भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करो! अपना नया नारा : ‘रोको, टोको और ठोको’- वृत्यानुप्रास अलंकार की यह छटा ‘धर्म संसद’ में बिखरी और चैनलों में छाई! फिर विपक्ष रोने लगा : पेगासस! पेगासस!! एक मंत्री ने जवाब दिया : मामला अदालत में है! यानी बकबक बंद करो!
अगले रोज ‘अमृतकाल’ का ‘अमृत’ बांटता बजट!
लेकिन यह कैसा अमृत सर जी कि न लड्डू न असली घी के हलवे का जलवा! न छपे बजट की प्रतियों के बंडलों के ढेर और उन पर पहरा देते लोग! क्या यही भारतीय संस्कृति है?

एकदम यांत्रिक तरीके से पढ़ा वित्तमंत्री जी ने पहला डिजिटल बजट! एक प्रसंग में महाभारत को याद भी किया तो भी ‘योगक्षेम’ समझाने के लिए! शुरू से आखिर तक सूखे रूखे आंकड़े! आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया! यहां से लेना वहां देना! यह है आमूल परिवर्तन लाने वाला, ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने वाला बजट! ‘अमृतकाल’ यानी अगले पच्चीस साल की आधारशिला रखने वाला बजट!

बजट में देसी डिजिटल करेंसी शुरू करने और बाकी डिजिटल करेंसियों पर टैक्स लगाने की बात कही गई और तुरंत ‘क्रिप्टोकरेंसी’ के भाव चढ़ गए!

प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार ने वित्तमंत्री से पूछा कि ‘इनकम टैक्स’ को न बढ़ाया न घटाया… तो जवाब आया कि यह क्या कम है कि न बढ़ाया न घटाया! एक सवाल रहा कि आसन्न चुनावों के लिए कुछ क्यों नहीं किया, तो मंत्री जी बोलीं कि हम कभी चुनाव के मद्देनजर बजट नहीं देते… लोग मोदी जी पर यकीन करते हैं…

इसके बाद चैनलों में बजट की मीमांसा शुरू हुई! विपक्ष ने की हमेशा की तरह की हाय हाय हाय, तो सत्ता पक्ष ने की वाह वाह!

विपक्ष बोला : ‘मध्यवर्ग मायूस’, ‘गरीब के लिए कुछ नहीं’, ‘कुल मिला कर जीरो बजट’, ‘गरीब की जेब काटने वाला एक और बजट’, ‘गरीब और गरीब हुआ’, ‘पेगासस स्पिन बजट’, ‘बजट गीला पटाखा’, ‘जुमला जुमला और जुमला’…

तो कई भक्त चैनल करते-कराते रहे वाह वाह! एक भक्त अंग्रेजी चैनल ने लाइनें लगार्इं : ‘काम, किसान और कमाई’ का बजट, ‘बढ़ता भारत’, ‘आत्मनिर्भर भारत की बड़ी छलांग’!

राहुल संसद में ‘दुर्वासा’ भाव से बोले! वे जितनी देर बोले, गुस्से में बोले! बजट पर कम, सरकार पर अधिक बोले! वे खतरे पर खतरे गिनाते रहे! लगने लगा कि देश को ध्वस्त किया जा चुका है और किया जा रहा है! काश उनके भाषण के वक्त चेयर पर रमा देवी जी होतीं, जो राहुल को क्रोध से बोलते देख कहतीं कि जरा प्यार से बोलिए। इतना गुस्सा करना ठीक नहीं।

यह बात तब समझ में आई, जब अगले रोज टीएमसी की महुआ मोइत्रा ने संसद में उतने ही क्रोध से बोला। रमा जी ने बीच में प्यार से कहा कि महुआ जी, प्यार से बोलिए इतने क्रोध से न बोलिए… महुआ जी हकबका गईं, फिर अपने क्रोध का कारण बताने लगीं कि वे क्रोध से क्यों बोल रही हैं? फिर उनने दिनकर की एक कविता को अटपटे तरीके से उद्धृत किया, जो शायद रोमन में लिखी होगी!

इसके बाद शुरू हुई ‘गर्मी उतार’ बरक्स ‘चर्बी उतार’ लीला। दो दिन तक एक से एक ताल ठोंकू वीर-वचन बरसते रहे!
एक तरफ योगी कहिन कि ये जो कैराना, मुजफ्फरनगर में गर्मी दिखाई दे रही है, वह दस मार्च के बाद शांत हो जाएगी। मैं तो गर्मी में भी इनको शिमला कर देता हूं।

जवाब में जयंत कहिन कि योगी बाबा कह रहे हैं कि गर्मी उतार दूंगा… भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की जो चर्बी चढ़ रही है, उसे वोट देकर उतार दो!

फिर मेरठ से सपा नेता रफीक ने राजनीति को एक नया शब्द दिया ‘हिंदूगीरी’। उन्होंने कहा कि पांच साल से इन्होंने आपको दबाने-कुचलने का काम किया है… इन्होंने जितनी हिंदूगर्दी मचाई है, मेरठ का मुसलमान किसी दबाव में नहीं आने वाला…

फिर हैदराबाद से केसीआर बिफर उठे और ‘अनागरिक भाषा’ में कह उठे कि भाजपा ‘पेक आफ डाग्स’! यानी भाजपा ‘कुत्तों का झुंड’ है! राज्यों की सुनवाई नहीं! संविधान को बदलना जरूरी!

फिर एक बहस में अभक्त अंग्रेजी एंकर चिंतित दिखा कि राहुल इतनी सही बात बोलते हैं, फिर भी जनता पर असर नहीं होता? जवाब में भाजपा प्रवक्ता बोला कि राहुल तथ्यहीन बातें करते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता बोला कि मीडिया को हर महीने मोदी का बूस्टर लगता है… इसे सुन एंकर ने बेशर्मी से स्वीकार किया : मैं कह सकता हूं कि यह बात गलत नहीं, हम सबका मोदीकरण हुआ है, लेकिन विपक्ष जनता को उत्साहित नहीं कर पाता… तब एक नए ‘नीतिचिंतक’ ने सटीक बात कही कि मीडिया तो पहले भी सत्ता के साथ रहता था। हां, विपक्ष अपनी बात को जनता को समझाने में असमर्थ रहता है वह ‘नैरेटिव’ नहीं दे पाता!
चलते चलते : ओवैसी की कार पर तीन गोलियां चलने की ब्रेकिंग न्यूज तो मीडिया ने दी। कुछ देर सनसनी तनी रही, फिर सब शांत होता नजर आया! क्यों भई क्यों ?