‘विकट स्थिति’ (संपादकीय, 12 अगस्त) पढ़ा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के विदेश नीति की यह सबसे बड़ी भूल साबित होने जा रही है। इन्होंने अफगान नागरिकों की सुरक्षा का खयाल किए बगैर उन्हें मरने, दर-दर भटकने और पाषाणयुगीन अमानवीय नियमों को मानने को अकेला छोड़ दिया। ऊपर से कह रहे हैं कि उन्हें अपने फैसले पर कोई पछतावा नहीं है।

सबसे ताकतवार राष्ट्र सबसे कमजोर राष्ट्र से अगर कहे कि अपनी सुरक्षा तुम खुद करो तो यह हास्यास्पद लगता है। दो दशकों तक वहां अमेरिका ने युद्ध लड़ा। अब जब थोड़े दिनों बाद वहां शांति आ सकती थी तो उसे मझधार में छोड़ दिया। ऊपर से उग्रवादी तालिबान को वार्ता के मेज पर सम्मान देकर उन लोगों का मान बढ़ाया। वहां की सेना प्रमुख बर्खास्त कर दिए गए। वित्त मंत्री देश से भाग चुके। भारत भी अपने लोगों को वहां से निकलने का आदेश दे चुका है। अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के अनुसार अगले नब्बे दिनों के भीतर काबुल में आतंकियों का कब्जा हो जाएगा।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड<br />
पर्यावरणीय चुनौती

हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट जारी की है, जो यह पूवार्नुमान दे रही है कि वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु में बढ़ते तापमान की प्रवृत्तियों से समुद्र स्तर में वृद्धि, वर्षा और सूखा, अत्यधिक गर्मी, हिमरेखा घटने और ग्लेशियर पिघलने की प्रवृत्तियों में वृद्धि होने की आशंका है। भारत में 7,517 किलोमीटर की तटरेखा है, जो हिंद महासागर से लगी हुई। अगर हिंद महासागर गर्म होता है तो इसके जल स्तर में वृद्धि हो सकती है।

इसका प्रभाव विशेष रूप से दक्षिण भारत पर पड़ेगा। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि यह पहले से ही जल संसाधन का दुरुपयोग, खनन और वनों की कटाई में आगे है। जबकि यह एक विकासशील देश है। यह जीवाश्म र्इंधन पर निर्भर है। दूसरी ओर इसका अधिकांश हिस्सा समुद्र से लगा हुआ है। यह पूरे तरीके से अनुचित है कि विकसित देश, जो कार्बन उत्सर्जन में आगे हैं, उनके कार्बन उत्सर्जन से पर्यावरणीय नुकसान का भरपाई विकासशील देश करें।
’मनीष कुमार, पटना, बिहार