उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से कांग्रेस के सांसद इमरान मसूद का कहना है कि वक्फ संशोधन विधेयक-2024, संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार के खिलाफ है। उन्होंने इसे धर्म की स्वतंत्रता व सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन बताया। इसके साथ ही उन्होंने समान नागरिक संहिता को भी सांवैधानिक अधिकारों के खिलाफ कहा। दक्षिण भारत से लेकर उत्तर पूर्व की सांस्कृतिक-धार्मिक विविधताओं का हवाला देते हुए समान नागरिक संहिता का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि मुसलमानों के लिए अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल बंद होना चाहिए। इस शब्द का इस्तेमाल जानबूझ कर किया जा रहा है। विभिन्न मुद्दों पर नई दिल्ली में इमरान मसूद के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश।
2024 के लोकसभा चुनाव के बाद राजनीति की जो तस्वीर बदली थी उसमें एक सहारनपुर में इमरान मसूद की जीत को लेकर हुआ जश्न भी शामिल था। इस पर प्रशासन ने सवाल उठाए थे। दूसरी ओर केंद्र में गठबंधन सरकार के आते ही संसद में संयुक्त संसदीय समिति का भी पुनर्जन्म हुआ। राजग सरकार का महत्त्वाकांक्षी वक्फ अधिनियम संशोधन विधेयक विपक्ष के विरोध के बाद संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया जिसके सदस्यों में कांग्रेस सांसद इमरान मसूद भी शामिल हैं। वक्फ संशोधन विधेयक के जेपीसी में जाने के बाद सवाल है कि क्या समान नागरिक संहिता पर भी गठबंधन सरकार की राह मुश्किल होनी है। जेर-ए-बहस में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द भी है। इन पर बात करने के लिए मसूद से बेहतर कौन होता?
’राजनीति में लंबे समय रहने के बाद आप आज भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े मंच लोकसभा के सदस्य हैं। राजनीति में प्रवेश के वक्त आपका लक्ष्य क्या था?
इमरान मसूद: राजनीति में मेरा मकसद कभी भी सत्ता हासिल करना नहीं था। मेरा परिवार पिछले सौ साल से राजनीति में सक्रिय है। 1923 में अधिसूचित इलाका बना था जिसके अध्यक्ष मेरे दादाजी रहे। हमारे चाचा भी विधायक रहे। हमारे परिवार का मकसद राजनीति के जरिए समाज सेवा करना था, तो मैं भी यही सोच लेकर आया। राजनीति की शुरुआत सामाजिक सक्रियता से होती है। हमारे परिवार की परंपरा रही कि हमारे घर जो भी किसी तरह की मदद मांगने आए, उनका पूरा सम्मान करते हुए मदद की जाए। हर किसी के साथ बराबरी का व्यवहार करना और सबको बराबरी की दिशा में ले जाना मेरा मकसद बन गया। विडंबना है कि हमारे घर में बहुत लोगों की शादी इसलिए नहीं हुई कि कथित बड़े लोगों ने कहा कि ये छोटे लोगों के बीच बैठता है, और कथित छोटे लोगों ने कहा कि ये तो बड़े लोग हैं। मेरे दादाजी की शादी हुई तो खानदान चला। मेरा मकसद सिर्फ गैरबराबरी को कम करना है।
’आपको राजनीति में हार और जीत दोनों का तजुर्बा रहा है। क्या आप अपनी मौजूदा जीत के समय में कोई फर्क महसूस करते हैं? पिछले कुछ वर्षों में नफरत राजनीति का मुख्य स्वर हो गया है तो इस हालात को कैसे देखते हैं?
