बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद से ही राज्य में राजनीतिक गतिविधियां पूरे जोरों पर हैं। राज्य में एनडीए से लेकर महागठबंधन तक के दल अधिक से अधिक दलित वोटों को अपने पक्ष में करने की जुगत में लगे हैं। मालूम हो कि बिहार की 16 फीसदी दलित आबादी में पासवान और रविदास समुदाय का बड़ा हिस्सा है।
कोई भी राजनीतिक दल दलित वोटों के अधिकतम हिस्से पर अपना दावा नहीं कर सकता है। जबकि रविदास वोट कांग्रेस, NDA, RJD और BSP के बीच बंटे हुए हैं, अधिकांश पासवान अपने राष्ट्रीय नेता रामविलास पासवान की गठबंधन पसंद के अनुसार प्राथमिकताएं बदलते रहते हैं। यहीं वजह है कि भाजपा एनडीए में लोजपा को बनाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही है। वहीं, पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के समर्थन से अनुसूचित जाति के वोटों को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
वहीं अन्य राजनीतिक दल भी दलित वोटों पर नज़र रखने के लिए कई कदम उठा रहे हैं। पूर्व सांसद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा के साथ ही अन्य छोटे दल भी दलित समुदाय पर अपने प्रभाव का पूरा इस्तेमाल करना चाह रहे हैं। इन दलों के साथ दलित वोटों का लालच एनडीए और महागठबंधन के समीकरण बिगाड़ रहा है।
रालोसपा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन से अलग होकर बसपा के साथ हाथ मिला चुके हैं। बसपा का प्रभाव गोपालगंज, रोहतास और कैमूर में है। बसपा ने 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनावों में छह सीटें जीती थीं। जदयू ने पार्टी प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के अस्वस्थता के बीच दलित वोटरों को लुभाने के लिए जेडीयू ने एससी नेता अशोक चौधरी को पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया है। आरजेडी ने भी इसी राह पर आगे बढ़ते हुए आरएलएसपी के प्रदेश अध्यक्ष भूदेव चौधरी को अपनी पार्टी का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया है।
मधेपुरा के पूर्व सांसद राजेश रंजन (पप्पू यादव) की जन अधिकार पार्टी ने सोमवार को चंद्रशेखर आज़ाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन की घोषणा की। इस बीच, भाजपा भी आक्रामक रूप से दलित कार्ड को खेलने की कोशिश कर रही है। पार्टी ने गोपालगंज के पूर्व सांसद जनक चमार को अपना प्रदेश महासचिव बनाया।
ऐसा 20 साल बाद है कि पार्टी ने किसी दलित नेता को यह पद दिया है। पार्टी ने पिछले हफ्ते गुरु प्रकाश को अपने 23 राष्ट्रीय प्रवक्ताओं में शामिल किया। प्रकाश पूर्व केंद्रीय मंत्री व एमएलसी संजय पासवान के बेटे हैं। पटना यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर प्रकाश का एबीवीपी और आरएसएस से मजबूत जुड़ाव रहा है।
दूसरी तरफ, पूर्व मंत्री श्याम रजक, रमई राम और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी जदयू छोड़कर राजद में चले गए हैं। ऐसे में एनडीए मांझी को अपने पाले में कर दलित वोटों की भरपाई करने की कोशिश में है।