महाशक्तियों का यह विश्वास रहा है कि सहायता कूटनीति, विदेश नीति के लक्ष्यों को सुगम बनाती है। कई दशकों से विश्व व्यवस्था पर हावी अमेरिकी वर्चस्व को डालर कूटनीति ने बहुत बढ़ावा दिया, लेकिन अब डोनाल्ड ट्रंप इस कूटनीति को नियंत्रण और संतुलन के आधार पर जिस प्रकार आगे ले जाना चाहते है, उससे विश्व व्यवस्था में नाटकीय परिवर्तन होते हुए दिखाई दे रहे हैं। यह नई विश्व व्यवस्था का संकेत है जो नव उदारवाद, सहयोग और मूल्य आधारित अमेरिका की मान्य नीतियों से अलग नव व्यापारवादी, संरक्षणवादी और एकपक्षीयता की पक्षधर हैं। ट्रंप भारत, यूक्रेन, यूरोपीय देशों, खाड़ी देशों तथा रूस के साथ लाभ पर आधारित सहयोग में संबंधों को आगे बढ़ाने या नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिका की जनता के लिए इसे वे प्रगतिशील कदम बता सकते हैं, लेकिन वैश्विक संबंधों की दृष्टि से यह शक्ति संतुलन को बदल सकता है।
दरअसल, अमेरिका की विदेश नीति बीते कई दशकों से यह संदेश देने की कोशिश करती रही कि अमेरिकी नेतृत्व का कोई विकल्प नहीं है, वहीं ट्रंप ‘अमेरिका प्रथम’ को वरीयता देकर अपने सहयोगी देशों को दरकिनार करने की नीति अपना रहे हैं। उन्होंने भारत पर शुल्क लगाने से परहेज नहीं किया। उस पर दबाव डाला कि वह अमेरिका से और अधिक हथियार तथा व्यापार संतुलन स्थापित करें। इस प्रकार दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत ट्रंप की अमेरिका प्रथम नीति का एक प्रमुख निशाना बन गया है। उनकी यह नीति उच्च आयात करों के खिलाफ पारस्परिक कार्रवाई चाहती है, जिससे अमेरिकी घाटे को कम किया जा सके। ट्रंप के इरादों को समझते हुए भारत ने मोटरसाइकिलों पर आयात शुल्क में कटौती की।
भारतीय प्रवासियों के निर्वासन को स्वीकार कर भारत ने एक सकारात्मक संकेत दिया, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने भारतीयों को सैन्य विमान से जिस अपमानजनक तरीके से भिजवाया, वह दोनों देशों के बीच संबंधों के अविश्वास को बढ़ाने वाला कदम है। व्यापार के संदर्भ में अमेरिकी राष्ट्रपति का भारत को लेकर जो रुख है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि वे उससे आर्थिक लाभ पर आधारित संबंध हासिल करना चाहते हैं, लेकिन इसका प्रभाव सामरिक सहयोग और सुरक्षा पर पड़ सकता है। चीन को लेकर अमेरिका आक्रामक है और वह भारत से यह अपेक्षा करता रहा है कि वह चीन के खिलाफ सभी गठबंधनों का हिस्सा बन कर अमेरिकी हितों का संरक्षण करे। क्वाड जैसे संगठन अमेरिका की इस नीति को आगे बढ़ाते हैं, पर भारत के लिए ट्रंप जो आर्थिक मुश्किलें बढ़ा रहे हैं, उसका असर निश्चित ही क्वाड पर पड़ेगा। इससे हिंद महासागर में अपने हितों की रक्षा के लिए भारत को नई रणनीतिक योजना पर काम करने की जरूरत होगी। तीसरी दुनिया की प्रमुख आवाज के तौर पर भारत को पहचाना जाता है, लेकिन ट्रंप तीसरी दुनिया के महत्त्व को ही नकार रहे हैं।
