लालू यादव और राबड़ी देवी के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की जिन्दगी ग्रीक नाटकों के ट्रैजिक पात्रों की तरह होती जा रही है। 2015 में जब लालू यादव ने पुराने दोस्त और तत्कालिक विरोधी नीतीश कुमार से हाथ मिलाकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा तो उनकी पार्टी की 10 साल बाद सत्ता में वापसी हुई थी।
विजयी महागठबंधन के नेता के तौर पर जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने आए तो उनके दायें-बायें लालू यादव के दोनों बेटे तेज प्रताप और तेजस्वी ने भी शपथ ली। इसे लालू यादव के अन्ध-पुत्रमोह की तरह देखा गया मगर जनता तब ज्यादा चौंकी जब उम्र में छोटे तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम के रूप में तेज प्रताप से ऊपर का पद मिला।
परम्परागत भारतीय परिवार में पिता की विरासत का जिम्मा बड़े बेटे के कन्धे पर आता है। लालू यादव ने उप-मुख्यमंत्री बनाकर अपनी राजनीतिक विरासत तेजस्वी को सौंपने की अनाधिकारिक घोषणा कर दी थी। उसके बाद साल दर साल यह साफ होता गया कि लालू जी के वारिस तेजस्वी यादव हैं। डिप्टी सीएम, नेता विपक्षी दल का पद सुशोभित कर चुके तेजस्वी यादव अब 2025 के चुनाव में महागठबंधन का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जा चुके हैं।
दूसरी तरफ नीतीश कुमार के बगल में खड़े होकर मंत्री पद की शपथ लेने वाले तेज प्रताप यादव को उनके पिता की पार्टी और परिवार से निकाला जा चुका है। जिस घटना के बाद तेज प्रताप को राजद और लालू परिवार से निकाले जाने की घोषणा की गयी, वह भी चौंकाने वाली थी।
तेज प्रताप यादव के फेसबुक पर पब्लिश एक पोस्ट में दावा किया गया कि एक युवती से उनका 12 सालों से प्रेम सम्बन्ध है। तेज प्रताप यादव का उनकी पत्नी ऐश्वर्या से तलाक का केस चल रहा है। तेज प्रताप यादव ने पोस्ट को हैकिंग की उपज बता दिया मगर लालू परिवार की प्रतिक्रिया ने इस मामले को ज्यादा सुर्खियों में ला दिया वरना यह मामला भी लाखों सोशलमीडिया सनसनियों की तरह धीरे-धीरे विस्मृति की गर्त में चला जाता।
अब यह स्थिति है कि तेज प्रताव यादव अपनी अलग पार्टी (जनशक्ति जनता दल) बनाकर बिहार चुनाव में अपना राजनीतिक अस्तित्व जिन्दा रखने का प्रयास कर रहे हैं। तेज प्रताप ने वैशाली जिले की महुआ विधान सभा सीट से नामांकन दाखिल किया है।
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तेज प्रताप ने चुनाव की घोषणा से पहले ही बता दिया था कि वह महुआ से लड़ेंगे। 2015 विधान सभा चुनाव में वह महुआ से ही विधायक थे। 2020 में वह हसनपुर से विधायक थे। चुनाव की घोषणा के बाद राजद ने भी वर्तमान विधायक को महुआ से पार्टी का टिकट दे दिया है। यानी तेजस्वी यादव अपने भाई तेज प्रताप यादव को बिहार विधान सभा में नहीं देखना चाहते।
तेजस्वी यादव नीत गठबंधन या तो राज्य में सबसे बड़ा दल बनेगा या दूसरा बड़ा दल। यानी सीएम या नेता विपक्षी दल में से एक पद तेजस्वी को मिलना पक्का है। मगर तेजस्वी ने तेज प्रताप यादव के लिए विधायक की सीट भी नहीं छोड़ी। इससे यही लगता है कि तेजस्वी तेज प्रताप को हराकर राजनीति से निकलने को बाध्य करने का इरादा रखते हैं।
तेजस्वी यादव के सलाहकारों को लगता होगा कि बड़े राजनीतिक दल और संसाधन से विहीन तेज प्रताप अगर विधायक नहीं बनते हैं तो उनके लिए राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहना कठिन होगा। मगर जो बात तेजस्वी के करीबी नहीं समझ रहे हैं वह यह कि सत्ता के नशे में कई बार आगत की आहट सुनायी देनी बन्द हो जाती है।
जनता के एक बड़े वर्ग को नहीं लगता है कि तेज प्रताप यादव को पार्टी से निकालने का फैसला लालू-राबड़ी का है। तेज प्रताप भी बार-बार विभीषणों का जिक्र करके यही इशारा करते हैं। तेज प्रताप से सहानुभूति रखने वालों को लगने लगा है कि छोटे भाई ने पिता की विरासत पर एकछत्र कब्जा करने के लिए बड़े भाई को किनारे लगा दिया और वह भी कुछ बाहरी लोगों की सलाह पर।
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महुआ विधान सभा में चुनाव प्रचार कर रहे तेज प्रताप यादव के वीडियो जिस तरह सोशलमीडिया पर लोगों को पसन्द आ रहे हैं, वह तेजस्वी यादव के लिए खतरे की घण्टी है। जब तक लालू यादव जिन्दा हैं, तब तक शायद तेज प्रताप राजद को उस तरह डैमेज न कर पाएँ मगर लालू यादव की छत्रछाया के हटने के बाद जनता दोनों भाइयों के बीच चुनाव करने के लिए स्वतंत्र होगी। तब तेजस्वी को तेज प्रताप की असल लोकप्रियता पता चलेगी।
तेज प्रताप यादव की हाजिरजवाबी, खुशमिजाजी और सादादिली आम लोगों के दिलों पर ज्यादा असर कर सकती है। तेज प्रताप यादव ने पिछले कुछ इंटरव्यू में अब खुलकर लालू यादव की विरासत के वारिस होने का भी दावा शुरू कर दिया है। उनके चेहरे पर लाचारगी भरी मुस्कान रहती है जो देखने वालों पर सीधा असर करती है। तेज प्रताप की यह स्थिति उनके प्रति सहानुभूति पैदा कर रही है। अगर यह सहानुभूति बड़ी होती गयी तो तेजस्वी यादव को बड़ी मुश्किल होगी।
महुआ की जनता तेज प्रताप यादव को विधान सभा भेजेगी या नहीं, यह 14 नवंबर को पता चलेगा। हार हो या जीत, तेज प्रताप के लिए दोनों हाल में लाभ है। चुनाव हारने पर अपने समर्थकों के बीच तेज प्रताप और ज्यादा बेचारे बन जाएँगे। अगर जीत गये तो हीरो बन जाएँगे। तेजस्वी को दोनों हाल में नुकसान होगा।
जिस तरह उद्धव को राज ठाकरे का और अखिलेश यादव को शिवपाल यादव का महत्व देर-सबेर समझ में आ गया, उसी तरह तेजस्वी को भी तेज प्रताप की अहमियत समझ आएगी मगर तब तक बहुत देर न हो जाए।
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