चुनावी मैदान किसी मैराथन की दौड़ जैसा होता है। कभी ठुमक-ठुमक कर आराम से चल रहा प्रतिभागी, अंत में तेज चाल से जीत की रेखा छू लेता है, तो कभी ज्यादातर समय तेज चाल बनाए रखने वाला पीछे रह जाता है। बिहार के चुनाव में शुरुआती गति बनाने के बाद नामांकन दाखिल करने के दौर में महागठबंधन की ठुमक-ठुमक वाली चाल को देख कर लग रहा था, विपक्ष कहीं दौड़ से बाहर ही न हो जाए। लेकिन, कांग्रेस के कथित जादूगर ने महागठबंधन के मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में तेजस्वी यादव और उपमुख्यमंत्री के रूप में मुकेश सहनी के नामों का एलान कर एकबारगी राजग को थमने पर मजबूर कर दिया है। महागठबंधन के असमंजस को देख, जब अमित शाह ने चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद पर फैसले की बात कही, तभी विपक्ष ने तेजस्वी की हुंकार भर दी। भतीजे के नाम का एलान हो गया है तो चचा पर सवाल उठना स्वाभाविक है। 14 नवंबर को नतीजा जो हो, पर कमजोर पड़ रहे चचा और महाकमजोर होती कांग्रेस का फायदा उठा कर फिलहाल स्वघोषित भतीजे ने चचा को जो चोट पहुंचाई है, उस पर बेबाक बोल।
‘हम तेजस्वी यादव का मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में समर्थन करते हैं। हम अमित शाह जी और उनकी पार्टी के अध्यक्ष से पूछना चाहते हैं कि आपके गठबंधन में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन है? हमने देखा कि चुनाव तत्कालीन मुख्यमंत्री शिंदे के नेतृत्व में लड़ा गया था, लेकिन बाद में हमें पता चला कि किसी और को मुख्यमंत्री चुना गया।’
शोक में डूबे महागठबंधन पर आबरा का डाबरा मंत्र फूंक कर, कांग्रेस के कथित जादूगर गहलोत ने विपक्ष के लिए माहौल को अ-शोक करने में कामयाबी तो पाई है। विपक्ष के लिए अ-शोक हुए इस माहौल ने सत्ता पक्ष को सोचने के लिए तो मजबूर कर ही दिया होगा। सत्ता पक्ष राहुल गांधी की इसी छवि का प्रचार प्रसार करना चाहता था कि नेता प्रतिपक्ष की कहीं चल नहीं रही है। मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में कांग्रेस नेता की ओर से तेजस्वी के नाम के एलान ने विपक्ष में राहुल गांधी के सिक्के को और मजबूत किया है।
याद करें, कुछ दिनों पहले हरियाणा के हालात को। वहां के कांग्रेस नेतृत्व को राहुल गांधी ने निर्देश दिया था कि आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का रास्ता खोजें। लेकिन, अति-आत्मविश्वास रूपी अहंकार से लबरेज राज्य नेतृत्व ने राहुल गांधी को आश्वासन दिया कि हम यह जीत आपकी झोली में डाल देंगे। नतीजा यह हुआ कि जीत ने खुद भाजपा के पास जाकर अनुरोध किया, मुझे अपनी झोली में जगह दे दो। भाजपा की झोली में झूलती जीत ने पूरे देश के राजनीतिक विश्लेषकों के साथ कांग्रेस नेतृत्व को भी गहरा सदमा दिया था।
हरियाणा का हस्र दिल्ली में भी दोहराया गया। राहुल गांधी, दिल्ली में विपक्ष की जमीन मजबूत करने के लिए आम आदमी पार्टी के साथ चलने के लिए तैयार थे। लेकिन, सूबाई नेतृत्व ने यहां भी जमीन से आंखें मूंद कर राहुल गांधी को आसमान की तरफ देखने के लिए कहा। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली से जो कांग्रेस की जमीन छीनी थी, उसका कुछ हिस्सा गठबंधन के जरिए वापस लेने का कीमती मौका गंवा दिया गया।
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यह सही है कि कांग्रेस जैसी सौ साल से ज्यादा पुरानी पार्टी का यह चरित्र रातों-रात बदला भी नहीं जा सकता है। सत्तर सालों तक सत्ता में रही पार्टी विपक्ष की वर्णमाला सीखने में वक्त तो लेगी।लेकिन, राहुल गांधी ने हरियाणा और दिल्ली की नाकामी को आगे सुधारने का संयम दिखाया।
चुनाव के इस अंतिम पड़ाव में महागठबंधन को कांग्रेस के जादूगर की जरूरत नहीं पड़ती, अगर उसने पहले ही राजद नेता की ‘तेजस्वी’ नजर की कद्र कर ली होती। यहां तक कि राहुल गांधी को भी इस नजर को पढ़ने और समझने में वक्त लग गया। महागठबंधन के पहले ही बड़े जुटान की साझा प्रेस कांफ्रेंस में तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को लेकर अति सकारात्मक रुख दिखाते हुए कहा कि राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाना है।
तेजस्वी यादव व राजद का बिहार की राजनीति में अस्तित्व है। उत्तर भारत के राजनीतिक मैदान में राहुल गांधी के नेतृत्व को क्षेत्रीय पार्टी की ओर से मान्यता मिलना, राजनीतिक रूप से अहम रणनीतिक कदम था। लेकिन, तब कांग्रेस से इस रणनीति को समझने में चूक हो गई थी। तेजस्वी यादव राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की बात जब बोल रहे थे, तब लोकसभा चुनाव चार साल दूर था। लेकिन, ऐन विधानसभा चुनाव के मैदान में कांग्रेस ने तेजस्वी यादव के लिए हुंकार नहीं भरी कि उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनाएंगे। अगर उस वक्त तेजस्वी के नाम का एलान राहुल गांधी ने कर दिया होता तो आज महागठबंधन का माहौल कुछ और ही होता।
