विवाह के बाद पहले दिन वधु ने वर को दूध से भरा गिलास दिया। वर ने ज्यों ही दूध हलक…
सुबह-सुबह जब जाकर बाहर आया तो कबूतर मेरे कमरे के रोशनदान पर चहलकदमी कर रहा था।
वक्त के साथ कैसे सब कुछ इतना बदल जाता है कि एक दौर में सबके लिए सबसे जरूरी चीजें बेमानी…
टीवी धारावाहिक महाभारत के सूत्रधार की गंभीर आवाज में कहे गए शब्द ‘मैं समय हूं’ को कौन भूल सकता है।
कुछ दिन पहले शाम को घूमते हुए मुझे किसी ने आवाज दी- ‘मैयू’। मैं आश्चर्य में पड़ गया। यह मेरे…
मनुष्यों में आपसी जुड़ाव के कई पहलू होते हैं। मसलन सामाजिक, पारिवारिक, व्यावसासिक या पेशेवर जुड़ाव।
इक्कीसवीं सदी के दो दशक गुजर जाने के बाद भी अपने आसपास की स्त्रियों को जिस सामाजिक हैसियत में देखती…
फिलहाल मौसम जिस तरह लहरों की तरह ऊपर-नीचे हो रहा है, उसमें वसंत और फागुन की मिलावट है और पारंपरिक…
सन 1960 के दशक में जब ‘स्त्री मुक्ति आंदोलन’ शुरू हुआ था, तभी से अक्सर स्त्री स्वतंत्रता की बात बड़े…
आमतौर पर समाज में जिन्हें ‘बड़े’ लोग के तौर पर देखा-समझा जाता है, उनसे हमारी अपेक्षाएं क्या होती हैं?
इतिहास साक्षी है कि मनुष्य के संकल्प के सामने नकारात्मक शक्तियां भी नाकाम हो जाती हैं।
अक्सर हमें ऐसे इंसान की तलाश होती है, जिससे हम अपना सुख-दुख, हर्ष-विषाद, हंसी-खुशी साझा कर सकें और अपनी इन्हीं…