पिछले दो दशकों में अमेरिका के तीन राष्ट्रपतियों जॉर्ज बुश, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान को अपने सामरिक हितों के लिए इस्तेमाल किया। अब जो बाइडेन के सत्ता में आते ही अमेरिका ने इस लाचार देश को अपने बलबूते टिके रहने की बात कर आंखे बंद कर ली। महाशक्तियों में अमेरिका, रूस के साथ चीन भी शामिल है। पहली दो महाशक्तियां अपना खेल खेल चुकी हैं। अब बारी चीन की है। अफगानिस्तान में भारत ने वहां की संसद, सलमा बांध, सड़क और बिजली परियोजनाओं पर जो हजारों करोड़ रुपए निवेश किए हैं उन पर तो लगभग पानी फिर ही गया है, साथ ही चाबहार में लगाया पैसा, तापी पाइपलाइन परियोजना का भविष्य भी अब अंधकारमय है।
पाकिस्तान के लश्कर और जैश आतंकी समूह तालिबान से हाथ मिलाने को बेताब हैं और चीन तालिबान से मैत्रीपूर्ण रिश्तों की बात कर रहा है। चीन की स्थिति ऐसी है कि वह भारत को नुकसान पहुंचाने की हर संभव कोशिश करेगा। स्वयं चीन कितना इस्लाम समर्थक है, यह उसके शिनजियांग प्रांत के मुसलमानों की दुर्गति से पचा चलता है। दोहरे चरित्र और साम्राज्यवादी नीति वाला चीन भारत के लिए पाकिस्तान, जैश, लश्कर और तालिबान से बड़ा खतरा है। संयुक्त राष्ट्र जहां हर बार की तरह समय पर और जरूरत के समय मौन है, अमेरिका पलायन पर है, रूस की आंतरिक राजनीति अस्पष्ट है, ऐसे में भारत के विदेश नीति विशेषज्ञों के लिए आवश्यक है कि अंतराष्ट्रीय दबाव बनाकर अफगानिस्तान को बचाने का प्रयत्न करें।
’प्रशांत अहलूवालिया, बिजनौर
अवसर की बात
‘सेना में लड़कियां’ (सम्पादकीय, 20 अगस्त) पढ़ा। सबसे पहले तो सर्वोच्च न्यायालय को धन्यवाद कि उसने एनडीए का प्रवेश द्वार लड़कियों के लिए भी खोलने का आदेश दे दिया। देर से ही सही देश की लड़कियों को यह बड़ा अवसर तो मिला जिसका उपयोग कर वे एक बार फिर यह साबित कर देंगी कि इस काम के लिए भी वे पूरी तरह सक्षम हैं और जो उन्हें इस काम के लिए जो लोग उपयुक्त नहीं समझ रहे थे वे दरअसल भूल कर रहे थे।
हमारा पितृसत्तात्मक समाज भले ही लड़कियों/महिलाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हुए उन्हें अपनी मर्जी से किसी काम के लिए सही और किसी काम के लिए गलत करार दे, लेकिन असलियत तो यह है कि पुरुषों की सोच के विपरीत स्त्रियां हर काम को कुशलता पूर्वक करने का सामर्थ्य रखती हैं और समय आने पर करके दिखातीं हैं। जब वे युद्धक विमान उड़ा सकती हैं तो क्या नहीं कर सकतीं। बस उन्हें अवसर मिलने चाहिए।
’कुमकुम सिन्हा, गाजियाबाद
न्याय की आस में
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद घटित चुनावी हिंसा की जांच का मामला लंबा चलना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उस हिंसा के दौरान प्रशासन की मौजूदगी में लूट, आगजनी, हत्या जैसे घृणित कर्यो को अंजाम दिया गया। अभी तक उन पीड़ित परिवारों को न्याय नहीं मिल सका है। कोलकाता हाईकोर्ट में चुनावी हिंसा की जांच के लिए सीबीआइ जांच व एसआइटी के गठन का आदेश है। सीबीआइ जांच के आदेश की खबर सुनते ही सत्ताधारी टीएमसी पार्टी आग बबूला हो रही है और हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में जाने की घोषणा की है।
यदि सैदव सीबीआइ की जांच निष्पक्ष रही होती तो आज कोई उस पर कोई सवाल नहीं उठाता। कई अवसरों पर देखा गया है कि सीबीआइ को लेकर सर्वोच्च अदालत को भी पिंजरे का तोता जैसी कड़ी टिप्पणियां करने को मजबूर होना पड़ा है। शायद इसी वजह से हाईकोर्ट ने भी एक ही घटना के लिए दो तरह के जांच का आदेश दिया है। हर जांच का उद्देश्य न्याय दिलाना होता है। चुनावी हिंसा के पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने में राज्य सरकार विफल रही है। उन्हें न्याय दिलाना अब जांच एजेंसियों का जिम्मा है।
’हिमांशु शेखर, गया