राजनीति के गणित की किताब ऐसी है, जहां ऋणात्मक घटनाएं भी आपके लिए कुछ फायदे का जोड़ ला सकती हैं। कांग्रेस व विपक्ष ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया, तो इसका फायदा भाजपा ने उठाना चाहा। पहले राजग के सभी बड़े-छोटे नेता मुख्यमंत्री पद के चेहरे के नाम में‘नीतीशे कुमार हैं…’ बोल रहे थे।
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महागठबंधन के महाअसमंजस को देखते हुए भाजपा के ‘चाणक्य’ ने कह दिया कि मुख्यमंत्री का चेहरा चुनाव के बाद तय होगा। यह जवाब एक खास तरह के सवाल से निकला। जाहिर सी बात है कि इस सवाल को इसी जवाब के लिए तैयार किया गया था। तेजस्वी के नाम पर कांग्रेस की चुप्पी के बाद भाजपा ने मुखर हो कर कह दिया कि मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा। कांग्रेस के जादूगर की ताजा झप्पी के बाद चाणक्य खेमा दबाव में तो आ ही गया है। अब तो तेजस्वी बनाम ‘आपका मुख्यमंत्री कौन’ का सवाल और तेज गूंजेगा।
ध्यान रहे, मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में तेजस्वी के नाम के पहले बिहार में एक और बड़ी उलट-पुलट हुई है। अभी तक बिहार में जिस पार्टी पर कयास लगाए जा रहे थे कि वह आम आदमी पार्टी का दूसरा अवतार हो सकती है, अचानक ही चुनावी दौड़ से बाहर दिख रही है। जनसुराज पार्टी के संस्थापक व पूर्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। अन्य जगहों पर तो राजनीतिक दल चुनाव के बाद रुदन करते थे वोट चोरी का, ये तो पहले ही ‘उम्मीदवार चोरी’ का रोना रोने लगे। जिन्होंने कहा था, छठ के बाद किसी बिहारी को सूबे के बाहर जाने की जरूरत नहीं, देखना है कि बिना सत्ता पाए वे कितनी देर तक वहां रुक पाते हैं।
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तेजस्वी यादव को लेकर ‘आठवीं फेल’ का हल्ला मचाने वाले प्रशांत किशोर ने एक बार फिर साबित कर दिया कि राजनीति के मैदान में डिग्री किसी काम की नहीं होती। डिग्री के बल पर आप सिर्फ चुनाव जिताने की दुकान भर खोल सकते हैं। जनसुराज पार्टी और प्रशांत किशोर की तात्कालिक हालत देख कर फिलहाल, हमारा लोकतांत्रिक मिजाज इस बात पर संतोष कर सकता है कि अभी भी राजनीतिक जीत किसी दुकान से नहीं खरीदी जा सकती है।
पहले, बिहार की लड़ाई में जिस जनसुराज के शिविर में लिखा दिख रहा था-चुनावी जीत का सामान यहां मिलता है, अब वहां कुछ दिनों बाद शायद, दुकान बंद है का बोर्ड लग जाए। अगर कोई चमत्कार जैसा नहीं हुआ तो, अभी तक संभावित ‘वोट कटवा’ बनने का खिताब ले रही जनसुराज पार्टी ने बिहार में दोतरफा लड़ाई का रास्ता साफ कर दिया है।
वैसे तो अब पूरा देश ही उलट-पुलट की राजनीति कर रहा है, लेकिन इस संदर्भ में बिहार अग्रदूत का खिताब बरकरार रखे हुए है। पलट…शब्द किसी राज (शाहरूख खान) और सिमरन (काजोल) के प्रेम से ज्यादा नीतीश कुमार के कुर्सी प्रेम के लिए प्रतीकात्मक हो चुका है।
नीतीश कुमार राजनीति में ‘फीनिक्स’ चिड़िया की तरह हैं। जब-जब उनके अंत की घोषणा की जाती है, वे अपनी राख से अपना निर्माण कर लेते हैं। और, अभी के घोषित चेहरे तेजस्वी यादव भी तो उन्हें चचा मानते ही थे। अभी भी तेजस्वी यादव यही आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा नीतीश कुमार के साथ अन्याय कर रही है। कथित ‘अन्याय’ को देखते हुए घर-परिवार के रिश्ते-नाते कब एक-दूसरे के गले लग जाएं, यह किसे पता?
कांग्रेस के इस कदम ने बिहार की राजनीति में भाजपा के लिए नई मजबूरी तो खड़ी कर ही दी है। अब आने वाले दो हफ्तों में राजग के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा ही मुद्दा बना रहेगा। नीतीश का नाम खारिज होने के बाद राजग के ‘चिराग’ भी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जता ही चुके हैं। उपमुख्यमंत्री के रूप में मुकेश सहनी का नाम भी राजग पर दबाव बनाएगा ही।
अगले दो हफ्तों में भाजपा की अगुआई वाला राजग मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करे या न करे, लेकिन आगामी 14 नवंबर को एक संभावित दृश्य का भी ध्यान रखे। आखिर, वह दिन देश के सर्वमान्य घोषित ‘चचा’ का है। 14 नवंबर को जब वोट गिने जा रहे हों तो आवाज न आ जाए…क्यों भई चचा! हां भतीजा!देखते हैं 14 को भाई-भतीजावाद का नतीजा।
