देश के शीर्ष ब्यूरोक्रेट्स और प्रधानमंत्री कार्यालय में सीनियर अफसर के रूप में रहे नृपेंद्र मिश्रा अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने की जिम्मेदारी लेने से पहले इस महत्वपूर्ण काम से बिल्कुल अनजान थे। फरवरी 2020 में जब उन्होंने इस काम की जिम्मेदारी लेने की इच्छा जताई तब तक उन्हें इस काम से जुड़ी जिम्मेदारियों की जानकारी नहीं थी। न तो वह मंदिर निर्माण में लगे कांट्रैक्टर, सलाहकार से परिचित थे और न हीइसके मास्टर प्लान को जान रहे थे। उन्हें इसमें लगी तमाम एजेंसियों के बारे में भी पता नहीं था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बीजेपी और संघ परिवार की सबसे महत्वपूर्ण वैचारिक परियोजनाओं में से एक के लिए मिश्रा को चुनने में सिविल इंजीनियरिंग की एक्सपर्टाइज या मंदिर निर्माण और अनुष्ठानों के मैनुअल की समझ निश्चित रूप से जरूरी नहीं था।
आखिरकार मोदी ने 2014-19 में मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान पीएम के प्रधान सचिव के रूप में पांच वर्षों तक मिश्रा के साथ मिलकर काम किया था। मई 2014 में मिश्रा को नए प्रधानमंत्री को समझने, उनकी राजनीति को नीति में बदलने, लुटियंस दिल्ली के कई गोल चक्करों को नेविगेट करने में मदद करने और रायसीना हिल से विशाल सरकारी मशीनरी का प्रबंधन करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में नौकरशाह के रूप में पेश किया गया था।
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उन विशेषताओं को बताते हुए, जिन्होंने मोदी को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के तहत निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में मिश्रा की नियुक्ति को मंजूरी देने के लिए प्रेरित किया, एक वरिष्ठ नौकरशाह ने कहा, “वह अपने सहयोगियों पर भरोसा करते हैं, उन्हें अपने विचारों के साथ स्पष्ट होने का अधिकार देते हैं, और एक नेता हैं, जो प्रेरित करता है। वह तुरंत निर्णय लेते हैं और समय से काम करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह प्रधानमंत्री की अपेक्षाओं को बता सकते हैं, और यह भी बता सकते हैं कि किसी विशेष विचार के बारे में प्रधानमंत्री क्या सोचेंगे।”
‘मैं देश को विफल नहीं करना चाहता’
जनवरी 2020 में पीएम के प्रधान सचिव के पद से इस्तीफा देने के छह महीने बाद, मिश्रा को नेहरू मेमोरियल (जिसे अब प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय सोसायटी, पीएमएमएल कहा जाता है) का अध्यक्ष नामित किया गया था।
पीएमएमएल अध्यक्ष के रूप में अपनी नियुक्ति के लगभग एक महीने बाद उन्होंने पीएमओ में अपने उत्तराधिकारी पीके मिश्रा से कहा कि उन्हें “कुछ और” पसंद करते। उनके दिमाग में दो पद थे – गवर्नरशिप या राम मंदिर निर्माण समिति की अध्यक्षता, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2019 के फैसले में परिकल्पना की गई थी। इससे आश्चर्यचकित अमित शाह, जो दूसरे कार्यकाल में गृहमंत्री के रूप में मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे, ने यह पता लगाने के लिए मिश्रा को भी फोन किया था। फिर प्रधानमंत्री की मंजूरी मिली।
बाद के महीनों और वर्षों में जैसे ही मिश्रा को नौकरी मिली, उन्हें राजनीतिक तात्कालिकता और लोगों की अपेक्षाओं का भार महसूस हुआ। उस स्थान पर एक मंदिर जहां कभी बाबरी मस्जिद थी, लगभग 500 वर्षों से हिंदुओं के एक वर्ग की मांग रही है। यह भाजपा द्वारा अपनाई गई एक महत्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक परियोजना भी रही है, जिसने 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटने में मदद की। 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ मंदिर बनाने का रास्ता साफ हुआ। इसे 2024 के आम चुनावों से पहले पूरा करना अनिवार्य है।