इमरान मसूद: इसी नफरती राजनीति के कारण मीडिया में मेरी छवि एक कट्टरपंथी नेता की बना दी गई। जबकि मैं सौ फीसद धर्मनिरपेक्ष, उदारवादी विचारधारा को मानने वाला हूं। चाहे सारा मुसलिम समुदाय मुझसे नाराज क्यों न हो जाए, लेकिन मैंने धर्मनिरपेक्षता के साथ कभी समझौता नहीं किया। चाहे सारे हिंदू भी मुझसे नाराज क्यों न हो जाएं, लेकिन जायज बात बोलने से पीछे कभी नहीं हटा। मुझे खौफ सिर्फ खुदा का है। हमारी नीयत ठीक थी, इसलिए नफरत के इस दौर में भी मोहब्बत की बात कर हम चुनाव जीत गए। मोहब्बत की जीत हुई।
’आपके ही एक बयान के कारण आपकी धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठे थे।
इमरान मसूद: वह मेरा बयान नहीं था। हमारे यहां इस तरह के अल्फाज बहुत निकलते हैं, जिसका इस्तेमाल किया गया। उसी के एक साल बाद जब कांवड़ यात्रा को लेकर सहारनपुर में हंगामा हुआ, तो मैं बीच में खड़ा हो गया और पूरे शहर को नफरत की आग में जलने से बचाया। लेकिन, मीडिया ने इस पर कोई चर्चा नहीं की। हम सबको मानने वाले लोग हैं, सबको साथ लेकर चलने वाले लोग हैं।
’ऐसा सिलसिला चला है कि दो धर्मों के बीच नफरत की खाई बढ़ती जा रही है।
’’हमारे समाज में सनातनी लोग बहुत सहिष्णु रहे हैं। उन्हें भी उकसाने का काम किया जा रहा है। कुछ मुसलिम लोग भी हैं जो एक-दूसरे के अंदर नफरत भरने का काम करते हैं। कुछ लोग इसका राजनीतिक फायदा उठाते हैं। हमारे जैसे लोग इसमें पिस जाते हैं। ‘जाहिद-ए- तंग नजर ने मुझे काफिर जाना/और काफिर ये समझता है कि मुसलमान हूं मैं’। मैं हिंदुओं की सही बात के साथ खड़ा हो जाऊं तो हिंदूपरस्त होने का ठप्पा लगेगा। मुसलमानों की बात करूंगा तो कट्टरपंथी का ठप्पा लगा देंगे। मैं जायज बात कहता रहूंगा, किसी तरह के ठप्पे की परवाह किए बिना।
’आपका राजनीतिक सफर घुमावदार रहा है। समाजवादी पार्टी, बसपा और अब कांग्रेस। क्या अभी यह सफर जारी रहना है?
इमरान मसूद: अब मैं अपनी अंतिम मंजिल पर हूं। यहां से सीधे कब्र में ही जाऊंगा।
’अभी देश में जाति जनगणना सबसे बड़ा मुद्दा है। सामाजिक न्याय बनाम सामाजिक समीकरण के संदर्भ में आप इसे कैसे देखते हैं?
इमरान मसूद: जाति जनगणना इस देश में इसलिए जरूरी है कि हमारे समाज में बहुत सारे दबे-कुचले वर्ग ऐसे हैं जो आज भी बहुत खराब परिस्थिति में हैं। आरक्षण के प्रावधान को 70 साल हो गए। क्या 70 साल में ‘बैकलाग’ भर पाए? क्या उन सामाजिक विषमताओं को जिनके कारण आरक्षण दिया गया था उसे खत्म कर दिया गया? आरक्षण आर्थिक विषमताओं के कारण नहीं दिया गया था। यह सामाजिक विषमताओं के कारण दिया गया था। क्या उन सामाजिक विषमताओं की भरपाई 70 साल में हुई? जाति जनगणना से यही आंकड़े सामने आ जाएंगे, जिससे आगे की नीति बनाने में मदद मिलेगी।
’पिछले दस वर्षों में राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक छवि पूरी तरह बदल दी है। उन्हें ‘पप्पू’ साबित करने की मुहिम फिलहाल तो नाकाम दिख रही है। आपको लगता है कि वे नेतृत्व के लिए पूरी तरह तैयार हैं?