करीब तीन दशक पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश सीनियर ने नई विश्व व्यवस्था का नारा दिया था। इसमें वैश्विक स्तर पर न्याय, सुरक्षा एवं शांति की स्थापना, रूस और अमेरिका के मध्य सहयोग, विकासशील और विकसित देशों के बीच सहयोग तथा संयुक्त राष्ट्र को शक्तिशाली बनाना शामिल था। अमेरिकी मदद से यह लक्ष्य हासिल हो सकता था। अब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी मदद के उद्देश्यों को ही सीमित कर दिया और नई विश्व व्यवस्था के पैमानों को भी बदल दिया। अमेरिकी सरकार की प्रमुख विदेशी सहायता एजंसी ‘यूएसएड’ को बंद कर उसे विदेश मंत्रालय में शामिल कर दिया। राजनीतिक अस्थिरता और गरीबी से जूझते देशों की आर्थिक मदद रोक कर अमेरिका ने इन देशों में धार्मिक कट्टरपंथ के जाल में फंसने के अवसर दे दिए। अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी अलग हटने की घोषणा कर चुका है।
यूक्रेन पर रूस के पूर्ण आक्रमण ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में सबसे गंभीर संकट को जन्म दिया है। यदि यूक्रेन सुरक्षित नहीं है, तो यूरोप सुरक्षित नहीं है और यदि यूरोप सुरक्षित नहीं है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका सुरक्षित नहीं है। दूसरी ओर यूरोप में उदारवादी शासन और लोकतंत्र के कमजोर होने का आशय यह होगा कि अमेरिका के डालर आधिपत्य का ध्वस्त हो जाना। यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप में चीन का निवेश और हस्तक्षेप उसकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। यूक्रेन को लेकर ट्रंप ने अपने यूरोपीय सहयोगियों को नजरअंदाज कर रूस से एकतरफा बातचीत की है। ट्रंप की इस नीति से यूरोप और अमेरिका के बीच अलगाव तथा अविश्वास गया है, यह स्थिति वैश्विक स्तर पर न्याय, सुरक्षा एवं शांति स्थापित करने की कई दशकों से जारी अमेरिकी कोशिशों के उलट दिखाई पड़ती है।
इजराइल फिलिस्तीनी संघर्ष के प्रति दशकों पुरानी अमेरिकी नीति को दरकिनार कर ट्रंप का गाजा के लोगों को जार्डन और मिस्र में बसाने और एक असाधारण पुनर्विकास योजना के प्रस्ताव से दुनिया अचंभित है। ट्रंप की इस पेशकश का खाड़ी देशों में विरोध शुरू हो गया है। खाड़ी के देश अमेरिका की आर्थिक और सामरिक सुरक्षा में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। ट्रंप की इजराइल को एकतरफा मदद देने की योजना सांस्कृतिक टकराव और खूनी संघर्ष के दौर को प्रारंभ कर सकती है।
ट्रंप बहुपक्षीय समझौतों से पीछे हट रहे हैं। वे द्विपक्षीय समझौतों के आधार पर अपने नागरिकों के लिए विशेष वरीयता चाहते हैं। उनकी इस नीति से संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक प्रभाव पर गहरा असर हो सकता है। जी-7 और जी-20 जैसे देशों के बीच आपसी व्यापार बढ़ने की संभावनाओं को गहरा झटका लग सकता है। यह नीति उत्तर-दक्षिण देशों के बीच संबंधों को बाधित करने वाली है। ट्रंप की नीतियों से जो परिस्थितियां उत्पन्न हो रही है, वह उस नई वैश्विक व्यवस्था के संकेत है जहां अंतरराष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और न्याय की स्थापना के लिए विभिन्न राष्ट्रों के बीच समन्वय खत्म हो सकता है। बहरहाल, बदलता हुआ वैश्विक परिदृश्य भावी पीढ़ियों को युद्ध की भयावहता से बचाने की कई दशकों की वैश्विक कोशिशों के लिए झटका है।