Survey: दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े अध्यादेश की जगह लेने वाला बिल लोकसभा में तीन अगस्त और राज्यसभा में सात अगस्त को पास हो चुका है। विधेयक को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई है। अब सवाल यह है कि इस पूरे घटनाक्रम के बाद क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी अब कांग्रेस से अलग हो जाएंगे। इसको लेकर सी वोटर ने एक सर्वे किया है।
सर्वे में सवाल किया गया कि दिल्ली सेवा बिल पर सरकार की जीत के बाद क्या अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से अलग हो जाएंगे? इस सवाल के जवाब में 30 फीसदी लोगों ने हां में जवाब दिया तो 39 प्रतिशत लोगों ने नहीं कहा। वहीं 31 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो अभी इस पर कुछ नहीं कह सकते।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी 26 दलों वाले विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का हिस्सा हैं। बता दें, पटना में बिहार के सीएम नीतीश कुमार की मेजबानी में हुई विपक्षी दलों की बैठक के दौरान आप के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने दिल्ली सेवा बिल ( तब दिल्ली के अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा अध्यादेश) पर रुख साफ करने को कहा था।
तब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि इस पर हम संसद का सत्र शुरू होने से पहले मीटिंग करेंगे और स्टैंड साफ क्लियर करेंगे। इसके बाद आप ने बयान जारी कर कहा था कि रुख साफ नहीं करने तक कांग्रेस की मौजदूगी वाले किसी भी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी, लेकिन अब कांग्रेस के समर्थन के बाद भी विधेयक संसद से पास हो गया।
दिल्ली सेवा बिल पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में दिल्ली की आप सरकार पर हमला करते हुए कहा था कि बिल पास होने पर ये आपसे (कांग्रेस) से अलग हो जाएंगे। आप बस देखते जाओ। दिल्ली सेवा बिल उपराज्यपाल को राष्ट्रीय राजधानी के अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती को लेकर अंतिम अधिकार देता है। ये सेवाओं पर केंद्र सरकार के नियंत्रण को मजबूत करता है।
बता दें कि बिल पास होने से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया था कि यह केवल दिल्ली के लोगों को गुलाम बनाने का प्रयास है। वहीं, इस बिल को पारित करने के लिए 131 सांसदों ने पक्ष में, जबकि 102 ने इसके विरोध में मतदान किया।