अगर अदालत किसी आपराधिक मामले की जांच केंद्रीय एजंसी को सौंप दे तो उससे यही संदेश जाता है कि उस मामले को सुलझाने में राज्य सरकार नाकाम रही या उस पर भरोसा नहीं रह गया है। पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं के उत्पीड़न और जमीन कब्जा करने के मामले में वहां के उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो से जांच कराने का आदेश दिया है।

इससे राज्य सरकार पर कमजोर हुए भरोसे का संदेश जाता है। हालांकि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस इस मामले को भाजपा की रची साजिश बता रही है। इस वर्ष जनवरी से ही संदेशखाली विवादों में घिरा हुआ है। राशन घोटाला मामले में जांच के लिए प्रवर्तन निदेशालय का दल तृणमूल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख के घर पहुंचा तो उस पर पथराव किया गया, जिसमें कई कर्मचारी घायल हो गए।

उसके बाद वहां की महिलाओं ने आरोप लगाया कि शाहजहां शेख के लोग महिलाओं को घर से उठा कर ले जाते और उनका यौन शोषण करते हैं। उन्होंने कई भूखंडों पर जबरन कब्जा कर लिया है। इसे लेकर महिलाएं पिछले करीब दो महीने से आंदोलन कर रही हैं। हालांकि राज्य सरकार ने मामले की जांच कराई, पर उसमें कोई भी आरोप साबित नहीं हो पाया। उसके बाद वहां भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच सियासी आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं।

कोलकाता उच्च न्यायालय ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था। पहले उसने राज्य सरकार से स्थिति रिपोर्ट मांगी, पर उसमें तमाम आरोपों का सिरे से खंडन ही किया गया था। राज्य महिला आयोग और पुलिस की महिला शाखा की रिपोर्टें राज्य सरकार की दलीलों को सही ठहरा रही हैं, मगर राष्ट्रीय महिला आयोग इसके उलट तस्वीर पेश कर रहा है।

स्वाभाविक ही, अदालत ने मामले की जांच सीबीआइ से कराना उचित समझा है। अब संदेशखाली को लेकर राजनीतिक रस्साकशी कुछ अधिक बढ़ गई है। इसे लेकर भाजपा जहां ममता सरकार पर निशाना साध रही है, वहीं ममता बनर्जी का कहना है कि संदेशखाली आरएसएस का गढ़ बन चुका है और वही ऐसे बेबुनियाद विवाद पैदा कर रहा है।

जाहिर है, इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच हकीकत सामने नहीं आ पा रही। शाहजहां शेख पर गंभीर आरोप हैं और उसे केवल एकतरफा दलीलों के आधार पर बेगुनाह करार नहीं दिया जा सकता। पश्चिम बंगाल पर सदा से राजनीतिक वर्चस्व के लिए खूनी संघर्ष और सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगता रहा है।

पहले वाम मोर्चा के कार्यकर्ताओं पर आरोप लगते थे कि वे सरकारी संरक्षण में जमीनों पर कब्जा करते, ठेके उठाते, अनियमितताएं करते और विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा करते हैं। उन्हीं प्रवृत्तियों के प्रतिकार में लोगों ने तृणमूल कांग्रेस के हाथ में सत्ता सौंपी थी। मगर अब यह छिपी बात नहीं है कि तृणमूल के कार्यकर्ता और नेता भी उसी राह पर चल पड़े हैं, जिस पर पहले वाम मोर्चा के कार्यकर्ता चला करते थे।

ऐसी अनेक घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें तृणमूल कार्यकर्ताओं और नेताओं पर दबंगई के आरोप हैं। हालांकि भाजपा जिस तरीके से अपना राजनीतिक प्रभाव जमाना चाहती है, वह भी आरोपों से मुक्त नहीं है। मगर चूंकि कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर है, इसलिए उससे पारदर्शिता और निष्पक्षता की उम्मीद अधिक की जाती है। संदेशखाली को लेकर छिड़े विवादों को अगर राज्य सरकार ने निष्पक्ष होकर निपटा लिया होता, तो अदालत को सीबीआइ जांच का आदेश देना ही न पड़ता।