लिए जमीन की जरूरत को भी कम करता है। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र और ओड़ीशा जैसे कुछ राज्यों में किराए पर मकान लेने के संबंध में घरेलू नीतियां लागू की गई हैं। इसके तहत आंतरिक प्रवासियों के लिए कम लागत वाले साझा फ्लैट्स उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है।

दरअसल, किसी भी नीति के निर्माण से पहले विभिन्न अध्ययनों के आधार पर पर्याप्त अंकड़े जुटाने की जरूरत है, ताकि सभी पहलुओं पर विचार हो सके। सफल और सस्ती झुग्गी के लिए पूर्व शर्त के रूप में शहर के बुनियादी ढांचे में निवेश की भी जरूरत है, जो झुग्गी निवासियों को सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार से बचाने के लिए एक मजबूत तंत्र के रूप में कार्य कर सकता है। ऐसे कदम उठाए जाएं कि बेहतर नौकरियों में अपने रोजगार के जरिए झुग्गीवासियों के लिए एक उच्च और अधिक स्थिर आय सुनिश्चित हो सके। शहरों में रोजगार के अच्छे अवसर से मलिन बस्तियों में एक स्वस्थ और स्थायी जीवन-शैली मुमकिन हो सकती है। समझने की जरूरत है कि विकासशील झुग्गियों में भी स्थानीय आर्थिक विकास को गति मिलती है, शहरी गतिशीलता और संचार में सुधार होता है तथा मलिन बस्तियां एकीकृत होती हैं और यह आर्थिक रूप से बेहद लाभदायक है।