तरुण विजय सिर्फ मैं श्रेष्ठ और बाकी सब मेरा अनुसरण करें, यह दंभ बहुत घातक होता है। अगर भारत केवल…
अशोक वाजपेयी जाहिर है कि ये बातें हाशिये से कही जा रही हैं: लगभग हमेशा की तरह साहित्य और कलाएं…
गोपेश्वर सिंह रमेशचंद्र शाह को साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला तो हिंदी की आभासी दुनिया में हंगामा हो गया। बधाइयां कम…
अजेय कुमार निर्मला गर्ग के संग्रह दिसंबर का महीना मुझे आखिरी नहीं लगता की कविताएं वामपंथी दर्शन से प्रेरित हैं।…
पूनम सिन्हा भगवानदास मोरवाल के नए उपन्यास नरक मसीहा में गैर-सरकारी संगठनों द्वारा समाज के विकास की आड़ में मजबूती…
कुलदीप कुमार वर्ष समाप्ति की ओर बढ़ रहा है और देश अजीब किस्म की अफरातफरी की ओर। जिस सुशासन का…
अपूर्वानंद ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’, यह सिर्फ किसी एक व्यक्ति की आत्मकथात्मक दुविधा नहीं। समाज और राष्ट्र अक्सर इस…
अर्चना वर्मा वीरेंद्र यादव ने ‘पार्टनर’ की ‘पालिटिक्स’ पर सवाल उठाते हुए अपनी तरफ से यह तो साफ कर दिया…
नरेश सक्सेना रायपुर साहित्य समारोह पर वीरेंद्र यादव की टिप्पणी (जनसत्ता, 21 दिसंबर) सफेद को काला करने और प्रतिष्ठित रचनाकारों…
दिनेश कुमार हिंदी में उपन्यास ही एक ऐसी विधा है, जिसमें पिछले कुछ सालों से निरंतरता बनी हुई है। कहानी,…
राजेंद्र उपाध्याय यह वर्ष कविता के लिए कई दृष्टियों से शुभ रहा। वर्ष के शुरू में ही साहित्य अकादेमी की…
सवाईसिंह शेखावत कुलदीप कुमार का आलेख ‘शब्द छल के सहारे’ (14 दिसंबर) भाजपा के कुनबे की कथित राष्ट्रवादी हरकतों का…