पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग से सूबे के पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों में BJP के बड़े कदमों के बाद अब मुख्यमंत्री और TMC चीफ ममता बनर्जी की निगाहें उत्तरी बंगाल की ओर हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि 2019 के आम चुनाव में उनकी पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद से यह क्षेत्र उनके लिए चिंता का बड़ा विषय बना हुआ है।
आठ लोकसभा सीटों (Cooch Behar, Alipurduar, Jalpaiguri, Darjeeling, Raigunj, Balurghat, North Malda और South Malda) में से दीदी का दल एक भी सीट नहीं हासिल कर सका। सात सीटें भाजपा के खाते में गईं, जबकि मालदा साउथ पर घनी खान चौधरी के भाई अबु हसम खान चौधरी उर्फ दालू दा ने कांग्रेस की ओर से कब्जा जमा लिया था।
मालदा उत्तरी में BJP के खागन मुर्मू ने सिटिंग MP मौसम नूर (पूर्व कांग्रेस सांसद, जो पिछला चुनाव टीएमसी के टिकट से) को हराया, जबकि मालदा दक्षिण से दालू दा ने बीजेपी की श्रीरूपा मित्रा चौधरी को मात देकर सीट हासिल की थी। टीएमसी के मोहम्मद मोज्जेम हुसैन इस सीट पर 27.47 फीसदी वोट शेयर के साथ तीसरे पायदान पर रहे।
शेष सीटों पर बीजेपी के नीशिथ प्रमाणिक, जॉन बार्ला, जयंत कुमार रे, राजू सिंह बिष्ट, देबश्री चौधरी, सुकांत मजूमदार और खागन मुर्मू ने 2019 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी खेमे को क्रमशः कूच बेहार, अलीपुरदुआर, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, रायगंज, बालुरघाट और उत्तरी मालदा क्षेत्र में जीत हासिल करते हुए झटका दिया था।
news18.com पर प्रकाशित सुजित नाथ की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी ने उत्तरी बंगाल में तेजी से जड़ें मजबूत की हैं, लिहाजा सीएम बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले ही अहम संगठनात्मक फेरबदल का फैसला लिया, ताकि वह पार्टी की भीतरी कलह को हल कर सकें।
दरअसल, काफी वक्त से उनकी पार्टी पुराने लोगों और नए नेताओं के बीच आपसी कलह की समस्या का सामना कर रही है। बनर्जी इस चीज को लेकर कई बार पार्टी नेताओं को इसे हल करने को लेकर चेता भी चुकी हैं। हाल ही में पार्टी नेताओं के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी को मजबूत करने को लेकर बेबसी जाहिर कर अहम बदलाव कर नए चेहरों को लाने की बात कही थी।
राजनीतिक जानकार कपिल ठाकुर मानते हैं कि उत्तरी बंगाल में पुरुलिया के अतिरिक्त 24 उत्तरी परगना और जुंगलमहल (जहां माना जा रहा है कि टीएमसी अपनी पकड़ खो रही है) लड़ाई में बेहद अहम होंगे, क्योंकि यहां बंगाल की 294 विस सीटों में से 54 विधानसभा सीटें आती हैं और टीएमसी की किस्मत बहुद हद तक इससे भी तय होगी कि वह इस क्षेत्र में कैसा प्रदर्शन करती है।
बकौल ठाकुर, “आपने पाया होगा कि बनर्जी अब सामुदायिक कार्ड चलना शुरू कर चुकी हैं। वह कभी राजवंशी या कमतापुरी कार्ड खेलती हैं। कभी अनुकूलचंद्र का पत्ता खोलती हैं, तो कभी मतुआ कार्ड खेलती हैं। वैसे, बंगाल में ये कोई नई चीज नहीं है, क्योंकि अधिकतर पार्टियां राजवंशियों को लुभाने का प्रयास करती हैं, जो कि उत्तरी बंगाल के किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।”
बीजेपी और टीएमसी के लिए उत्तरी बंगाल की अहमियत तब भी देखने को मिली थी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक ही दिन तीन अप्रैल, 2019 को आम चुनाव के लिए बिगुल फूंका था। मोदी ने जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन के पास सिलीगुड़ी में एक के बाद एक रैलियां की थीं। वहीं, उनकी कटु आलोचक दीदी ने भी उसी दिन कूच बेहार के दिनाहाटा में रैली की थी।
मार्च 2020 में ममता ने अपने मेगा रैली के लिए मालदा को चुना था, जहां पर 80 हजार से अधिक पार्टी कार्यकर्ताओं से उन्होंने संवाद किया था। मालदा को चुनने का एक कारण यह भी है- वहां पर 50 फीसदी आबादी मुस्लिम है। टीएमसी आज तक इस क्षेत्र में आज तक एक भी सीट नहीं (2016 के विस चुनाव के बाद को छोड़कर) जीत पाई है।
दीदी जानती हैं कि उत्तरी बंगाल उनके लिए अहम हो सकता है और वह टीएमसी का नंबर ऊपर या नीचे लेकर जा सकता है, क्योंकि वह यह भी जानती हैं कि यह वही क्षेत्र है, जिसने बंगाल में बीजेपी को अपना संख्याबल बढ़ाने में मदद की। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी दो सीट से बढ़कर 18 सीटों पर उभर कर आई थी।