इमरान मसूद: आज तो खैर सभी राहुल गांधी का सम्मान कर रहे हैं। जब राहुल गांधी पर इस तरह का ‘टैग’ लगाया जा रहा था तभी मैं कहता था कि ये इंसान जिस दिन भी प्रधानमंत्री बनेंगे, देश के सफलतम प्रधानमंत्री होंगे। एक उदाहरण सुनिए शामली का। राहुल जी के साथ बस यात्रा चल रही थी तो उन्होंने अचानक से कहा कि इमरान सर, मैं चाहता हूं कि सहारनपुर में लकड़ी के कारीगरों से मिल लूं। उन्होंने कारीगरों व निर्यातकों के साथ जिस विशेषज्ञता के साथ बात की, वह अहम था। उन्होंने मोबाइल पर एक आकृति दिखा कर पूछा कि कितने में बन जाएगा? किसी ने सात लाख तो किसी ने साढ़े सात लाख की रेंज बताई। राहुल गांधी ने कहा कि आप लोग अपना उत्पाद बहुत सस्ता बेच रहे हैं। यह थाईलैंड में पच्चीस लाख से ऊपर का है। उन्होंने कारीगरों से लेकर निर्यातकों तक की दिक्कतों का जिक्र करते हुए कहा कि मैं इस उद्योग को बचाना चाहता हूं। मैं सरकार में आया तो यह जरूर करूंगा। मुझे राहुल जी की गहराई उसी दिन समझ आ गई थी। भारत जोड़ो यात्रा से उन्होंने उन अरबों रुपए के खर्च को बेकार कर दिया जो उनकी छवि खराब करने के लिए खर्च किए गए थे। आज जब राहुल गांधी संसद में बोलते हैं तो उन्हें सुनने के लिए सन्नाटा हो जाता है। सिर्फ भाजपा के लोग शोर मचाते हैं। राहुल गांधी का नेतृत्व देश का सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व होगा।
’पर अभी भी लोगों का पूरा भरोसा नहीं बना है। कब बनेगा पूरा भरोसा?
इमरान मसूद: लोगों को भरोसा हुआ तभी तो उन्हें संसद भेजा। लोगों को भरोसा हुआ तभी तो चार सौ पार का नारा लगाने वाले चुप हो गए। वे अपने दम पर सरकार नहीं बना पाए। जो राजनीतिक परिवर्तन हुआ लोगों के राहुल गांधी पर भरोसे के कारण हुआ।
’मुसलिम नेतृत्व पर आरोप है कि वे अपने ही समुदाय को आगे बढ़ने नहीं देते। चाहे महिला से जुड़ा मुद्दा हो या पसमांदा का, उन्हें मुख्यधारा की राजनीति से दूर रखने की कोशिश होती है।
इमरान मसूद: मुसलमान सिर्फ मुसलमान है। अगर कभी किसी की पिटाई होती है या कोई मुकदमा लड़ता है तो क्या होता है? तब तो पिछड़े और अगड़े का नाम नहीं देखते? आगे और पीछे का नाम नहीं देखते? किसी का नाम काजी इमरान है, या इमरान खान है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। दाढ़ी-टोपी और नाम से ही पहचान की जाती है। अगड़ा-पिछड़ा की बात कर मुसलमानों को कमजोर बनाया जा रहा है। सारे मुसलमान इकट्ठा होकर कुछ नहीं कर पाते हैं।
’तीन तलाक से लेकर कोई और मुद्दा हो, महिलाओं से जुड़े प्रगतिशील फैसलों की भी मुखालफत कर बैठते हैं मुसलिम नेता।
इमरान मसूद: जिस तीन तलाक को सरकार की बड़ी उपलब्धि कहा जा रहा है उसे मान कौन रहा है यह भी तो देखिए। हमें संविधान ने अपने धर्म का पालन करने की आजादी दी है। संविधान हमें धार्मिक स्वतंत्रता देता है। हम अपने धर्म और अपनी परंपरा को मानेंगे। बाबा साहब ने हमें अपने धर्म को मानने की आजादी है।
’तो आपका दावा है कि तीन तलाक पर कानूनी फैसला जमीन पर नहीं उतरा है?
