अपना स्तंभ मैंने समय सीमा का ध्यान रखते हुए भेज दिया था (‘‘सबसे अच्छे इंसान’ को ट्रंप ने क्यों नहीं बख्शा? ऑपरेशन सिंदूर के बाद टूटी दोस्ती की कलई’, जनसत्ता 1 जून, 2025), मगर 24 घंटे से चूक गया। प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस), जनरल अनिल चौहान ने 31 मई, 2025 को सिंगापुर में ब्लूमबर्ग और रायटर्स को साक्षात्कार दिए। समय, स्थान और मीडिया का चयन वास्तव में हैरान करने वाला था, मगर चिंताजनक रूप से गलत नहीं था। अवसर था ‘शांगरी-ला’ संवाद का, यह सिंगापुर में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फार स्ट्रैटेजिक स्टडीज (आइआइएसएस) द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला ‘ट्रैक वन’ अंतर-सरकारी सुरक्षा सम्मेलन है। सिंगापुर एक मित्र देश है।
किसी दिन सच्चाई तो बयान करनी ही थी। मुझे लगता है कि संसद का विशेष सत्र बुलाना और प्रधानमंत्री या रक्षामंत्री द्वारा आपरेशन सिंदूर पर बयान देना तथा चर्चा कराना अधिक उचित होता। हालांकि, भक्तों द्वारा जनरल चौहान को सोशल मीडिया पर परेशान करना बेहद अनुचित व्यवहार था (जिस तरह से उन्होंने विदेश सचिव विक्रम मिसरी को सोशल मीडिया पर तंग किया था)।
लाभ और हानि
जनरल अनिल चौहान सरकार के सर्वोच्च स्तर से निर्देश के बिना बोल नहीं सकते थे। उन्होंने जो कहा, वह सरल और सीधा था : कि भारतीय सेना ने अपने लक्ष्य हासिल कर लिए, लेकिन उसे नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने स्वीकार किया कि सात मई को सामरिक गलतियां हुईं; कि सशस्त्र बलों के नेतृत्व ने फिर से रणनीति बनाई; और भारत ने नौ-दस मई की रात को पाकिस्तान के सैन्य हवाई अड्डों को निशाना बनाकर नया हमला किया।
सीडीएस ने नुकसान की मात्रा नहीं बताई, लेकिन स्वतंत्र विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने नुकसान पांच विमानों का बताया है: तीन रफाल, एक सुखोई और एक मिग। ‘रणनीतिक गलतियों’ और ‘नुकसान’ के मुद्दे पर सैन्य विशेषज्ञों द्वारा गहन तथा गंभीर विश्लेषण की आवश्यकता है, न कि टेलीविजन पर बिना जानकारी के शोरगुल वाली बहस की। सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी (कुछ सत्यापित, कुछ नहीं) से निम्नलिखित बातें स्पष्ट हैं:
भारतीय विमानों और मिसाइलों ने सात मई की सुबह पहले कार्रवाई का फायदा उठाया और पाकिस्तान में आतंकवादी समूहों के नौ बुनियादी ढांचों को नष्ट कर दिया (या गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया)।
पाकिस्तान ने आठ मई को जवाबी कार्रवाई की और भारत पर हमले के लिए ड्रोन भेजे। उसने ‘गाइडेड मिसाइलें’ भी तैनात की थीं। आठ मई को भारतीय विमान गिरे। बाद में सीडीएस की टिप्पणियों (चार जून को पुणे में) से ऐसा लगता है कि भारत के विमान भारतीय हवाई क्षेत्र में गिरे और अन्य विमानों को आठ और नौ मई को गिराया गया था।
पुन: रणनीति बनाने के बाद, भारतीय विमान, मिसाइल और ड्रोन नौ-दस मई को तैनात किए गए (सीडीएस ने 10 मई को कहा)। ऐसा लगता है कि भारत के विमान भारतीय हवाई क्षेत्र में ही रहे और ब्रह्मोस मिसाइलों सहित अन्य मिसाइलों को दागा गया और पाकिस्तान के ग्यारह सैन्य हवाई ठिकानों को निशाना बनाया गया। 10 मई को संघर्ष विराम हो गया।
चीन का छद्म युद्ध
