भारत विकास की ओर तेजी से अग्रसर देशों में अग्रणी है, लेकिन इस विकास के बीच भी हमारे सामने कई बुनियादी समस्याएं हैं, जिनका निदान हम वर्षों से ढूंढ़ रहे हैं। ऐसा ही एक विषय है महिलाओं की माहवारी का प्रश्न। यह एक जैविक प्रक्रिया है जो महिला शरीर में होती है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में और यहां तक की प्रमखु शहरी क्षेत्रों में भी इसे एक ऐसे मुद्दे के रूप में देखा जाता है, जिसके विषय में समाज में चर्चा करना गलत है और इसका सबसे बड़ा कारण है हमारी रूढ़िवादिता। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दस में से तीन महिलाओं को माहवारी के विषय में तब तक कोई जानकारी नहीं होती, जब तक वे खुद में इसे नहीं पातीं। राजस्थान में यह आंकड़ा दस में से नौ महिलाओं का हो जाता है।
अन्य आंकड़ों की बात करें तो भारत में लगभग 36.5 करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जो हर माह मासिक धर्म से गुजरती हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ छत्तीस फीसद फीसद महिलाएं ही सेनेटरी पैड का उपयोग करती हैं। यह जानते हुए भी की इसके परिणाम भविष्य में उनके लिए घातक साबित हो सकते हैं और उन्हें कई लाइलाज बीमारियों से ग्रसित कर सकते हैं। सरकार इस विषय पर काम कर रही है, लेकिन शुरुआत हमें भी करनी होगी। देश से रूढ़िवादी सोच मिटाने और कपड़े से होने वाली बीमारियों को खत्म करने के लिए हमें आगे आना ही होगा।
’साक्षी मिश्रा, भारती कॉलेज, दिल्ली</p>
इंतजार का फल
तोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने भारत को एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक दिलाया, जो ऐतिहासिक है। नीरज ने अपने स्वर्ण पदक को विख्यात एथलीट मिल्खा सिंह और पीटी उषा को समर्पित किया है। निश्चित ही इसमें नीरज चोपड़ा की लगन, मेहनत और धैर्य के कठिन अभ्यास का बड़ा योगदान है। उनकी की इस ऐतिहासिक जीत ने भाला फेंक जैसे खेल की ओर युवाओं को आकर्षित किया है। इससे भविष्य में और अधिक प्रतिभाशाली युवाओं के माध्यम से अनेक मेडल की संभावनाएं पैदा हुई हैं। भारत जैसे देश में जहां अधिक जनसंख्या और बेरोजगारी की समस्या है, अगर खेलों को प्रोत्साहन और सही दिशा मिले तो निश्चित ही यह खेल की दुनिया में शीर्ष दस देशों में होगा।
’युवराज पल्लव, मेरठ, उप्र