इमरान मसूद: मैं सिर्फ तीन तलाक के संदर्भ में नहीं बोल रहा हूं। इसमें जो दिक्कत है, मैं उसे बोलूंगा तो वह बात थोड़ी अजीब होगी। मैं कड़वी बात कह रहा हूं जो मुसलमान को हजम नहीं होती। हम लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से शरीयत और सहूलियत के हिसाब से न्याय संहिता का इस्तेमाल करते हैं। बात तो एक ही होनी चाहिए न। चंद लोग अपने फायदे के लिए ही करते हैं ऐसा। लेकिन जमीनी हालात बहुत अलग हैं।
’लेकिन तीन तलाक पर बने कानून का कांग्रेस ने समर्थन किया था।
इमरान मसूद: मैं कानून की नहीं, सिर्फ जमीनी हकीकत की बात कर रहा हूं। मुसलिम महिलाएं आगे बढ़ें, उनके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक उत्थान के लिए कुछ योजनाएं भी तो बनाएं। हमारा तो सांस लेना मुश्किल है।
’वक्फ (अधिनियम) संशोधन विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति में भेज दिया गया गया है। 31 सदस्यीय इस समिति में उत्तर प्रदेश से जिन तीन लोगों को रखा गया है, उनमें आप भी हैं। इस विधेयक का इतना विरोध क्यों हुआ?
इमरान मसूद: मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की तैयारी हो रही है। हम इसका पूरा विरोध करते हैं। आप ही बताइए वक्फ क्या होता है? दान होता है। किसी ने अपनी संपत्ति राह-ए-खुदा के अंदर दान की। विभाजन के पहले जो लोग देकर गए। अब आप इन सबको शत्रु संपत्ति घोषित कर देंगे। अब कलक्टर तय करेगा कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है या नहीं। अगर आपको चिंता है तो जो वक्फ की मुख्य संपत्तियों पर कब्जा है उसे मुक्त कराएं। मौजूदा रूप में यह विधेयक संविधान के द्वारा दी गई धर्म की स्वतंत्रता और सांस्कृतिक अधिकारों का सीधा-सीधा उल्लंघन करता है। यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन में दखल दे कर मुसलमानों की धार्मिक प्रथा का उल्लंघन करता है। इसके विरोध का व्यापक सांवैधानिक आधार है।
’मदरसों का बेजा इस्तेमाल होने का जो आरोप लगाया जा रहा आपका उस पर क्या कहना है?
