दो दिन अधीर रंजन जी की जुबान की फिसलन ने लिए। संसद में हंगामा होता रहा। सांसद निलंबित होते रहे… कुछ बहाल होते रहे!
लेकिन अधीर सर भी क्या करें? उनका अंदाजेबयां ही कुछ ऐसा है, जो कहता है: ‘दे दिल उनको जो न दे मुझको जुबां और!’
हम तो हंगामे को भी बहस का एक तरीका मानते हैं। अपने हंगामाखेज लोकतंत्र में इस ‘शोर’ का ही तो मजा है!
बहरहाल, इसी बीच स्मृति ईरानी को अदालत ने सही माना, लेकिन क्या कांग्रेसी नेताओं पर मानहानि का मामला अब भी जारी है?
फिर एक दिन एक एंकर ने कांवड़ियों के बीच ‘फरमानी रानी’ के एक सुपरहिट भजन ‘हर हर शंभू शंभू… कर्पूर गौरं, करुणावतारं, संसार सारं, भुजगेंद्र हारं…’ सुनवा दिया! ताल नई, धुन नई कि सुना तो मजा आ गया। क्या कच्ची खनकदार आवाज और कैसी बुलंदी! संस्कृत का कैसा साफ-सुथरा उच्चारण और वह भी एक ‘मुसलमानी’ के कंठ से!
ऐसे में एक फतवे वाले भी फरमा गए कि इस्लामिक कायदे के अनुसार यह ठीक नहीं। दूसरे फतवे वाले चैनल से ही ललकारते रहे कि यह सब हदीस के हिसाब से ठीक नहीं। इस पर उनको एंकर ने ही जम के ठोका!
गाते-गाते फरमानी रानी ने जैसे ही, पति द्वारा उनको एक बच्चे के साथ अकेला ‘छोड़ देने’ की करुण कहानी सुनाई, तो मालूम हुआ कि फरमानी रानी ने इस तरह की भजन गायकी को मजबूरी में अपनाया। एंकर ने उनसे ‘नात’ भी गवाई और फिर वाह-वाह कराई, लेकिन उनकी करुण कहानी पर फतवेबाजों ने हमदर्दी तक नहीं जताई और कोई ‘स्त्रीत्ववादी’ भी न बोली!
एंकर ने पूछा कि कुछ कहते हैं कि इस्लाम में तो म्यूजिक भी मना है, तब यहां से वहां तक मुसलमान गायकों के खिलाफ फतवा क्यों नहीं दिया जाता… जाहिर है, इसका जवाब किसी के पास नहीं था।
एक कथित क्रांतिकारी एंकर आमिर खान की ‘लालसिंह चढ्ढा’ के लिए दर्शक जुटाने में लगा रहा और अंत में कहने लगा कि जिसे देखना है देखे, ‘बायकाट’ क्यों? अरे भैये! ये दिन ऐसे ही हैं, जब फिल्मों के भी ‘अस्मितावादी पाठ’ किए जाने लगे हैं!’
हाय, न अतीत में आमिर खान कहते कि ‘मेरी पत्नी को यहां रहने से डर लगता है…’ न लालसिंह चढ्ढा का सोशल मीडिया में ‘बायकाट’ का ‘काल’ दिया जाता। लेकिन ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत!’
फिर एक दिन, वह अमर दृश्य चैनलों में बार-बार दिखाया जाता रहा, जिसमें एक महिला ने गुस्से में पार्थ चटर्जी पर अपनी चप्पल फेंक दी। गुस्से से भरी महिला कहती रही कि ‘पब्लिक मनी’ को लूटने वालों को सबक सिखाना जरूरी है… इसके बाद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल कर अपनी सरकार को पार्थ के ‘पाप’ से अलग कर लिया!
फिर एक दिन ताइवान पहुंचीं अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी ने वह बड़ी खबर बनाई कि हर चैनल पूरी शाम डराता रहा कि अब कुछ भी हो सकता है… एक विशेषज्ञ कहता कि चीन चुप बैठने वाला नहीं, तो दूसरा कहता, चीन सिर्फ ‘गीदड़ भभकी’ देने का एक्सपर्ट है! इधर पेलोसी आर्इं और उधर गर्इं। बाद में चीन की चंद मिसाइलें ताइवानी आकाश में गरजीं, लेकिन सब हवा-हवाई!
फिर एक दिन ‘हर घर तिरंगा’ हुआ। भाजपा नेताओं ने ‘तिरंगा मोटर साइकिल रैली’ निकाली और विपक्ष को ‘शर्मिंदा’ करने की कोशिश की, लेकिन विपक्ष भी कम नहीं। उसने भी सवाल किया कि संघ ने बावन बरस में अपने दफ्तर पर कभी तिरंगा क्यों नहीं फहराया?
देशभक्ति हमें न सिखाएं! एक विपक्षी प्रवक्ता बोला, हम तो ‘दिल में तिरंगा फहराते हैं’। तो, एंकर ने मजा लिया कि दिल में कैसे लहराते हैं, जरा लहरा के दिखाइए तो… कई विपक्षी प्रवक्ता ऐसी ही मसखरी करते दिखते हैं।
सबसे बड़ी खबर ‘ईडी’ के छापों ने बनाई। कांग्रेस प्रवक्ता कहिन: भाजपा की ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’ तो जवाब में भाजपा कहिन: ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’ कांग्रेस की!
फिर ‘लाइव खबर’ टूटी कि ये देखिए हेराल्ड आफिस ‘सील’। ईडी और पुलिस ने कांग्रेस मुख्यालय, राहुल और सोनिया के घरों को घेरा… राहुल कर्नाटक से साढ़े दस तक दिल्ली पहुंचेंगे। राहुल गुस्से में। राहुल बोले: हम डरने वाले नहीं, हम लड़ते रहेंगे।
चैनलों पर बहसें जमी रहीं। कांग्रेस कहिन कि प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआइ का सिर्फ विपक्ष पर निशाना है, तो भाजपा प्रवक्ता कहिन कि महंगाई, बेरोजगारी तो बहाना है। इन प्रदर्शनों का असली उद्देश्य कांग्रेस, राहुल, सोनिया को बचाना है… हेराल्ड मामले में राहुल, सोनिया ने एक सार्वजनिक संस्था को हेराफेरी से हड़पा है। पांच लाख में पांच हजार करोड़ की संपत्ति बनाई है।
अदालत ने कहा है कि केस चलाओ तो केस चल रहा है, इसमें बदलेखोरी कहां? फिर शुक्रवार को राहुल ने विरोध स्वरूप बाजू पर काली पट्टी बांध कर प्रेस कान्फ्रेंस की कि लोकतंत्र की हत्या की जा रही है।
रिपोर्टर बताते रहे कि दफा 144 के बावजूद प्रियंका गांधी प्रदर्शन का नेतृत्व करेंगी और राहुल घेराव करेंगे। मगर सबको हिरासत में ले लिया गया… सच! ‘लोकतंत्र का अंतिम क्षण है, कह कर आप हंसे!’ (रघुवीर सहाय)