एक दिन ‘स्टैंडअप कामेडियन’ ने एक गाना गाकर राज्य के एक बड़े नेता पर अवांछित टिप्पणियां कर कहा कि यह ‘हास्य’ है तो दूसरे दिन जिसे निशाने पर लिया जा रहा था उसके भक्त, उसके हास्य को त्रासदी में बदलने को आकुल हो जाते हैं और अगली सुबह कार्यक्रम वाले उस स्टूडियो पर हमला कर उसे तहस-नहस कर देते हैं। लेकिन हास्य कलाकार अड़े रहे कि मैं भीड़ से डरने वाला नहीं। एक भक्त नेता ने भी धमकी दे दी कि कभी तो सामने आएगा! बहसों में एक से एक उदाहरण बरसने लगे कि वह वहां उस पर हंसा तो उसे उसने उसे अंदर किया, वह इस पर हंसा तो उसे भी अंदर किया गया! यहां कोई कम नहीं। जब जो सत्ता में, तब उसकी नाक ऊंची, बाकी की नीची।

विवाद बाबर और औरंगजेब पर ज्ञान को लेकर हुआ

‘औरंगजेब’ संबंधी बहसें अंतत: थकने लगी थीं कि अचानक एक विपक्षी सांसद ने इतिहास का अपना मौलिक ज्ञान बघार दिया कि बाबर को राणा सांगा ने इब्राहीम लोदी को हराने के लिए बुलाया था। यानी न वह बाबर को बुलाता न औरंगजेब हुआ होता। यानी औरगंजेब जैसे आक्रांता के लिए राणा सांगा ही जिम्मेदार था। इतना कहा जाना था कि तर्काें की तलवारें खिंच गईं। बहसों में कई दिन तक कुछ इतिहासज्ञ बताते रहे कि राणा ने सौ लड़ाइयां लड़ीं, निन्यानबे जीतीं। राणा ने लोदी को हराया, बाबर को हराया… हाथ कट गया, फिर भी लड़ते रहे… अस्सी घाव लगे, लेकिन लड़ते रहे..! उनके दुश्मनों तक ने उनकी तारीफ की। ऐसे वीर शिरोमणि को ‘गद्दार’ कहना सबसे बड़ी ‘गद्दारी’ है।

इसके बाद ‘करणी सेना’ स्वयं बहसों से निकल सड़क पर आ डटी और एक दिन ‘करणी सेना’ के कुछ कार्यकर्ताओं ने आगरा स्थित सांसद के घर पर हमला बोल दिया। इसके बाद बहसों में और गरमी आ गई। स्थिति की नजाकत भांप कर सांसद के बड़े नेता जी कुछ नरम हुए और फरमाए कि राणा सांगा महान थे… तो लगा कि अब मामला ठंडा पड़ेगा, लेकिन शुक्रवार तक ‘करणी सेना’ के लोगों ने सीधी धमकी ही दे दी कि जीभ काटने वाले को पांच लाख से ज्यादा का इनाम देंगे! लेकिन यह बहस भी अंतत: ‘जातिवादी बहस’ में बदल दी गई। एक बड़े विपक्षी नेता ने राणा सांगा को गद्दार बताने वाले सांसद के घर पर ‘हमले’ को ‘दलित पर हमला’ कहकर बहस को ‘जातिवादी बहस’ में बदल दिया। ऐसी बातें देख-सुन लगने लगा कि अब हर मुद्दे में ‘जाति जाति’ होगी तो ‘गलत सही’ कैसे तय होगा?

जनसत्ता सरोकार: तर्कों का तांडव, बहसें, बयान और बेतुके निष्कर्ष; अब हर मुद्दे पर सियासत गरमाई

इसके आगे,‘वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक’ के विरोध में जंतर मंतर पर एक से एक गरमागरम तकरीरें और सड़कों पर निकलने के आह्वान और इस पृष्ठभूमि में जुमे की ‘अलविदा नमाज’ के आने… और उत्तर प्रदेश के कुछ बड़े पुलिस अफसरों द्वारा अपने-अपने जिलों में जुमे की नमाज के लिए आदेश देने कि ‘जुमे के दिन नमाज मस्जिदों में पढ़ी जाए, सड़कों-छतों पर न पढ़ी जाए’ ने भी कुछ गरम बहसें पैदा कर दीं। कई मुसलिम नेता कहिन कि ये तो एक धर्म को निशाने पर लेना है… छत निजी जगह, वहां भी न पढ़ें तो कहां पढ़ें… लोकतंत्र नहीं है! ‘पर्सनल ला बोर्ड’ के एक नेता ने कहा कि इस ईद पर विरोध करें, हाथ में काली पट्टी बांधकर नमाज पढ़ें। हैदराबाद में एक बड़े नेता ने काली पट्टी बांधी। लखनऊ, वाराणसी और मेरठ आदि में भी मुसलिम काली पट्टी बांधे दिखे और कई जगह नमाज सड़क पर भी पढ़ी गई। लेकिन कुछ मुसलिम नेताओं ने अपने भाइयों को प्रबोधने के लिए बयान दिए कि नमाज मस्जिदों में पढ़ी जाए, सड़कों पर न पढ़ी जाए, ताकि किसी को परेशानी न हो। और बहुत-सी जगहों पर मस्जिदों ही नमाज पढ़ी गई।

इस तनातनी के बीच इस बार की ‘ईद’ के दिन देश के बत्तीस लाख गरीब मुसलमान परिवारों को ‘सौगाते मोदी’ की ‘किट’ दिए जाने की खबर ने राजनीति में ‘उलटबांसी’ जैसी स्थिति पैदा कर दी। खबर कहती रही कि मोदी जी इसी की ‘ईदी’ देंगे। ‘किट’ में सेवईं, कपड़े, खजूर आदि होंगे। हमें तो इस ईद पर ‘डबल ईदी’ नजर आई : एक ओर ‘सौगाते मोदी’ तो दूसरी ओर ‘सौगाते मोहब्बत’!

जनसत्ता सरोकार: खबर में आने का नया फॉर्मूला, अपमान, विवाद और ‘खारिज संस्कृति’, पढ़ें सुधीश पचौरी का व्यंग्य

बहरहाल, एक बड़े न्यायाधीश के मकान में जलती नकदी का मामला पंद्रह दिन बाद तक जहां का तहां अटका दिखा। कई राज्यों की ‘बार कांउसिलों’ के अध्यक्ष, दिल्ली में सक्रिय हुए, लेकिन निकल के कुछ नहीं दिया। फिर उनमें भी दो धड़े हो गए। एक कहें कि न्यायाधीश पर ‘एफआइआर’ की जाए, तो दूसरे कहें कि ‘महाभियोग’ ही इलाज है! एक कहिन कि कालेजियम व्यवस्था खत्म करो, दूसरा कहे कि पहले नई व्यवस्था सोचो। लेकिन आगे भ्रष्टाचार न होगा, इसकी क्या गारंटी? सच! हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे!

अंत में, यह नेपाल को क्या हुआ कि वहां भी ‘हिंदू हिंदू’ होने लगा। नेपाली जनता भी अब चिल्लाने लगी है कि नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाओ… राजतंत्र को लाओ..! ऐसे पोस्टरों के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का भी चित्र दिखा। गजब! इधर ‘हिंदू हिंदू’ तो उधर भी ‘हिंदू हिंदू’। लाखों सड़क पर आ गए और पुलिस को करना पड़ा लाठी चार्ज। इसे कहते हैं कि खरबूजे को देख खरबूजा बदले रंग!