मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने नाटकीय अंदाज में अपनी सरकार शुरू की थी और उसका अंत भी वैसा ही हुआ। 18वें मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस सरकार चलाने वाले कमलनाथ सिर्फ एक साल तीन महीने और तीन दिन ही राज्य के मुखिया रहे। 17 दिसंबर 2019 को सीएम पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने 20 मार्च 2020 को इस्तीफा दे दिया था। राज्य की राजनीति में कांग्रेस के तब तीन नेता- सीएम कमलनाथ, वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया सक्रिय थे।

इस्तीफे से ठीक 17 दिन पहले तीन मार्च 2020 को सीएम कमलनाथ जबलपुर में नर्मदा कुंभ के समापन कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इसका आयोजन वित्तमंत्री तरुण भनोट ने की थी। इस कार्यक्रम के आयोजन के पीछे कांग्रेस की साफ्ट हिंदुत्व की लाइन को मजबूत करना था। इसीलिए इसमें बड़ी संख्या में साधु-संतों को आमंत्रित किया गया था। जिस समय सीएम कमलनाथ मंच पर बैठे थे, उनके मोबाइल पर लगातार काल आ रही थी। इस दौरान उनके चेहरे के भाव बदल रहे थे और वे परेशान से लग रहे थे। कुछ-कुछ ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे कुछ संकट वाली स्थिति हो। वे बार-बार बोल-बोल रहे थे कि हालात ठीक नहीं है, तुम कल दिल्ली चले आओ और अपने साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया से बात करो। उनका शरीर मंच पर था, लेकिन उनका मन दिल्ली में था।

यह वही समय था जब राज्य कांग्रेस में असंतोष की स्थिति थी। वरिष्ठ नेता सिंधिया पार्टी से किनारा करके अपने समर्थक जुटाने में लगे थे और भाजपा में जाने की तैयारी कर रहे थे। इस बीच वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा से कमलनाथ ने पार्टी में टूट-फूट को रोकने के लिए कुछ करने को कहा।

टूट-फूट का स्पष्ट संकेत वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने दो मार्च को दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस में दे दिया था। उन्होंने साफ-साफ कहा था कि एमपी की कमलनाथ सरकार को भाजपा गिराना चाहती है। उन्होंने यह भी कहा था कि इसके लिए भाजपा ने पैसे भी दिए हैं। इससे ठीक पहले उन्होंने कई ट्वीट किए थे। एक ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि “भाजपा ने मध्यप्रदेश के सपा-बसपा विधायकों को दिल्ली लाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। बसपा की विधायक राम बाई को क्या भाजपा के पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कल चार्टर फ्लाइट में भोपाल से दिल्ली नहीं लाए। क्या शिवराज जी कुछ कहना चाहेंगे?”

दरअसल दिग्विजय सिंह के ये आरोप ऐसे थे, जिसने भोपाल के साथ दिल्ली में भी बेचैनी बढ़ा दी। जिन नेताओं के नाम उन्होंने ट्वीट में लिए थे, उनकी खोज शुरू हुई तो सभी के मोबाइल स्विच आफ मिले। इससे संदेह और पुख्ता हुआ और इसी के साथ कमलनाथ सरकार की परेशानी भी बढ़नी शुरू हो गई।

एक तरफ पार्टी को मध्य प्रदेश में अपनी सरकार बचाने के मोर्चे पर लड़ना पड़ रहा था तो दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया की भाजपा में बढ़ती नजदीकियां सभी की नींदें उड़ा दी थी।