कोरोना संकट के बीच दिल्ली सरकार के उस आदेश पर विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें उसने राजधानी के पांच सितारा होटल अशोक में हाई कोर्ट के जजों और स्टाफ के साथ उनके परिजन के लिए 100 बुक करने की बात कही थी।

फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल से जुड़े हुए डॉ.कौशल कांत मिश्रा केजरीवाल सरकार के इस आदेश पर भड़के हैं। उन्होंने इसे भेदभावपूर्ण बताते हुए लोकतंत्र के लिए घातक करार दिया है। कहा कि यह (आदेश पारित) तो चमचारिगी करने के लिए दिल्ली सरकार ने दिया है। अगर होटल के 100 बेड रिजर्व करा दिए जाएंगे, तो आसपास रहने वाले गरीब लोग कहां इलाज कराएंगे? दरअसल, ये बड़े और कड़े सवाल उन्होंने हिंदी समाचार चैनल ABP News पर मंगलवार सुबह दिल्ली में कोरोना संकट से जुड़ी एक चर्चा के दौरान उठाए। डॉ.मिश्रा के मुताबिक, “मुझे पता चला है कि दिल्ली सरकार ने एक आदेश निकाला है, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के जजों के लिए अशोक होटल के 100 कमरे बुक किए गए हैं। मैं इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता के रूप में दिल्ली हाईकोर्ट का रुख कर रहा हूं। चाहता हूं कि कोर्ट को पता चले कि यह एक भेदभावपूर्ण आदेश है। वैसे, तो हाईकोर्ट बड़ी-बड़ी बातें करता है। कहता है कि फांसी पर लटका देंगे। पर जब अपने परिवार वालों की जान की बात आती है, तब दिल्ली सरकार से कमरे बुक कराता है।”

आदेश की कॉपी लाइव डिबेट के दौरान दिखाते हुए उन्होंने आगे कहा, “अगर ऐसे आदेश सबके लिए निकलने लगेंगे, तो गरीबों का इलाज कहां होगा? यह बहुत बड़ी खबर है।” 25 अप्रैल की तारीख को जारी किए गए इस आदेश के हवाले से उन्होंने बताया, पहली लाइन में लिखा है कि 100 कमरे बुक किए गए हैं। लोकतंत्र में यह कहां तक न्यायोचित है? गरीब, हेल्थ केयर वर्कर और हेल्थ केयर वर्कर मर रहे हैं और इस तरह कमरों का रिजर्वेशन हाईकोर्ट के लिए शर्मनाक बात है। मुझे लगता है कि इस आदेश पर फौरन रोक लगनी चाहिए।

वह बोले- कोई भी अथॉरिटी सरकार को आवेदन/ऐप्लिकेशन दे सकती है। हाईकोर्ट ने सरकार को अगर आवेदन दिया तो सरकार ऐसा पक्षपात करने आदेश कैसे दे सकती है? इसमें अधिक गलती दिल्ली सरकार की है। अगर हाईकोर्ट ने स्टे नहीं लगाया तो उसकी भी गलती होगी और यह मामला सुप्रीम कोर्ट जाएगा। इस तरह के आदेश से “सिविल अनरेस्ट” (समाज में माहौल खराब होगा) पैदा हो सकता है। 100 बेड बुक कराएंगे यहां और इसी के आसपास गरीब लोग होटल में एडमिट नहीं हो सकते। यह किस तरह का आदेश है, जिसे तुरंत रद्द करना चाहिए। ऐसे आदेश से लोगों का मनोबल गिरता है। सरकार इसे वापस ले या हाईकोर्ट स्टे लगाए।

कमरों का खर्च कौन उठाएगा? यह पूछे जाने पर डॉ.मिश्रा ने बताया, “इसमें इस बाबत अधिक जानकारी नहीं है। पर यह आदेश गलत है। दिल्ली सरकार यह केवल चमचागिरी के लिए कर रही है।” आगे ऐंकर विकास भदौरिया ने भी कहा, “डॉक्टरों, हेल्थवर्करों की ऑक्सीजन, बेड के अभाव में मौत तक हो जा रही है। ऐसे में यह आदेश किसी एक खास तबके को (हाईकोर्ट के जजों को) खुश करने के लिए दे देना कहां तक जायज है?” बता दें कि डॉ.मिश्रा दक्षिणी दिल्ली में जाने-माने ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं और उन्होंने Ganesh Shankar Vidyarthi Memorial Medical College से अपना ग्रैजुएशन किया था।

चर्चा में शामिल रैडिक्स हेल्थकेयर के सीएमडी डॉ.रवि मलिक ने इस पर कहा- इस बीमारी के दौर में हेल्थ फॉर ऑल (स्वास्थ्य सेवाएं सबके लिए) का फॉर्म्युला होना चाहिए। अगर किसी एक तबके कराई गई है, तो सबको करानी चाहिए। बहुत सारे संस्थान है…यहां तक कि हमारे डॉक्टर और नर्स हैं…मैं खुद कोविड अस्पताल चलाता हूं। 15 फीसदी मेरे डॉक्टर और नर्स बेचारे बीमार हैं। जो तबका गरीब है, उसका ध्यान जरूर रखिए। वह बड़े-बड़े अस्पतालों के बिल नहीं झेल पाएगा। सरकार के पास इस चीज के लिए प्रावधान होना चाहिए। साथ ही हेल्थ केयर वर्कर्स का भी ख्याल रखा जाना चाहिए। हम कोरोना झेलते हुए ड्यूटी करते हैं और घर जाकर परिजन को भी संक्रमण दे देते हैं। आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि स्थितियां क्या हैं।

देखें, डिबेट के दौरान आगे क्या हुआः