Lok Sabha Chunav Election Result 2024 (लोकसभा चुनाव परिणाम 2024) Analysis Updates: लोकसभा चुनाव 2024 की मतगणना पूरी हो चुकी है। चुनाव आयोग के नतीजों से यह साफ हो गया है कि बीजेपी का 370 और एनडीए के लिए ‘400 पार’ का नारा सच साबित नहीं हुआ। भाजपा और एनडीए को भारी नुकसान हुआ है। एनडीए 293 सीटों पर और इंडिया गठबंधन ने 233 सीटों पर जीत का परचम लहराया है। माना जा रहा है कि बीजेपी और एनडीए के मौजूदा सांसदों से नाराजगी पार्टी को भारी पड़ी है। जाहिर है, नरेंद्र मोदी का जादू 2014 ओर 2019 की तरह नहींं चला है।
यह नतीजे एग्जिट पोल्स में दिखाए गए नतीजों और भाजपा के वादों से एकदम उलट हैं। बता दें कि उत्तर प्रदेश में चुनाव से कुछ महीने पहले ही अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। इसे काफी प्रचारित भी किया गया था और चुनाव प्रचार में भी इसे मुद्दा बनाया गया था। इसके उलट, सपा और कांग्रेस ने राज्य में बेरोजगारी, महंगाई का मुद्दा उठाया। राहुल गांधी ने कहा था कि अगर इंडिया की सरकार बनी तो मोदी सरकार द्वारा लाई गई सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना खत्म कर देगी। लोकसभा चुनाव परिणाम से जुड़े लाइव अपडेट यहां देखें।
लोकसभा चुनाव परिणाम 2024 का रियल टाइम विश्लेषण यहां पढ़िए।
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बीच हिमाचल प्रदेश मेँ कांग्रेस अपनी सरकार बचाने में कामयाब रही है। हिमाचल प्रदेश में लोकसभा सीटों के साथ ही विधानसभा की 6 सीटों पर भी उपचुनाव हुआ था। अपनी सरकार बचाने के लिए इन 6 सीटों में से कांग्रेस को कम से कम एक सीट पर जीत हासिल करना जरूरी था। शाम 5 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक वह तीन सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन को मजबूती दी है, जिससे सत्तारूढ़ भाजपा को झटका लगना तय है। विभिन्न अनुमानों को झुठलाते हुए सपा भाजपा के लिए एक मजबूत चुनौती बनकर उभरी है। ECI के 4 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक, सपा उत्तर प्रदेश में 36 सीटों पर आगे चल रही है जबकि बीजेपी 34 सीटों पर। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 1 सीट पर जीत दर्ज की है। शुरुआती रुझानों के मुताबिक, कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन पार्टी के गढ़ यूपी में बीजेपी को पछाड़ने में कामयाब रहा है।
2019 के लोकसभा चुनावों में, सपा यूपी में सिर्फ 5 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, क्योंकि तब उसने बसपा के साथ गठबंधन के तहत राज्य की 80 सीटों में से 37 सीटों पर चुनाव लड़ा था। तब बीजेपी ने 62 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि बसपा को 10 सीटें मिली थीं। इस बार सपा ने 62 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि उसकी सहयोगी कांग्रेस 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी।
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जारी काउंटिंग के बीच बीजेपी के लिए राजस्थान से बुरी खबर है। चुनाव आयोग की ओर से जारी 3 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी यहां 14 सीटों पर आगे है जबकि कांग्रेस 8 और अन्य दल तीन सीटों पर आगे चल रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो बीजेपी ने राजस्थान की सभी 25 सीटें जीती थी। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए वोटों की काउंटिंग जारी है। अब तक के रुझानों बीजेपी के अनुमान के मुताबिक नहीं आए हैं। वहीं, 2024 के चुनाव का विश्लेषण करते हुए इंडियन एक्सप्रेस में कोमी कपूर लिखती हैं, “भाजपा की एक बड़ी ताकत गठबंधन बनाने में उसकी चतुराई है, जिससे उसकी चुनावी संभावनाओं को बढ़ावा मिलता है। इस बार इसका उल्टा होता दिख रहा है. शिवसेना (यूबीटी) और अकाली दल जैसे पुराने सहयोगी कड़वाहट के साथ चले गए हैं। शिंदे सेना और अजित पवार की एनसीपी जैसे नए साथी खुद को ही स्थापित करने के लिए लड़ रहे हैं। घोटालों से प्रभावित देवेगौड़ा परिवार और बेहद बदनाम नीतीश कुमार फायदे के बजाय घाटे का सौदा भी हो सकते हैं। नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली तटस्थ पार्टियों को अनावश्यक रूप से अलग-थलग कर दिया गया है।
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर सुहास पल्शिकर की राय में इस बार के चुनाव के संदर्भ में हिंदी पट्टी से एक अहम सवाल यह था कि क्या लोगों का हिंदुत्व से मोह बरकरार रहता है या टूटता है और क्या वे कामकाज के आधार पर भी आंकलन करेंगे या नहीं? उन्होंने एक आलेख में सवाल उठाया था कि कई लोगों ने “मोदी से ऊब” पर टिप्पणी की है, लेकिन क्या यह संभव है कि “हिंदुत्व से भी ऊब” होगी? पढ़ें उनका आलेख
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को हरियाणा के अंदर कांग्रेस से जबरदस्त टक्कर मिली है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थी। लेकिन चुनाव आयोग के मुताबिक 2:45 बजे तक कांग्रेस और भाजपा दोनों पांच-पांच सीटों पर आगे चल रहे थे। 2019 में बीजेपी को 58.02% वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 28.42%। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
वाराणसी से तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला कांग्रेस के अजय राय से है। अब तक हुई वोटों की गिनती के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि प्रधानमंत्री अगर जीतते भी हैं तो जीत का अंतर पिछले चुनाव की तुलना में काफी कम रहेगा। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए दोपहर डेढ़ बजे तक करीब 7.40 लाख वोटों की गिनती की जा चुकी है। इनमें नरेंद्र मोदी को चार लाख वोट मिल चुके थे और अजय राय को तीन लाख। यानि, प्रधानमंत्री करीब एक लाख वोट से आगे थे। ऐसे में जीत हार का अंतर 2019 जैसा होने की संभावना खत्म हो चुकी है। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
उत्तर प्रदेश में जिन बड़ी सीटों पर बीजेपी/एनडीए पीछे है, उनमें अमेठी की सीट सबसे अहम है। अमेठी सीट से केंद्रीय मंत्री और स्मृति ईरानी पीछे चल रही हैं। स्मृति ईरानी ने पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को शिकस्त दी थी। पिछले दो लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सीटें लगातार घटी हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में 71 सीटें जीती थी लेकिन 2019 में यह आंकड़ा गिरकर 62 सीटों पर आ गया था। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
विभिन्न राज्यों के लोगों के बीच आर्थिक असमानता दर्शाने वाली एक और रिपोर्ट आई है। नई सरकार के लिए आने वाले पांच साल में इस मोर्चे पर काम करना उसकी प्राथमिकताओं में होना चाहिए। नई सरकार को इस खाई को पाटने के बारे में भी सोचना होगा। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
