राजनीति का आधार भावुक मन की निष्कपट भूमि नहीं है। राजनीतिज्ञ का मन जंगली चूहे के बिल जैसा होना चाहिए। यानी, किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि बिल कहां से शुरू होता है और कहां जाता है। राजनीतिज्ञ के मन में क्या है, इसका कभी किसी को पता नहीं चलने देना चाहिए। राजनीति कोई मंदिर में होनेवाले प्रवचन का विषय नहीं है, जिस पर सबके सामने चर्चा की जाए। मंझे हुए राजनीतिज्ञ तो इसी नीति पर चलते हुए सफल होते रहे हैं, लेकिन कुछ अपनी कमी को छिपाने की नीयत से आक्रामक होकर लोकतांत्रिक मर्यादा को तार-तार कर देते हैं। मानसून सत्र में विपक्षी दलों द्वारा लाए गए मणिपुर प्रकरण पर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान यही तो देखने को मिला।

जिस मुद्दे पर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, वह मुद्दा उठा ही नहीं

जिस मणिपुर पर चर्चा के लिए यह अविश्वास प्रस्ताव विपक्षियों द्वारा लाया गया था, उस चर्चा में मणिपुर प्रकरण ही गौण रहा। उल्‍टे दुनिया भर के उन प्रसंगों को जबरन उठाकर संसद का समय तो जाया किया ही गया, भविष्य के लिए कोई ठोस बात भी नहीं की गई जिससे राज्य की जनता का विश्वास वापस आता और वे पुरानी बातों को भूलकर नया जीवन जीने के लिए उत्साहित होते। 

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ‘फ्लाइंग किस’ मुद्दा उठाकर हंसी का पात्र बनीं

इस मानसून सत्र में यह प्रकरण बड़ा ज्वलंत रहा, जिसे केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने बहुत ही गंभीरता से तूल द‍िया और लंबे समय तक देश में सार्वजनिक स्थानों पर हंसी का पात्र बनती रहीं। स्मृति ईरानी ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने अपनी बात खत्म करने के बाद ‘फ्लाइंग किस’ दिया, जो संसदीय गरिमा के अनुकूल नहीं रहा। इस पर उन्होंने संसद में चर्चा तो की ही, अध्यक्ष तक से ल‍िख‍ित श‍िकायत के जर‍िए राहुल गांधी के खिलाफ कारवाई की मांग रखी। 

No Confidence Motion
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद में बोलतीं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी। (फोटो- पीटीआई)

स्मृति ईरानी जिस प्रकार संसद में और संसद के बाहर मुखर रहती हैं, यदि वह ब्रजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध महिला खिलाड़ियों की ओर से उसी प्रकार मुखर होतीं, तो कोई शक नहीं कि आज समाज उन्हें महिला संरक्षक के रूप में पूजनीय मानता। लेकिन नहीं, उन्हें अपनी खुन्नस तो राहुल गांधी से निकालनी है। सच तो यह है कि उनका आत्मबल बढ़ा ही इसलिए है कि उन्होंने राहुल को उनके ही संसदीय क्षेत्र में हराकर जीत का परचम लहराया।

अब जब अमेठी की जनता को अपनी गलती का अहसास होने लगा है, तो इसकी जानकारी स्मृति ईरानी को उनके सूत्रों ने निश्चित रूप से दी होगी। शायद इसीलिए वह देश के किसी भी मंच से राहुल गांधी की बुराई करके क्षेत्र की जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करने लगी हैं कि राहुल गांधी नाकारा थे, जो वर्षों तक इस क्षेत्र का लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने के बावजूद अमेठी की जनता लिए कुछ कर नहीं पाए।

निश्चित रूप से राहुल गांधी का कद तो देश की राजनीति में पिछले वर्ष उनके द्वारा की गई 4000 किलोमीटर लंबी भारत जोड़ो पदयात्रा से बढ़ा है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की यह यात्रा ऐतिहासिक भी रही और राहुल की छवि राष्ट्र के कद्दावर नेताओं में शुमार कराने वाली भी रही। अब जब राहुल गांधी की प्रस्तावित दूसरी भारत जोड़ो यात्रा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मस्थान पोरबंदर से अरुणाचल प्रदेश के लिए निकलेगी, तो बड़े-बड़े राजनीतिक विचारक यह अनुमान व्यक्त करने लगे हैं कि उसके बाद राहुल गांधी का कद कितना ऊंचा हो जाएगा। 

Congress Leader Rahul Gadhi.
4 अगस्त 2023 को कांग्रेस के दफ्तर में प्रेस कांफ्रेंस करने के बाद पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ राहुल गांधी। (फोटो- पीटीआई)

विपक्षी गठबंधन से सत्ता पक्ष में है खलबली!