इमरान मसूद: क्या बेजा इस्तेमाल हो रहा है? क्या आपसे कुछ पैसा ले रहे हैं? आपने तो मदरसे के शिक्षकों की तनख्वाह बंद कर दी। उन्हें किसी भी तरह की बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। मैं तो कहता हूं कि इस अल्पसंख्यक शब्द को हटाना चाहिए। हमें अल्पसंख्यक क्यों कहते हैं? अल्पसंख्यक विभाग बना रखा है और उसके बजट में लगातार कटौती हो रही है। अल्पसंख्यक कह कर हमें अलग क्यों कर रहे हैं? इस शब्द को हम नकारते हैं। यह हमारे अस्तित्व पर हमला है। हम मुसलमान हैं और मुसलमान ही रहेंगे।
’सबसे अहम सवाल समान नागरिक संहिता का है और राजग सरकार इसे लेकर मुखर है।
इमरान मसूद: मैं फिर वही बात कहूंगा कि इनके कहने से क्या? संविधान ने जो हमें धार्मिक स्वतंत्रता दी है हम उसका पालन करेंगे। मुसलमान के तौर पर हमारी जो परंपराएं हैं हम उसी को मानेंगे। ऐसे कैसे समान कानून हो जाएगा? दक्षिण भारत की अलग जीवनशैली है, आदिवासियों की, ईसाइयों की अलग परंपरा है, उत्तर-पूर्व की सांस्कृतिक भिन्नताओं को देखिए। ये लोग बैठ कर कुछ भी तय कर लेंगे और थोप देंगे तो वो कैसे कबूल किया जाएगा। बाबा साहेब और संविधान ने जो हमें अधिकार दिए हैं हम उसे ही मानेंगे।
’अब आप लोकसभा के सदस्य हैं। आप वहां जो मुद्दे उठाएंगे क्या वह मुसलिम बिरादरी से जुड़े होंगे या व्यापक दायरा होगा।
इमरान मसूद: मैं लोकसभा में पहली बार चुनकर आया हूं। मैं यह बात फख्र के साथ कह सकता हूं कि यहां मेरा हर दिन सवालों का होगा। यहां लाटरी व्यवस्था है सवाल पूछने के लिए। लोकसभा के सदस्य के तौर पर मैं जिन लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं उनके हितों से जुड़े सवाल उठाऊंगा ही साथ ही पूरे देश के दायरे में जो हो रहा है वह नागरिकों के लिए कितना सही है वे सभी मसले मेरे सवालों के दायरे में रहेंगे।
’अभी उत्तर प्रदेश में क्या स्थिति है?
इमरान मसूद: फिलहाल तो उत्तर प्रदेश में कोई भी स्थिति नहीं है। यहां सिर्फ सत्ता की जंग की स्थिति है।
’क्या सत्ता की जंग कांग्रेस में भी है?
इमरान मसूद: नहीं, मैंने यह बात कांग्रेस के संदर्भ में नहीं कही। जो लोग जीत कर आए, उनके पास पूर्ण बहुमत नहीं है। इसलिए उनमें आपस में रोज लड़ाई हो रही है। रोज उनकी आपसी लड़ाई बाहर आ रही है।
’उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मूल्यांकन किस तरह करेंगे?
इमरान मसूद: योगी जी मुख्यमंत्री हैं इसके अलावा उनका और क्या मूल्यांकन होगा? योगी जी ने बुलडोजर चलवा कर लोगों को तबाह कर दिया है। इसके अलावा और क्या किया है योगी जी ने?
’उत्तर प्रदेश के कानून व्यवस्था पर क्या कहना चाहेंगे आप?
इमरान मसूद: आप क्या बात कर रहे हैं? आप कैसी बात कर रहे हैं? कानून और व्यवस्था का हाल देखिए क्या है। अयोध्या में एक बच्ची के साथ बलात्कार हुआ और आरोपी के घर पर बुलडोजर चला दिया गया। पूरी कानूनी प्रक्रिया पर सवाल उठे। हर तरफ कोहराम है।
’उत्तर प्रदेश में विकास के दावों को लेकर आपका क्या कहना है?
इमरान मसूद: इसे व्यंग्य मानते हुए कहता हूं, विकास तो दिख ही रहा है। विकास का तो डंका सारी दुनिया में बज रहा है।
’लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन कामयाब रहा। क्या राज्य चुनाव आने तक इसकी कामयाबी ऐसी ही दिखेगी।
इमरान मसूद: इस सवाल के जवाब के लिए तो वक्त का इंतजार करना होगा।
’कभी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी में से किसे एक को चुनने की नौबत आए तो आप किसे चुनेंगे?
इमरान मसूद: ऐसी नौबत कभी न आए कि भाई-बहन की जोड़ी टूटे। दोनों बहुत योग्य व कुशल राजनेता हैं।
प्रस्तुति : मृणाल वल्लरी
विशेष सहयोग: सुरेंद्र सिंघल