लोकसभा चुनाव 2024 के शुरुआती नतीजे एनडीए के लिए अच्छा संकेत नहीं दे रहे हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश में जहां एनडीए शुरुआती नतीजे/रुझान में पिछड़ते हुए दिखाई दे रहा है। 4 जून को 11.30 तक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर आए आंकड़ों के मुताबिक बीजेपी उत्तर प्रदेश में 35 सीटों पर आगे चल रही है जबकि सपा 34, कांग्रेस 8 सीटों पर आगे है। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सिर्फ 5 सीटों पर जीत मिली थी जबकि कांग्रेस एक ही सीट जीत पाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में 64 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसमें से 62 सीटें अकेले बीजेपी को मिली थीं। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जारी काउंटिंग के बीच शुरुआती रुझानों के मुताबिक, एनडीए 296 और इंडिया गठबंधन 226 सीटों पर आगे चल रही है। डेढ़ महीने पहले तक नरेंद्र मोदी के लिए कहा जा रहा था कि उनका कोई विकल्प नहीं है। प्रधानमंत्री की लार्जर दैन लाइफ इमेज पूरी तरह से चुनावी परिदृश्य पर हावी रही। तो फिर किस कारण से मतदाताओं मूड में थोड़ा बदलाव आया? इंडियन एक्सप्रेस में कोमी कपूर लिखती हैं भाजपा ने थोड़े अति आत्मविश्वास के कारण अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। पार्टी के लिए विशेष रूप से हानिकारक भाजपा सांसदों का यह कहना था कि मोदीजी को 400 सीटों की आवश्यकता है ताकि संविधान में संशोधन किया जा सके। सोशल मीडिया और चुनावी प्रचार के माध्यम से कांग्रेस ने यह प्रचार किया कि संविधान बदलने से एससी और ओबीसी के लिए आरक्षण समाप्त हो सकता है। अफवाह ने इतना तूल पकड़ लिया कि भाजपा को डैमेज कंट्रोल करना पड़ा। यही कारण है कि आखिरी मिनट में पीएम मोदी का चुनाव अभियान घबराहट भरा लग रहा था। उन्होंने अपने अभियान को मुस्लिम जन्म दर के बारे में डर फैलाना, मंगलसूत्र छीनना, मुजरा और चोरी के नल की बातें की ओर मोड़ दी।
2014 और 2019 में लगातार बीजेपी को सत्ता दिलाने के पीछे किस वर्ग का समर्थन सबसे ज्यादा काम आया है? इस सवाल का जवाब सीडीएस-लोकनीति सर्वे के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है। इसके मुताबिक, भाजपा ने गैर-सवर्ण जातियों में अच्छा समर्थन जुटाया है। 2019 के चुनाव में बीजेपी को सवर्णों का लगभग 60% वोट, ओबीसी का लगभग 45%, एससी का लगभग 35% और एसटी का लगभग 40% वोट शेयर मिला। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है। अब तक के रुझानों के मुताबिक, एनडीए को 290 सीटों पर और इंडिया गठबंधन को 225 सीटों पर बढ़त हासिल है। ये नतीजों 1 जून को सामने आए एग्जिट पोल के आंकड़ों को गलत साबित कर रहे हैं जहां ज़्यादातर पोल्स में इंडिया गठबंधन के 200 से भी कम सीटों पर सिमटने का अनुमान लगाया था। देखिये तमाम एग्जिट पोल्स का आंकलन।
योगेंद्र यादव ने कहा है कि जो रुझान आ गए हैं, उनमें बहुत बड़ा बदलाव होने के आसार कम हैं। हमने जब पहले कहा था कि उत्तर प्रदेश में भूचाल आने वाला है तब कोई यकीन नहीं कर रहा था। उत्तर प्रदेश में जो रुझान दिख रहे हैं, उसकी वजह बताते हुए योगेंद्र यादव ने कहा कि वहां मौजूदा सांसदों के प्रति लोगों में गुस्सा था। योगी आदित्य नाथ का कोई असर नहीं था। लोगों का साफ कहना था कि उन्हें योगी पसंद हैं, पर यह चुनाव योगी का नहीं है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में चुनाव आयोग की वेबसाइट (results.eci.gov.in) पर सुबह पौने दस बजे जो आंकड़े दिखाए जा रहे थे उसके मुताबिक भाजपा 32 सीटों पर आगे थी, जबकि सपा 31 और कांग्रेस छह सीटों पर बढ़त बनाए हुए थी।
कुछ एग्जिट पोल्स ने भविष्यवाणी की है कि बीजेपी तमिलनाडु और केरल दोनों राज्यों में सीटें जीतेगी। अगर ये भविष्यवाणियां सच साबित हुईं, तो इसका मतलब भाजपा के लिए एक नए चरण की शुरुआत होगी। भाजपा पिछले चुनाव में तमिलनाडु में एआईडीएमके के साथ गठबंधन में थी। वहीं, केरल में 10% से अधिक वोट शेयर होने के बावजूद भाजपा ने कभी भी विधायक चुनाव 2016 से ज्यादा कुछ नहीं जीती है। इन दोनों राज्यों में सीटें जीतने की भाजपा की क्षमता के दूरगामी प्रभाव होंगे, न सिर्फ भाजपा के लिए बल्कि राज्य की राजनीति के लिए भी जहां अब तक दो पार्टियों का ही दबदबा रहा है।
ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजेडी), आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) जैसी पार्टियों ने भाजपा को वैचारिक रूप से चुनौती दिए बिना उससे लड़ने की कोशिश की है। हालाँकि वे अपने राज्यों में चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करते हैं लेकिन उन्होंने संसद में भाजपा के एजेंडे को लगभग हमेशा समर्थन दिया है। एग्जिट पोल से पता चलता है कि चुनाव में इन पार्टियों की कीमत पर बीजेपी को बड़ा फायदा होने की उम्मीद है। अगर ऐसा होता है तो इसका मतलब देश में क्षेत्रीय राजनीति पर दबाव होगा।
2019 के लोकसभा चुनावों में पोस्टल बैलेट ने आठ राज्यों के नौ निर्वाचन क्षेत्रों में विजेता का फैसला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इनमें से प्रत्येक सीट पर डाले गए पोस्टल बैलेट की कुल संख्या जीत के अंतर से अधिक थी। 2019 के लोकसभा चुनाव परिणामों के विश्लेषण से पता चलता है कि ये नौ सीटें उन 14 निर्वाचन क्षेत्रों में से थीं जहां जीत का अंतर 5,000 वोटों से कम था। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
कोविड महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में काफी सुधार हुआ है और यह निरंतर बढ़ रही है। ऐसे में मजबूत जनादेश के साथ एक स्थिर सरकार का होना महत्वपूर्ण है जो नीतिगत बदलाव ला सके और विकास की इस गति को बनाए रखने के लिए आवश्यक सुधारों को शुरू कर सके। इसके साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नीति की निरंतरता भी महत्वपूर्ण है और उद्योग के विकास को गति दी जाए।
2024 के लोकसभा चुनावों के शुरुआती चरणों में देखी गई मतदान प्रतिशत में गिरावट पर राजनीतिक विश्लेषक नीलांजन सरकार ने रिसर्च किया कि क्या 2024 में मतदान में गिरावट का मतलब बीजेपी के लिए उलटफेर है? हिंदुस्तान टाइम्स में छपे उनके लेख के अनुसार, ईसीआई द्वारा अब तक जारी किए गए मतदान आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि लिंक इतना सीधा नहीं हो सकता है।
पहले 6 चरणों के मतदान के लिए 486 सीटों में से 485 पर मतदान हुआ। इन 485 संसदीय क्षेत्रों में 2019 के चुनाव में 67.6% मतदान हुआ था। मतदान में बड़ी गिरावट काफी हद तक चुनाव के पहले दो चरणों तक ही सीमित थी। पहले छह चरणों के 466 क्षेत्रों में मतदान में 68% की कमी आई है। 54 सीटों पर 1 प्रतिशत अंक से कम की गिरावट दर्ज की है और अन्य 49 सीटों पर केवल 1-2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है। वहीं, 214 सीटों पर मतदान में 2 प्रतिशत अंक या उससे अधिक की कमी आई है।
जिन 214 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान में 2 प्रतिशत अंक या उससे अधिक की कमी आई है, उनमें से 47 केरल और तमिलनाडु में हैं, ये दो राज्य हैं जहां भाजपा का प्रभाव सबसे कम होने की संभावना है। दूसरी ओर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में किसी भी संसदीय समिति ने मतदान में 2 प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज नहीं की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने लगातार एनडीए के लिए ‘400 पार’ का नारा दिया है। कुछ एग्जिट पोल्स ने भी एनडीए को 400 पार जाते हुए दिखाया है। लेकिन, असल में देश के चुनावी इतिहास में केवल एक बार ही किसी पार्टी (कांग्रेस) को 400 से ज्यादा सीटें मिली हैं। किन परिस्थितियों में और कब ऐसा हुआ था, इस बारे में विस्तार से यहां पढ़ सकते हैं।