वैसे भी जो जानकारी और सर्वेक्षण रिपोर्ट आ रही है उसके हिसाब से 2024 का लोकसभा चुनाव कांटे की टक्कर का होगा, जिसमें पलड़ा विपक्ष का ही भारी बताया जा रहा है। अभी तक तो जिस तरह से INDIA गठबंधन के 26 दलों का जोश और एकता दिखाई दे रही है, उससे सत्तारूढ़ का विचलित होना यही संदेश देता है कि सत्तारूढ़ दल परेशान हैं और किसी-न-किसी प्रकार उसकी एकता को खत्म करने के लिए जो भी तिकड़म,  नीति अपनाई जा सकती है, उसे अपनाने में पीछे नहीं हट रहे हैं। 

सदन में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी इसे देखा जा रहा था कि विपक्ष को डराने और उन्हें संसद में अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा गया। स्वयं प्रधानमंत्री जिस प्रकार सदन में नारेबाजी का नेतृत्व कर रहे थे, उसे देश की भोली-भाली जनता के मन में भय ही तो उत्पन्न करने की पूर्व निर्धारित योजना मानी जा सकती है । 

कहते हैं देश के संसद रूपी पवित्र मंदिर में कोई असत्य नहीं बोलता, लेकिन अब ऐसा नहीं होता। अब संसद सदस्यों की कौन कहे, मंत्री भी आंख में आंख डालकर असत्य भाषण देते हैं और संसदीय गरिमा की हंसी उड़ाते हैं । 

राहुल गांधी का उपहास उड़ाने के लिए पीएम मोदी ने लिया कलावती का नाम

इस अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी और मंत्रियों की कौन कहे, गृह मंत्री ने राहुल गांधी को लपेटे में लेने के लिए और कांग्रेस का उपहास उड़ाने के नाम पर कलावती नामक महिला का उल्लेख किया और कहा कि कांग्रेस शासनकाल में सब आश्वासन देने के बाद भी उस परिवार का कुछ भी भला नहीं किया गया, लेकिन मोदी सरकार ने उस परिवार की पूरी मदद करके उसके जीवन स्तर को सुधार दिया। जबकि स्वयं कलावती ने कई टेलीविजन चैनलों पर आकर यह कहा है कि उनके जीवन को संवारने में कांग्रेस की और विशेष रूप से राहुल गांधी की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है।

पता नहीं क्यों अपना महत्व बढ़ाने के लिए देश के सबसे शक्तिशाली मंत्री तक असत्य भाषण संसद में करते हैं। रही प्रधानमंत्री की बात, तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री के हालिया संबोधन का जिक्र करते हुए कहा कि पीएम जब भी बोलते हैं, ‘झूठ की सुनामी’ लाते हैं।

देश का यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि प्रधानमंत्री सशक्त होते विपक्ष पर देश की गंभीर समस्याओं पर जारी अपने बहस में हंसी उड़ाते हुए तरह-तरह के तंज कसे। मणिपुर राज्य के ज्वलंत मुद्दों से इतर प्रधानमंत्री ने अपने 133 मिनट के भाषण में 50 बार कांग्रेस, नौ बार INDIA गठबंधन पर वार किया। भाषण का उद्देश्य मणिपुर की वर्तमान ज्वलंत समस्या नहीं, बल्कि इस रिकॉर्डतोड़ भाषण में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के लिए पिच तैयार करना और अपने तीसरे टर्म के लिए देश की जनता को यह बताना कि अब तक उन्होंने जो किया, वह तो विकास का एक सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध ट्रेलर रहा है, लेकिन अब तीसरे टर्म में देश की अर्थव्यवस्था को उनकी सरकार विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बना देंगे। 

वैसे, प्रधानमंत्री की चुनावी घोषणा बड़ी लुभावनी होती हैं, जिसमें देश की भोली-भाली जनता अभिभूत होकर उलझ जाती है और लोभ में वह उनके पक्ष में मतदान करके लोकसभा में सरकार बनाने के लिए भेज भी देती है। जब चुनाव जीतकर जनता को कुछ देने का समय आता है, तो गृह मंत्री उसे चुनावी जुमला कहकर जनता का मुंह बंद कर देते हैं। 

भला इस बात पर कोई कैसे अविश्वास कर सकता है जब प्रधानमंत्री सीना ठोंक-ठोंक कर सार्वजनिक मंच से कहते हैं कि “यह प्रधानमंत्री मोदी का वादा है”। फिलहाल प्रधानमंत्री 2014 में पहली बार अपने राज्य से बाहर निकलकर आए थे और अपने राज्य में रहते हुए उन्होंने अपनी छवि को इतना महिमामंडित कर लिया था कि किसी का उन पर अविश्वास करना ईश्वर के प्रति अविश्वास मान लिया जाता था। 

इसी प्रकार 2019 में भी रही-सही कसर और परिपक्वता से पूरा कर चुनाव जीत लिया। अब 2024 में जनता के बीच वैसा ही जाल फेंकना तो शुरू कर दिया है, लेकिन इस बीच घटित कई प्रकरणों से जनता के समक्ष यह बात अब आने लगी है कि गरजने वाला बादल बरसता नहीं है और जो बरसता है, वह गरजता नहीं है। फिलहाल, इसी वर्ष कई राज्यों में होने जा रहे विधानसभा के चुनाव की जीत-हार रूपी ट्रेलर से यह स्पष्ट हो जाएगा कि 2024 की फिल्म कैसी होगी। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)