उत्तर प्रदेश में एक बार फिर जहरीली शराब ने तांडव मचा दिया है। अलीगढ़ में जिस तरह जहरीली शराब से लोगों की मौतें हुई हैं, उसने एक बार फिर प्रशासन के क्रियाकलाप को कठघरे में खड़ा कर दिया है। प्रदेश में मादक पदार्थ के क्रय-विक्रय के साथ ही अवैध निर्माण पर रोक के लिए पूरा आबकारी विभाग अब तक असफल रहा है। जब कभी ऐसी घटनाएं प्रकाश में आती हैं तो विभाग से कुछ अफसरों का निलंबन कर जिम्मेदारी को इतिश्री मान लिया जाता है। चूंकि घटना सुर्खियों में आ गई है, इसलिए भट्ठियों पर छापेमारी कर कुछ आरोपी गिरफ्तार को किया जाएगा। उसके बाद फिर मामले के शांत होने के बाद जांच और कार्रवाई ठंडे बस्ते में डाल दी जाएगी। बीतते समय के साथ अवैध शराब का कारोबार फिर शुरू हो जाएगा।
उल्लेखनीय है कि जहरीली शराब से मरने वाले कोई अमीर नहीं, बल्कि गांव के मजदूर होते हैं। वे सस्ती शराब के चक्कर में गावों में ही धधकती भट्ठियों में बनने वाले मानक के विपरीत शराब का सेवन कर अपनी जान जोखिम में डाल कर लेते है, जिसका फायदा शराब माफिया उठाते हैं। कई बार इस काले धंधे में नेता-अफसर-माफिया गठजोड़ उजागर हो चुका है। पानी के इस धंधे में पानी की तरह बहते पैसे जांच की आंच को असली गुनहगारों तक पहुंचने नहीं देती और हर बार गरीबों को मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। होना तो यह चाहिए था कि प्रत्येक वर्ष प्रदेश में होने वाली सैकड़ों मौतों को रोकने का प्रयास किया जाए।
पिछले दिनों सहारनपुर, कुशीनगर, मेरठ, प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर और बाराबंकी जैसे लगभग दर्जनों जनपदों में हुई जहरीली शराब के सेवन से मौत की घटनाओं से सबक लेते हुए तंत्र को मजबूत बनाने और इस धंधे को रोकने की तत्काल जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अलीगढ़ में आंकड़ा भयावह है और सरकार आबकारी विभाग से मिल रहे राजस्व के मुनाफे को दरकिनार कर गरीबों के जीवन की रक्षा करेगी।
’अवनिंद्र कुमार सिंह, वाराणसी, उप्र
धुएं की मार
कोरोना संक्रमण की पहचान के लिए नाक, मुंह से रुई लगी काड़ी द्वारा नमूना लिया जाता है। इसके अलावा एक्स-रे, सिटी स्कैन से भी संक्रमण होने का पता लगाया जाता है। धूम्रपान से फेफड़े कमजोर हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति संक्रमण से लड़ पाने में उतना सक्षम नहीं रह पाता। स्वस्थ फेफड़े संक्रमण को रोक पाने में प्रभावी होते हैं। निकोटिन भी हमारे पर्यावरण को जहरीला बनाता है। महज आठ या दस मिनट तक के परोक्ष धूम्रपान से व्यक्ति के रक्तचाप में वृद्धि, ह्रदय की धड़कनों में वृद्धि, खून की नलिकाओं में सिकुड़न, फेफड़ों पर प्रभाव होने लगता है और वे कमजोर हो जाते हैं।
साथ ही कोरोना संक्रमण की स्थिति में ये शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं, जिससे संक्रमण का स्तर बढ़ जाता है। धूम्रपान का धुआं पर्यावरण और इंसान की सेहत बिगाड़ रहा है। खुशहाल जिंदगी जीने के लिए उत्पाद पर लिखी चेतावनी को भी गंभीरता से लेना होगा, ताकि स्वच्छ पर्यावरण के साथ फेफड़ों पर संक्रमण हावी न हो पाए।
’संजय वर्मा ‘दृष्टि’, मनावर, धार, मप्र