चुनाव विश्लेषक रहे योगेंद्र यादव ने अपने निजी अनुभवके आधार पर आकलन किया है कि बीजेपी के लिए बहुमत प्राप्त करना आसान नहीं होगा। उनका कहना है कि शुरुआत में तो उन्हें ऐसा नहींलग रहा था, लेकिन जब वह क्षेत्र में घूमे तो उन्हें बिल्कुल अलग ही अनुभव हुआ। यादव का आकलन सही है या गलत, आज मतगणना के बाद पता चल जाएगा। योगेंद्र यादव ने अपने अनुभव के आधार पर जो लेख लिखा, उसे आप यहां पढ़ सकते हैं।
आज लोकसभा चुनाव के नतीजों से यह बात भी स्पष्ट होगी कि क्या मतदाताओं ने वोट करते वक्त यह भी ध्यान में रखा था कि आय में असमानता लोगों की एक बड़ी समस्या है और सरकार को इस दिशा में काम करने की जरूरत है? हाल ही में बैंक ऑफ बड़ौदा के अर्थशास्त्रियों ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट से यही बात सामने आती है कि उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम के बीच आर्थिक असमानता की बड़ी खाई है जिसे पाटने की जरूरत है। पढ़ें पूरी खबर
चुनाव एक्सपर्ट अमिताभ तिवारी एनडीटीवी के लिए लिखते हैं कि ऐसी उम्मीद है कि एनडीए उत्तर प्रदेश में कुछ और सीटें हासिल कर सकता है जबकि राजस्थान और हरियाणा में उसे राजपूत और जाट समुदाय की नाराजगी की वजह से कुछ सीटों का नुकसान भी हो सकता है। बिहार में एनडीए कुछ सीटें खो सकता है। महाराष्ट्र में चुनावी लड़ाई कठिन है और यहां भी बीजेपी को कुछ हद तक नुकसान होने का खतरा है। लेकिन ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बीजेपी अपनी सीटों की संख्या में इजाफा कर सकती है। इन राज्यों में उसकी लड़ाई क्रमश: बीजेडी और टीएमसी से है।
सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन के चुनाव अभियान में इस बार बड़ा स्विंग देखने को मिला। एनडीए ने शुरूआती चरण में अपनी सरकार की आर्थिक उपलब्धियों और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को सामने रखा और बाद में यह संकीर्ण सामाजिक एजेंडे की ओर शिफ्ट हो गया। शुरुआत में इंडिया गठबंधन दिशाहीन दिख रहा था लेकिन जल्द ही वह लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट हुआ।
बीजेपी के आक्रामक ध्रुवीकरण वाले चुनाव प्रचार ने विपक्ष को एकजुट कर दिया। सत्तारूढ़ गठबंधन पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे था। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में भी जहां पर बीजेपी के पास बेहद लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, वहां भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही चुनाव प्रचार में छाए रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान रिकॉर्ड तोड़ 206 जनसभाएं की। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने 80 साक्षात्कार भी दिए। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने 107 चुनावी कार्यक्रम किए। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव प्रचार अभियान पर बात करते हुए तवलीन सिंह कहती हैं, “हमारे बड़े नेता एक-दूसरे पर अपशब्द कहना शुरू करते हैं तो वे भूल जाते हैं कि उन्हें नीतियों के बारे में बात करनी चाहिए। उन्हें यह बताना चाहिए कि वे भारत के लिए क्या करना चाहते हैं। भविष्य के लिए उनके दृष्टिकोण के बारे में बोलना चाहिए। इसके बजाय, इस चुनाव में हमें जो मिला वह मुफ्त के अंतहीन वादे थे। लोगों को पैसे और मुफ्त अनाज देने से कोई भी देश समृद्ध या विकसित नहीं हुआ। या एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से किसी का भला हुआ है।”