इस लेख का उद्देश्य शौकिया सैन्य विश्लेषक की भूमिका निभाना नहीं है। इसका उद्देश्य यह बताना है कि भारत खुद को एक नई स्थिति में खड़ा पा रहा है। अब यह बात अच्छी तरह स्थापित हो चुकी है कि चीनी विमान (जे-10), चीनी मिसाइलें (पीएल-15) और चीनी वायु रक्षा प्रणालियां पाकिस्तान की रक्षा-आक्रमण रणनीति में पूरी तरह से सक्रिय थीं।
संघर्ष के दौरान चीनी विमानों में पाकिस्तानी पायलट सवार थे, चीनी मिसाइलों के ‘ट्रिगर’ पर पाकिस्तानी उंगलियां थीं और चीनी जनरलों द्वारा तैयार की गई रणनीतिक योजना को अंजाम देने वाले पाकिस्तानी जनरल थे। इसके अलावा, चीनी उपग्रहों और चीनी एआइ ने पाकिस्तान का मार्गदर्शन किया। ऐसा लगता है कि चीन ने इस अवसर का उपयोग युद्ध के मैदान में अपने सैन्य साजो-सामान का परीक्षण करने और भारत के विरुद्ध परोक्ष संघर्ष के लिए किया है।
जो हमें अगले प्रमुख मुद्दे की ओर ले जाता है, वह यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से निर्धारित तीन सूत्रीय सिद्धांत इस मौलिक रूप से बदली हुई स्थिति में कितना प्रासंगिक और प्रभावकारी है? सिद्धांत यह मानता है कि भारत, पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ेगा। अब ऐसा नहीं है। अब यह स्पष्ट है कि अगर भारत पर युद्ध थोपा जाता है, तो भारत को पाकिस्तान और चीन के खिलाफ एक साथ युद्ध लड़ना होगा, जो विरोधी के रूप में साथ हो गए हैं। एक मोर्चे या दो मोर्चों पर संघर्ष के लिए भारत की तैयारियां पर्याप्त नहीं हैं। भविष्य का कोई भी युद्ध संयुक्त मोर्चे का युद्ध होगा।
प्रधानमंत्री मोदी के तीन सूत्रीय सिद्धांत में पहला नियम यह है कि प्रत्येक आतंकवादी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। भारतीय सेना द्वारा सीमा पार किया गया लक्षित हमला (उरी के जवाब में) या भारतीय वायु सेना द्वारा किया गया एकल हवाई हमला (पठानकोट के जवाब में) जैसी कार्रवाई अब कारगर नहीं रह गई है। इसलिए, पहलगाम आतंकी हमले का जवाब चार दिवसीय संघर्ष था। यदि आतंकवादी हमले बंद नहीं होते हैं, तो आगे क्या होगा? एक लंबा और बढ़ता हुआ संघर्ष? संयुक्त मोर्चे के खिलाफ संघर्ष?
विदेश एवं सैन्य नीतियां
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति बदली परिस्थितियों में चिंताजनक रूप से अपर्याप्त साबित हुई है। भारत के विरोध के बावजूद, नौ मई को आइएमएफ ने विस्तारित निधि सुविधा (ईएफएफ) के तहत पाकिस्तान को एक अरब अमेरिकी डालर की मंजूरी दी, जिससे कुल संवितरण 2.1 अरब अमेरिकी डालर हो गया। तीन जून को एडीबी ने पाकिस्तान को 80 अरब अमेरिकी डालर का ऋण स्वीकृत किया। हाल ही में, विश्व बैंक ने दस साल की अवधि में पाकिस्तान को 40 अरब अमेरिकी डालर उधार देने का फैसला किया। इन निर्णयों पर अमेरिका और चीन एक ही पक्ष में थे। बड़ी विडंबना यह है कि पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुना गया! (स्रोत: पवन खेड़ा, अध्यक्ष, एआइसीसी मीडिया एवं प्रचार विभाग)।
यह सब आपरेशन सिंदूर के दौरान और उसके बाद हुआ तथा जब हमारे सांसदों के प्रतिनिधिमंडल दुनिया के देशों को जानकारी दे रहे थे। हर देश ने आतंकवाद की निंदा की, लेकिन मेरी जानकारी के अनुसार किसी भी देश ने पाकिस्तान की निंदा नहीं की। जैसा कि मैंने पिछले सप्ताह लिखा था, अब समय आ गया है कि हम भारत की सैन्य रणनीति और विदेश नीति पर फिर से विचार करें। बहुत ही सोच-समझकर।