अरविंद कुमार मुझे याद है छब्बीस-सत्ताईस दिसंबर 1973 को ‘समांतर कोश’ के विचार की वह न भुला सकने वाली रात।…
राजकुमार रजक मानव अपनी जरूरतों को पूरा करने में सदा ही व्यस्त रहा है और अपनी इसी कवायद में वह…
पेशावर में सैनिक स्कूल के बच्चों और किशोरों पर हुआ मर्मांतक हमला केवल पाकिस्तान नहीं, पूरे विश्व के लिए एक…
धर्मांतरण पर मचे बवाल के संदर्भ में मेरा सवाल है कि जब हम धर्म-परिवर्तन कर सकते हैं तो जाति-परिवर्तन क्यों…
राजमार्गों के विकास सहित एक्सप्रेस-वे जैसी चौड़ी सड़कों का मकसद वाहनों की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करना था। लेकिन निजी-सार्वजनिक भागीदारी…
देवेंद्र आर्य स्तरीयता बनाम लोकप्रियता की गांठ हिंदी साहित्य के लिए ऐसी है, जिसे लगभग सभी बड़े साहित्यकारों ने खोलने…
अभिनव पांडेय कहा जाता है कि देरी से मिला न्याय, अन्याय के ही समतुल्य होता है। भारतीय न्याय प्रणाली में…
जब भी पाकिस्तान किसी घरेलू मोर्चे पर विफल होता है तो वह कश्मीर का मसला जोर-शोर से उछाल कर अपनी…
कुलदीप कुमार वर्ष समाप्ति की ओर बढ़ रहा है और देश अजीब किस्म की अफरातफरी की ओर। जिस सुशासन का…
अपूर्वानंद ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’, यह सिर्फ किसी एक व्यक्ति की आत्मकथात्मक दुविधा नहीं। समाज और राष्ट्र अक्सर इस…
अर्चना वर्मा वीरेंद्र यादव ने ‘पार्टनर’ की ‘पालिटिक्स’ पर सवाल उठाते हुए अपनी तरफ से यह तो साफ कर दिया…
नरेश सक्सेना रायपुर साहित्य समारोह पर वीरेंद्र यादव की टिप्पणी (जनसत्ता, 21 दिसंबर) सफेद को काला करने और प्रतिष्ठित रचनाकारों…