तेलंगाना सरकार ने 42 फीसद ‘कोटा’ ओबीसी को दिया। विपक्ष बोला कि हम समर्थन करते हैं, लेकिन क्या सरकार इसके लिए गंभीर भी है! फिर एक दिन एक कथित ‘एन्फ्लूएंसर’ ने धार्मिक स्थल पर नाचते-गाते हुए रील बनाई-दिखाई तो भक्तों ने एतराज किया कि इसने देवी के मंदिर परिसर में शराब पीकर घोर अपराध किया है। इस पर भी ‘एन्फ्लूएंसर’ की एक पक्षधर ने कहा कि किसी ने ‘दी’ होगी तभी ‘पी’ होगी, इसलिए असली दोषी ‘उपलब्ध कराने वाला’ है, न कि ‘पीने वाला’। ‘या बेशर्मी, तेरा ही आसरा’!

फिर आई नागपुर में हुए दंगे की खबर और एंकर पूछते दिखे कि दंगा किसने किया? जवाब में कुछ कहते रहे कि औरंगजेब की ‘कब्र’ ने किया, तो कुछ कहते रहे कि औरंगजेब के विरोधियों ने किया। कुछ कहते रहे कि फिल्म ‘छावा’ ने किया, तो कुछ कहते रहे कि ये औरंगजेब के अत्याचारों के इतिहास ने किया। इन दिनों हर ‘दंगे’ का आरंभ भी ‘प्रचंड’ होता है और अंत भी। दंगा होने पर सत्ता प्रवक्ता कहते हैं कि यह सब ‘सुनियोजित’ था, तो विपक्ष भी ‘सुनियोजित’ जवाब देता है कि सरकार आपकी, पुलिस आपकी, फिर भी आपने होने दिया, ताकि मूल मुद्दों से लोगों का ध्यान भटका रहे। हर दंगा एक ही तरह से निपटता है। पहले दंगा जमीन पर होता है, फिर बहसों में ‘आरोप-प्रत्यारोप’ होते हैं और जब तक शांत हो, तब तक कहीं और फूट पड़ता है। फिर बहसों में ‘आरोप प्रत्यारोप’ होते हैं और जब तक ये निपटे, तब तक कहीं और हो लेता है!

इन दिनों हर बहस एकदम बेरहम, दो-टूक और विभक्त है। एक ओर चुनिंदा मुसलिम नेता-प्रवक्ता, दूसरी ओर चुनिंदा हिंदू नेता-प्रवक्ता होते हैं। एक रोता है कि पुरानी मिलीजुली संस्कृति, गंगा-जमुनी तहजीब, भाईचारे की संस्कृति खत्म की जा रही है तो दूसरा पूछता है कि इस ‘भाईचारे’ में कौन ‘भाई’ है और कौन ‘चारा’ है, ये तो बताइए! फिर एक कहता है हम हिंसा की निंदा करते हैं, तो दूसरा कहते-कहते रह जाता है कि इधर गर्माना उधर निंदा कहकर नरम होना। यही इनकी राजनीति है! एक कहता कि हम भी चाहते हैं कि कब्र टूटे, लेकिन ये तोड़ने की कहकर भी तोड़ेंगे नहीं। ये यों ही लटकाए रहेंगे! बताइए, ऐसे तर्कों का भी क्या कोई जवाब हो सकता है?

एक सुबह ‘वक्फ कानून संशोधन बिल’ के विरोध में ‘जंतर मंतर’ से आती एक से एक गरम आवाजों को उद्धृत करते हुए, शाम को एक एंकर स्वयं पूछने लगती है कि ‘जंतर मंतर’ पर कौन कह रहा था, हम तुम्हें खून देंगे तुम आगे बढ़ो… कौन सुलगा रहा था आग… जवाब में एक विपक्षी नेता कहते हैं कि देश में संघ का एजंडा चल रहा है, निशाने पर मुसलिम हैं। इस पर एक संघवादी पूछता है कि क्या जर्मनी, इंग्लैंड में भी संघ हैं! एक चैनल पर एक विपक्षी नेता कहते हैं कि ‘वक्फ कानून’ का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आएं…, दो साल तक किसानों जैसा धरना दें। एक मौलवी कहते हैं कि शाहीनबाग जैसा धरना जरूरी! एक विपक्षी प्रवक्ता कहते हैं कि ऐसा रहा, तो देश पाकिस्तान बन जाएगा। मुसलमानों के खिलाफ खुला प्रचार चल रहा है..!

फिर एक दिन ‘शंभू बार्डर’ पर धरना दे रहे किसानों का ‘मान सरकार’ द्वारा अचानक हटाया जाना, तंबुओं को तोड़ना-फोड़ना। फिर बहसों का चैनलों में आ जाना और सरकार का नरम भाव से कहने लगना कि हम तो किसानों के सेवक हैं जी… उनकी सेवा करेंगे जी..! इस पर एक ‘उखड़ने वाले’ ही पूछे कि ये कैसी सेवा है महाराज..! जवाब में एक ‘उखाड़ने वाले’ सीधे कहते दिखे कि इसके लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है! ऐसे नायाब तर्क सुन एक चर्चक अपना सिर पकड़ लेता है!

फिर एक दिन बहराइच-संभल में महमूद गजनवी के भांजे ‘सालार मसूद गाजी’ उर्फ ‘मियांवाले की दरगाह’ के सालाना ‘नेजा मेले’ के आयोजन पर रोक लगाते हुए एक अफसर कह देता है कि हम आक्रांता के महिमामंडन की इजाजत नहीं दे सकते और फिर देर तक होती रही वही मुसलिम-हिंदू छाप हाय-हाय। मुसलिम कहे कि सालार गाजी सूफी थे, उनकी महिमा है, तो जवाब आया कि वह आक्रांता गजनवी का भांजा था। उसका महिमामंडन क्यों किया जाए?

फिर एक दिन राजद ने आरोप लगाया कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश ने राष्ट्रगान का अपमान किया, तो नीतीश के प्रवक्ता ने जवाब दिया कि वे तो कह रहे थे कि राष्ट्रगान को जोर से बोलिए। ये तो सम्मान हुआ। राजद वाले इसलिए नीतीश को निशाना बना रहे हैं, क्योंकि इनके कुछ नेताओं से ‘ईडी’ पूछताछ कर रही है!