लेखिका आगे लिखती हैं, “प्रधानमंत्री ने एक साक्षात्कार में घोषणा की कि उन्हें भगवान ने भारत को बचाने के लिए भेजा है। कोई भी राजनेता भगवान द्वारा नहीं भेजा जाता है। वे लोगों द्वारा चुने जाते हैं और अगर ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि वे भगवान के दूत हैं तो उन्हें खुद को मंदिरों और ध्यान तक ही सीमित रखना चाहिए। मसीहाओं का राजनीति में आना खतरनाक है। यह न सिर्फ उनके लिए बल्कि उनके लिए भी खतरनाक है जो उन्हें वोट देते हैं।”
विपक्षी दल भी इसमें पीछे नहीं रहे। मुफ्त नौकरियों और पॉकेट मनी के वादों के साथ-साथ यह लगातार कहा जा रहा था कि मोदी को वोट देकर दोबारा सत्ता में लाना खतरनाक होगा क्योंकि वह लोकतंत्र और संविधान को खत्म कर देंगे। भारतीय मतदाता गरीब और अर्ध-साक्षर हो सकते हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश ऐसे सिद्धांतों या मसीहाओं से मूर्ख नहीं बनते हैं।
बीजेपी के आक्रामक ध्रुवीकरण वाले चुनाव प्रचार ने विपक्ष को एकजुट कर दिया। सत्तारूढ़ गठबंधन पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे था। बीजेपी और कांग्रेस का चुनाव अभियान कैसा रहा, जानने के लिए यहां क्लिक कर पूरी खबर पढ़ें।
इस चुनाव में एक बात यह साफ दिखी कि महिला मतदाताओं पर सभी की नजरें रहीं। भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस सभी ने महिलाओं को ध्यान में रख कर विशेष घोषणाएं कीं। महिला मतदाता बड़ी संख्या में मतदान करने भी आईं। यह भी एक तथ्य है कि अब महिलाएं पुरुषों के प्रभाव में आकर नहीं, बल्कि अपने मन से मतदान करने लगी हैं। महिलाओं का वोट किसे किस रूप में फायदा पहुंचाता है, यह भी चुनाव नतीजों से पता चलेगा।
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान उत्तर प्रदेश के तमाम संसदीय क्षेत्रों में घूमे इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकारों का अनुमान है कि राज्य में दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर एनडीए को कड़ा मुकाबला का सामना करना पड़ सकता है। ये कौन सी सीटें हैं, जानने के लिए यह खबर पढ़ें
एग्जिट पोल्स के नतीजों के मुताबिक बीजेपी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। 4 जून को यह साफ हो जाएगा कि एग्जिट पोल्स के नतीजे सही हैं या नहीं। लेकिन, यह बात साफ है कि बीते दस सालों में बीजेपी लगातार हर वर्ग का समर्थन हासिल करने में कामयाब रही है। लोकनीति-सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे के आंकड़ों पर आधारित यह रिपोर्ट पढ़िए
विभिन्न संगठनों और मतदान एजेंसियों द्वारा लगाए गए एग्जिट पोल के नतीजों का विश्लेषण करते हुए टीएम वीरा राघव ने विपक्ष की प्रमुख रणनीतिक विफलताएं बताई हैं। उनका कहना है कि इंडिया गठबंधन ने राज्य-दर-राज्य स्थानीय असंतोष पर अभियान चलाया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बड़े लेवल पर टकराव को टाल दिया। कई प्रमुख राज्यों में पार्टी ने आर्थिक और किसानों के बीच असंतोष को सामने लाया लेकिन यह स्थानीय अंकगणित पर अधिक निर्भर था न कि राष्ट्रव्यापी लेवल पर। पार्टी के पास पीएम मोदी के मजबूत चेहरे के विकल्प के रूप में कोई ठोस चेहरा नहीं था। कांग्रेस के घोषणापत्र में वादे तो थे लेकिन वह चेहरा कौन था जो उस वादे को पूरा करेगा? अगर चुनाव से पहले उसके पास कोई पीएम उम्मीदवार होता तो उसे नुकसान होता और अगर नहीं होता तो भी उसे नुकसान उठाना पड़ा है।
यहां तक कि राज्य-दर-राज्य रणनीति में भी कहीं मुक़ाबला सीधा कांग्रेस बनाम भाजपा नहीं था जहां कांग्रेस लगभग सभी सीटों पर भाजपा को हराने का दावा कर सके। उदाहरण के लिए कर्नाटक में भी जो संभवतः कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ है पार्टी यह दावा नहीं कर सकी कि वह भाजपा के 2019 के 25/28 के प्रदर्शन को पूरी तरह उलट देगी।