हालांकि ऐसे कर्मचारी कंपनी के साथ लंबे समय तक भी जुड़े रहते हैं। स्वतंत्र रूप से ठेके पर काम करने वाले कर्मचारी। आनलाइन मंच के लिए काम करने वाले कर्मचारी। जैसे खाने-पीने का सामान पहुंचाने वाले कैब ड्राइवर, कूरियर बांटने वाले आदि। पूरे भारत में लगभग डेढ़ करोड़ गिग कामगार हैं।

जिन संस्थानों या मंचों के लिए वे काम करते हैं, वे उन्हें कर्मचारियों के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। ऐसे श्रमिकों के लिए कोई नियामक ढांचा भी नहीं है। ये कामगार अमानवीय व्यवहार की कई कहानियां सुनाते हैं। हाल ही में खाने-पीने का सामान पहुंचाने वाले एक एजंट दुर्घटना का शिकार हो गया। उसने कंपनी के सहायता कक्ष को फोन किया, जिसके लिए वह काम कर रहा था। कंपनी ने केवल अपना सामान पहुंचाने के लिए एक प्रतिस्थापन भेजा, लेकिन उसकी मदद के लिए कोई नहीं आया।

कैब चालकों की भी स्थिति अलग नहीं है। गिग कामगार यूनियनों की मुख्य मांगों में से एक उन्हें कर्मचारियों के रूप में मान्यता देना है। अधिकतर गिग मजदूर किसी मंच से जुड़े हैं और सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए कर्मचारियों के रूप में काम करने और उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए बाध्य हैं। लेकिन उन्हें ‘डिलीवरी पार्टनर्स’ या ‘तत्काल ठेकेदारों’ जैसे चमकते नए नाम से संदर्भित किया जाता है, जिससे उन्हें कर्मचारियों के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है कानूनी रूप से।

सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए और वह यह सुनिश्चित करे कि गिग कामगार के लिए नियामक ढांचा हो, जिससे इन श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा की जाए। वास्तव में ‘गिग कामगार’ के महत्त्व को कभी कम नहीं आंका जा सकता है। उनकी भूमिका बेहद अहम है क्योंकि वे रोजगार के बाजार में लचीलेपन और प्रतिभा की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं।
परमवीर ‘केसरी’, मेरठ</p>

सावधानी के साथ

जब से राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू की है, तभी से इस यात्रा को जनसमूह का समर्थन मिलता दिख रहा है। लेकिन सरकार ने चीन समेत विश्व के पांच देशों में कोरोना के बढ़ते कहर को ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी से ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को रोकने का आग्रह किया था, जिसे उन्होंने मना कर दिया! हमने कोरोना से बहुत सारे अपने प्यारों को खो दिया है।

बेकारी, मंदी तथा महंगाई का सामना किया है, इसलिए हम एक बार फिर कोरोना के कारण वह सब कुछ सहने के लिए तैयार नहीं हैं। इससे बचने के लिए उपाय करने चाहिए! लेकिन सरकार के द्वारा अभी तक अन्य दलों की ओर से ऐसी सामूहिक यात्राएं रोकने को लेकर अलग से कुछ नहीं कहा गया!

क्या सरकार ने इस महामारी से बचने के लिए तैयारियां की हैं? अस्पतालों में अतिरिक्त बिस्तर, कर्मचारी, दवाइयां, आक्सीजन आदि का प्रबंध किया गया है? क्या विवाह और सामाजिक समारोह में एकत्रित होने वाले लोगों की संख्या निर्धारित की है? यह अच्छी बात है कि सरकार ने प्रभावित देशों से आने वाले यात्रियों की जांच करना शुरू कर दिया है!

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का उद्देश्य लोगों से संपर्क बनाना और उनकी समस्याएं सुनना है! इससे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आम लोग अब सब जानने-समझने लगे हैं। अब देश के सामने बेकारी, महंगाई, गरीबी, कुपोषण, मंदी आदि को दरकिनार करके केवल डरा कर लोगों का ध्यान नहीं हटाया जा सकता।
शाम लाल कौशल, रोहतक

जीवन अनमोल

आज इंसान हर वक्त विलासिता के साधनों को पाने की सोच में लगा हुआ है। हर व्यक्ति चाहता है कि सब कुछ बिल्कुल वैसा हो जाए, जैसा मुझे चाहिए। इच्छाओं पर काबू करने से पहले हकीकत को देखने-समझने आना चाहिए। मन पर काबू करना आना चाहिए। अगर मन परिस्थितियों के हिसाब से ढल जाए तो इंसान हर मुश्किल दौर से जीत सकता है। पर यह मन कहां मानता है।

आए दिन इसी हारे मन की वजह से आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं और यह स्थिति तब ज्यादा भयावह बन जाती है, जब आत्महत्या करने वाले ज्यादातर लोग युवा पाए जाते हैं। भारत में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने अगस्त 2022 में आत्महत्या के आंकड़े जारी किए, जिनके अनुसार देश में कुल 1,64,030 मामले आत्महत्या के थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर चार मिनट में कोई एक अपनी जान दे देता है और ऐसा करने वाले तीन लोगों में से एक युवा होता है। यानी तीस वर्ष से कम उम्र के।

ऐसे में यह बात सोचने पर मजबूर कर देती है कि वे लोग जिनके अपनी जिंदगी को लेकर हजारों सपने होते हैं, ऊंची उड़ानें होती हैं, वे खुद ही अपने सपनों के पंखों को कैसे काट देते हैं। कितने मजबूर होते होंगे वे हाथ जो खुद ही अपना भविष्य लिखते भी हैं और उसे खत्म भी कर देते हैं। ऐसा वही लोग करते हैं, जिनका मन हार जाता है। इसलिए आत्महत्या से पहले किसी भी व्यक्ति के मन की हत्या होती है। पर क्या यह करना ठीक है? क्या कोई सरकार या अन्य व्यक्ति या समाज आत्महत्या के मामलों पर रोक लगा सकता है? यह किसकी जिम्मेदारी है? क्या इस ओर सामूहिक पहल नहीं होनी चाहिए?
किरन शर्मा, फरीदाबाद

बढ़ता खतरा

‘जलवायु परिवर्तन पर खोखली चिंताए’ (लेख, 26 दिसंबर) पढ़ा। जलवायु परिवर्तन से आज न सिर्फ मौसम में बदलाव हो रहे हैं, बल्कि आर्थिक नुकसान भी उठाने पड़ रहे हैं। कहीं पर बरसात रौद्र रूप दिखा कर तबाही मचा रही है तो कहीं पर कम बरसात से नुकसान हो रहा है। कहीं गर्मी तमाम रेकार्ड तोड़ रही है, तो कहीं अत्यधिक ठंड के कारण हाहाकार मच जाता है। तमाम भविष्यवाणियां यह दिखा रही हैं, खतरे की घंटियां हर तरफ से बज रही हैं और सभी को इस बात का अंदाजा है कि हम खतरे की तरफ बढ़ रहे हैं।

कभी भूकंप तो कभी सुनामी तो कभी बाढ़ तो कभी बादल का फटना और अब तो आसमानी बिजली के गिरने की घटनाएं भी आम हो चली है। प्रकृति से जो हम ले रहे हैं उसे उतना वापस भी करना सीखें। वर्तमान समय में हमारे समक्ष सबसे बड़ी समस्या है। हम सबको मिलकर इस समस्या को दूर करना है।
साजिद अली, चंदन नगर, इंदौर</p>